भारत और पाकिस्तान ने हाल ही में भले ही “पूरी तरह और फौरन युद्ध रोकने” पर सहमति जताई हो, लेकिन दोनों देशों के बीच पानी को लेकर तनाव अभी भी बना हुआ है। 1960 में वर्ल्ड बैंक की मदद से हुई ऐतिहासिक ‘सिंधु जल संधि’ इस वक्त सस्पेंड है।
भारत ने इस संधि को अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद निलंबित कर दिया था। इस हमले में 26 हिंदू श्रद्धालु मारे गए थे और भारत ने इसके लिए सीधे पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराया। पाकिस्तान ने आरोपों से इनकार किया, मगर इसके बाद भारत ने सिंधु और उससे जुड़ी नदियों के पानी के बहाव पर नियंत्रण की दिशा में कड़े कदम उठाए।
इस फैसले का सबसे गहरा असर पाकिस्तान की खेती पर पड़ा है, जो 80% से ज्यादा सिंचाई के लिए सिंधु जल पर निर्भर है। रिपोर्टों के मुताबिक, भारत ने चेनाब नदी का बहाव काफी हद तक रोक दिया है, जिससे पाकिस्तान के कई हिस्सों में पानी की सप्लाई 90% तक घट गई है।
भारत ने इस दौरान वो चार बड़ी जलविद्युत परियोजनाएं भी फिर से शुरू कर दी हैं, जो पहले रुकी हुई थीं, पाकल डुल, किरू, क्वार और रतले। अब इन प्रोजेक्ट्स के 2026 से 2028 के बीच पूरे होने की उम्मीद है, जिससे कश्मीर में भारत की एनर्जी सेल्फ-रिलायंस को बढ़ावा मिलेगा।
हालांकि सीज़फायर की वजह से सैन्य तनाव थोड़ा कम हुआ है, लेकिन राजनयिक रिश्ते अभी भी ठंडे हैं। भारत ने अब तक पाकिस्तान के साथ न तो व्यापार शुरू किया है, न वीजा प्रक्रिया में ढील दी है और न ही किसी तरह की सीधी बातचीत के संकेत दिए हैं।
कई एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले वक्त में पानी एक बड़ा कूटनीतिक हथियार बन सकता है। अगर इस मसले को वक्त रहते नहीं सुलझाया गया, तो ये पूरे इलाके की शांति और स्थिरता के लिए भारी खतरा बन सकता है।