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ईरान-इजरायल तनाव बढ़ाएगा खर्च

ईरान-इजरायल तनाव से तेल की कीमतों में उछाल, आपूर्ति श्रृंखला में रुकावट और भारत के व्यापार व रक्षा आयात पर असर पड़ सकता है।

मध्य पूर्व में ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक अर्थव्यवस्था में हलचल मचा दी है। हालिया सैन्य टकराव के बाद कच्चे तेल की कीमतों में उछाल देखा गया है, जिसका प्रभाव भारत जैसे विकासशील देशों पर गहरा पड़ सकता है। इजरायल द्वारा ईरान पर हमले के बाद तेल की कीमतें एक ही दिन में 7% से अधिक बढ़ गईं, जो पिछले कई महीनों में सबसे बड़ी वृद्धि है। इस संघर्ष के और बढ़ने से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बुरी तरह प्रभावित हो सकती है, जिससे कई वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं।

भारत-इजरायल व्यापार संबंध और आयात

भारत और इजरायल के बीच व्यापारिक संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने इजरायल को 2.13 अरब डॉलर का निर्यात किया, जबकि 1.33 अरब डॉलर का आयात किया। फरवरी-नवंबर 2024 के दौरान दोनों देशों के बीच कुल द्विपक्षीय व्यापार 2.36 अरब डॉलर रहा। भारत इजरायल से मुख्यतः रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी का आयात करता है। भारत पिछले दशक में इजरायल से 2.9 अरब डॉलर के रक्षा उपकरण आयात कर चुका है। इजरायल भारत का चौथा सबसे बड़ा सैन्य हार्डवेयर आपूर्तिकर्ता है, जिसने 2023-24 में भारत के कुल रक्षा आयात का 13% हिस्सा प्रदान किया।

भारत इजरायल से रडार, निगरानी और लड़ाकू ड्रोन का व्यापक आयात करता है। मिसाइल सिस्टम जैसे स्पाइक-एलआर एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल भी प्रमुख आयातित वस्तुओं में शामिल हैं। नेगेव लाइट मशीन गन, तावोर असॉल्ट राइफल और गलिल स्नाइपर जैसे छोटे हथियार भी भारत द्वारा आयात किए जाते हैं। हेरोन, हार्पी और सर्चर एमके-II जैसे ड्रोन भी भारतीय सेना के लिए महत्वपूर्ण आयात हैं।

इलेक्ट्रॉनिक्स और हाई-टेक उपकरणों के क्षेत्र में, इजरायल से भारत का सबसे बड़ा आयात इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं, जिनका मूल्य 2024 में 432.51 मिलियन डॉलर था। अक्टूबर 2023 से सितंबर 2024 के बीच, भारत ने इजरायल से 224 इलेक्ट्रॉनिक शिपमेंट आयात किए। ऑप्टिकल, फोटो, तकनीकी और चिकित्सा उपकरण 124.81 मिलियन डॉलर की मात्रा में आयात किए गए। मशीनरी और परमाणु रिएक्टर संबंधी उपकरण 92.73 मिलियन डॉलर के मूल्य में आयात हुए। उच्च तकनीक वाले कृषि उपकरण और सिंचाई प्रणालियां भी इजरायल से आयात की जाने वाली महत्वपूर्ण वस्तुएं हैं।

मोती और कीमती पत्थरों के व्यापार में, भारत इजरायल से मोती और कीमती पत्थरों का आयात करता है, जिनका मूल्य 2024 में 61.11 मिलियन डॉलर था। इजरायल से भारत के निर्यात में मोती और कीमती पत्थर प्रमुख हैं, जिनका मूल्य 2024 में 615.24 मिलियन डॉलर था।

भारत-ईरान व्यापार संबंध और आयात

भारत और ईरान के बीच व्यापारिक संबंध ऐतिहासिक रूप से मजबूत रहे हैं, हालांकि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण इनमें उतार-चढ़ाव आया है। 2023 में, ईरान ने भारत को 1.02 अरब डॉलर का निर्यात किया, जबकि भारत ने ईरान को 1.19 अरब डॉलर का निर्यात किया। वित्त वर्ष 2024-25 में, भारत ने ईरान को 1.2 अरब डॉलर का निर्यात किया और 441.9 मिलियन डॉलर का आयात किया।

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कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पादों के संदर्भ में, ऐतिहासिक रूप से ईरान भारत के लिए कच्चे तेल का एक प्रमुख स्रोत रहा है। 2018 में, भारत ने ईरान से प्रति दिन लगभग 700,000 बैरल कच्चा तेल आयात किया था, जो पिछले वित्तीय वर्ष के दैनिक औसत से लगभग 50% अधिक था। हालांकि, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण यह आयात प्रभावित हुआ है। ईरान से भारत के प्रमुख आयात में पेट्रोलियम गैस 126 मिलियन डॉलर की मात्रा में शामिल है। पेट्रोलियम कोक 118 मिलियन डॉलर के मूल्य में आयात किया गया। एसिक्लिक अल्कोहल डेरिवेटिव्स 309 मिलियन डॉलर की मात्रा में आयात हुए।

सूखे मेवे और फलों के व्यापार में, भारत ईरान से महत्वपूर्ण मात्रा में सूखे मेवे और फल आयात करता है। 2011-12 सीजन में, भारत का ईरानी फल और मेवों का आयात 54.33 मिलियन डॉलर था, जिसमें केले, खजूर और किशमिश प्रमुख आयातित वस्तुएं थीं। यह आयात लगातार बढ़ रहा है, जिसमें वर्ष-दर-वर्ष 30% की वृद्धि देखी गई।

