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ईरान की छवि और भारत में मुसलमानों का अंधसमर्थन: एक आलोचनात्मक विश्लेषण

दुनिया में मुस्लिम दो समुदायों में बंटे हैं, शिया और सुन्नी। ईरान और सऊदी अरब के बीच विचारधारा संघर्ष का लाभ अमेरिका-पश्चिमी देश उठाते हैं; आलोचना जरूरी है, पूजावाद नहीं।

दुनिया में मुस्लिम मूलतः दो समुदायों में बँटे हुए हैं, शिया और सुन्नी। शिया ईरान का समर्थन करते हैं, जबकि सुन्नी सऊदी अरब का। सुन्नी ‘खिलाफत’ की विचारधारा का समर्थन करते हैं, जबकि शिया ‘इमामों’ के वर्चस्व को मानते हैं। यहीं से शिया-सुन्नी संघर्ष की शुरुआत होती है, जिसका फ़ायदा अमेरिका और अन्य पश्चिमी देश लगातार उठा रहे हैं।

ग़ज़ब के महामूर्ख होते हैं ऐसे लोग, तब भी जबकि ईरान इनके मुश्किल में आने पर एक ढेले की भी मदद नहीं करेगा, फिर भी इन्हें ईरान अपनी धार्मिक मान्यताओं के बराबर दिखाई देता है।

ईरान की आलोचना क्यों नहीं हो सकती? उसकी रणनीति और उसके कामों की आलोचना बिल्कुल हो सकती है, वैसे ही उसके अच्छे कामों और साहस की प्रशंसा भी की जा सकती है…

ईरान को लेकर कुछ लोगों और खुद ईरान की यही सोच उसे खाड़ी के मुस्लिम देशों से अलग-थलग करती है। आप देखेंगे तो पाएँगे कि ईरान भी केवल उन्हीं से दोस्ती रखता है जो उसकी धार्मिक मान्यताओं को मानते हैं, जैसे लेबनान, सीरिया… और बाकी देश उसे उसके इमामों के दुश्मन लगते हैं, और उनके ख़िलाफ़ छद्म युद्ध में हूती विद्रोही (यमन), हिज़बुल्ला (लेबनान) और शिया मिलिशिया को समर्थन देकर अपनी दुश्मनी निकालता रहता है।

ईरान और यहाँ ईरान के मूरीदों को खाड़ी के बाकी देश दुश्मन लगते हैं। उनके नस्ली दिलों में शेष मुसलमानों के प्रति, विशेष रूप से हज़रत अली अलैहिस्सलाम और उनके मानने वालों के प्रति, नफ़रत दिखाई देती है।

वाक़ई, ऐसी सोच रखने वाले लोग एक नंबर के जाहिल होते हैं, जो मौजूदा दौर के ख़तरों को देखते हुए एक होने की बजाय 1400 साल पहले जाकर फिरकावाराना सोच के कारण अलग-थलग पड़ जाते हैं।

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माफ़ करिएगा, इसी सोच की वजह से ईरान भी अलग-थलग पड़ा है और भारत में उसके मूरीद भी लगभग अलग-थलग ही रहते हैं।

जबकि इस मुश्किल दौर में साथ रहकर अमेरिका और इज़राइल का मुक़ाबला करना चाहिए… लेकिन यदि आप ईरान की आलोचना कर दें तो आप हज़रत अली अलैहिस्सलाम के दुश्मन, हज़रत अब्बास के दुश्मन, हज़रत मेहदी के दुश्मन बना दिए जाते हैं…

किस दौर में रह रहे हो भाई? वक़्त-ए-ज़रूरत पर ईरान नहीं, हम ही एक-दूसरे के काम आएँगे। मेरे मुश्किल वक़्त में आप काम आए हैं, और मैं भी आऊँगा…

ख़बर है कि ईरान ने रात को इज़राइल पर 150 बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला कर दिया है, जिसमें इज़राइल के कई सैन्य केंद्रों और एयरबेस को ध्वस्त कर दिया गया है, जिनमें सैन्य मुख्यालय “किर्यात कंपाउंड” भी शामिल है। इसके अतिरिक्त इज़राइल में भारी तबाही की खबरें सामने आ रहे हैं… ख़बर यह भी है कि सनकी प्रधानमंत्री नेतन्याहू इज़राइल छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर भाग गया है…

तो ईरान की आलोचना इसलिए क्यों नहीं होनी चाहिए कि ग़ाज़ा के लोग ईरान के भरोसे इज़राइल से लड़ने निकल पड़े और 700 दिनों में 65,000 से अधिक लोगों ने शहादत दी, तब ईरान कहाँ था?

इज़राइल पर ईरान ने तब सीधे हमले क्यों नहीं किए? उस समय वह हिज़बुल्ला, शिया मिलिशिया और हूती जैसे छद्म संगठनों को आगे कर ग़ाज़ा के लोगों को बेवकूफ़ बना रहा था, और ग़ाज़ा पूरी तरह बर्बाद हो गया।

अगर उसी समय ईरान ने इज़राइल पर सीधा हमला किया होता, तो आज ग़ाज़ा की स्थिति कुछ और होती।

ईरान खाड़ी के अन्य देशों के ख़िलाफ़ भी हिज़बुल्ला, शिया मिलिशिया और हूती जैसे संगठनों के माध्यम से अपनी 1400 साल पुरानी न जाने कौन-सी दुश्मनी निकालता रहता है… जबकि उस समय के लोगों ने न तो ऐसा सोचा था, न ही कभी कहा।

तो फिर ईरान की आलोचना क्यों नहीं होनी चाहिए? इसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम, हज़रत अब्बास और हज़रत मेहदी कहाँ से आ गए? और माफ़ कीजिएगा, ये जितने आपके हैं, उतने ही हमारे भी हैं। हमारे दिलों में भी उनका वही मुक़ाम है जो आपके दिलों में है। आप हमें उनसे अलग नहीं कर सकते… इसलिए अपने दिल का ज़हर बाहर निकालिए…

ईरान को सिर्फ एक देश समझिए। भारत का सहयोगी देश है, इसलिए मेरी इच्छा है कि वह और मज़बूत हो, इतना कि वह इज़राइल और अमेरिका को परास्त कर सके… मगर उसकी सोच उसके आड़े आ जाती है। इसी सोच के कारण वह अलग-थलग पड़ा है। लड़ने और जीतने के लिए सबका साथ लेना ज़रूरी होता है। जिस दिन खाड़ी देशों में एकता आ गई, इज़राइल और अमेरिका घुटनों पर होंगे… मगर ईरान और उसके मूरीदों की फिरकावाराना सोच ऐसा होने नहीं देगी…

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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