भारत जैसे देश के लिए अब युद्ध कोई हल नहीं है। ये वो दौर नहीं है जब गोलियां और मिसाइलें चलाकर मसले सुलझाए जाते थे। आज की असली लड़ाई तो आर्थिक ताकत और टेक्नोलॉजी पर होती है, जैसे चीन करता है। वो सीधा युद्ध नहीं करता, लेकिन अपनी नीतियों से दुनिया पर असर जरूर डालता है।
प्रधानमंत्री मोदी का “मिट्टी में मिला देंगे” जैसा बयान भी सियासी नजरिए से ठीक नहीं था। अब जंग कब, कैसे और कितना लड़ी जाएगी, ये हमारे हाथ में कम, और अमेरिका जैसे बड़े देशों की रणनीति पर ज्यादा निर्भर करता है। IMF जब पाकिस्तान को फंड देता है, तभी साफ हो जाता है कि मामला सिर्फ दो मुल्कों का नहीं, बल्कि ग्लोबल पावर गेम है।
अब खबर आ रही है कि भारत और पाकिस्तान किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से बातचीत की टेबल पर बैठने को तैयार हैं। ये वाकई में एक बड़ा और जरूरी कदम है। क्योंकि बातचीत से रास्ता निकलता है, और जंग से सिर्फ तबाही, वो भी दोनों तरफ।
सीज़फायर एक सही और जरूरी फैसला है, जो भारत के हित में है। लेकिन इसका राजनीतिक असर कुछ नेताओं को नुकसान भी पहुंचा सकता है। देश की सुरक्षा और सियासी महत्वाकांक्षा के बीच बैलेंस बनाना ही आज की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है।
दिक्कत की बात ये है कि 19 दिन गुजर जाने के बाद भी पहलगाम हमले के आरोपी जिंदा घूम रहे हैं। इसका मतलब साफ है, हमारी इंटेलिजेंस और ऐक्शन, दोनों में गड़बड़ी है। ऐसे में अगर हम अपराधियों तक न पहुंच पाएं और सिर्फ भावनाओं में बहकर युद्ध की बातें करें, तो वो सिर्फ गुस्से का भटकाव होगा।
कुछ दिन रुक जाईए, माहौल ठंडा होने दीजिए, फ़जीहत तय है, बुढ़ापे में मुंह छिपाए फिरेंगे ..
बड़े आए थे युद्ध लड़ने?
समझ रहे हैं ना आप लोग ?
अब वक्त दिमाग़ से सोचने का है, न कि तलवार निकालने का।