भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी हालात बिगड़ते हैं, तो निशाने पर सबसे पहले भारत के मुसलमान आ जाते हैं। ये महज इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक तरह की सोची-समझी चाल लगती है। अगर किसी आम भारतीय मुसलमान से बात करें, तो ज़्यादातर यही कहेंगे कि पाकिस्तान न सिर्फ भारत के लिए, बल्कि उनके लिए भी एक मुसीबत ही है। उन्हें पाकिस्तान से कोई लगाव नहीं है, बल्कि वे मानते हैं कि भारत का मुसलमान सबसे ज़्यादा बदनाम और तकलीफ़ में पाकिस्तान की वजह से ही हुआ है।
हर बार वफादारी का टेस्ट सिर्फ मुसलमानों से लिया जाता है। इसके बावजूद कि पिछले सालों में कम से कम 200 से अधिक ध्रुव सक्सेना और माधुरी गुप्ता पाकिस्तान के लिए जासूसी करते पकड़े गए हैं, उनकी पहचान पर कभी सवाल नहीं उठे। लेकिन अगर किसी मुसलमान पर थोड़ा भी शक हो जाए, तो तुरंत उसे ‘पाकिस्तानी एजेंट’ करार दे दिया जाता है।
सोशल मीडिया पर हजारों फेक अकाउंट्स हैं जो खुलेआम नफरत फैलाते हैं, और हैरानी की बात ये है कि इन अकाउंट्स को देश के कई जाने-माने लोग फॉलो भी करते हैं। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के वक्त भी यही ट्रेंड देखने को मिला, सेना आतंकी ठिकानों पर हमला कर रही थी, और सोशल मीडिया पर कुछ लोग मुस्लिमों को लेकर जहर उगलने में लगे थे। उनका असली मकसद देश को बांटना था, जबकि फौज देश के लिए लड़ रही थी।
सोशल मीडिया फेक अकाउंट्स जो खुलेआम नफरत फैलाते हैं,

लेकिन इन नफरती अकाउंट्स पर न कोई सख्त एक्शन होता है, न ही इनकी रिपोर्टिंग का कोई असर दिखता है। असली सवाल ये है कि बार-बार देश के मुसलमानों की देशभक्ति को ही क्यों कटघरे में खड़ा किया जाता है,जबकि हकीकत ये है कि हर मुश्किल वक्त में वो भारत के साथ खड़े नजर आए हैं।