कांच के उत्पादों के मामले में, भारत ईरान से उच्च गुणवत्ता वाले फ्लोट ग्लास का आयात करता है, जिसका उपयोग निर्माण, रेफ्रिजरेशन, दर्पण और सौर ऊर्जा उद्योगों में किया जाता है। हालांकि, 2018 में भारत ने ईरानी फ्लोट ग्लास पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया था, जो प्रति टन शून्य से 55.59 डॉलर तक था।

ईरान-इजरायल संघर्ष का भारत पर प्रभाव

ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव का भारत पर कई प्रकार से प्रभाव पड़ सकता है। कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि सबसे प्रमुख चिंता है। इजरायल द्वारा ईरान पर हमले के बाद, तेल की कीमतें एक ही दिन में 14% तक बढ़ गईं, हालांकि बाद में यह वृद्धि 7% तक सीमित हो गई। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि संघर्ष बढ़ता है, तो तेल की कीमतें 100 डॉलर प्रति बैरल से अधिक हो सकती हैं, जो 2022 के बाद से पहली बार होगा। भारत, जो अपनी तेल जरूरतों का 84% आयात करता है, इस वृद्धि से बुरी तरह प्रभावित हो सकता है।

आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान एक और महत्वपूर्ण चिंता है। मध्य पूर्व में संघर्ष से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान उत्पन्न हो सकता है, विशेष रूप से होरमुज जलडमरूमध्य के माध्यम से होने वाले शिपिंग में। यह जलडमरूमध्य वैश्विक तेल व्यापार का एक महत्वपूर्ण मार्ग है, और इसमें किसी भी प्रकार का व्यवधान वैश्विक ऊर्जा संकट को जन्म दे सकता है। भारत के लिए, जो अपने अधिकांश आयात के लिए समुद्री मार्गों पर निर्भर है, यह विशेष रूप से चिंताजनक है।

हवाई यात्रा की लागत में वृद्धि भी देखी जा सकती है। मध्य पूर्व में तनाव के कारण हवाई यात्रा की लागत में वृद्धि हो सकती है। भारत से अमेरिका जाने वाली उड़ानों के किराए में पहले से ही 50% की वृद्धि देखी गई है। पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र के बंद होने के कारण, भारतीय एयरलाइंस खाड़ी देशों के माध्यम से यात्रा करती हैं, और संघर्ष के समय उन्हें वैकल्पिक मार्ग तलाशने होंगे।

रक्षा आपूर्ति पर प्रभाव भी संभावित है। इजरायल ने भारत को आश्वासन दिया है कि गाजा में चल रहे युद्ध के बावजूद रक्षा आपूर्ति प्रभावित नहीं होगी। हालांकि, यदि संघर्ष और बढ़ता है, तो इजरायल की अपनी रक्षा जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करने की संभावना है, जिससे भारत को प्रभावित हो सकता है।

उर्वरक आपूर्ति पर भी प्रभाव पड़ सकता है। भारत ने हाल के वर्षों में इजरायल से उर्वरक आयात में वृद्धि की है, विशेष रूप से रूस और बेलारूस से आपूर्ति में व्यवधान के बाद। संघर्ष के बढ़ने से इस आपूर्ति पर प्रभाव पड़ सकता है, जिससे भारत की कृषि उत्पादकता प्रभावित हो सकती है।

भारत के लिए रणनीतिक निहितार्थ

ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव के बीच, भारत को अपनी आर्थिक और रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए सावधानीपूर्वक नेविगेट करना होगा। ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत को अपने तेल आयात स्रोतों को विविधतापूर्ण बनाने की आवश्यकता है, जैसा कि पहले से ही देखा गया है जब मध्य पूर्व से तेल आयात 2019 में चार साल के निचले स्तर पर पहुंच गया था। वैकल्पिक व्यापार मार्ग विकसित करना भी महत्वपूर्ण है, चाबहार बंदरगाह जैसे वैकल्पिक व्यापार मार्गों का विकास महत्वपूर्ण है, जो भारत को ईरान और मध्य एशिया तक पहुंच प्रदान करता है।

स्वदेशी क्षमताओं का निर्माण भी आवश्यक है। भारत को अपनी स्वदेशी रक्षा और उर्वरक उत्पादन क्षमताओं को मजबूत करने की आवश्यकता है, जिससे आयात पर निर्भरता कम हो सके। कूटनीतिक संतुलन बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है। भारत को ईरान और इजरायल दोनों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने की आवश्यकता है, क्योंकि दोनों देश भारत के महत्वपूर्ण व्यापारिक और रणनीतिक भागीदार हैं।

मध्य पूर्व में स्थिति अभी भी अस्थिर है, और भारत को अपनी आर्थिक और रणनीतिक योजनाओं में इस अनिश्चितता को ध्यान में रखना होगा। तेल की कीमतों में वृद्धि, आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान और व्यापार मार्गों में परिवर्तन से निपटने के लिए तैयारी करना महत्वपूर्ण होगा।

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रीतु कुमारी OBC Awaaz की एक उत्साही लेखिका हैं, जिन्होंने अपनी पत्रकारिता की पढ़ाई बीजेएमसी (BJMC), JIMS इंजीनियरिंग मैनेजमेंट एंड टेक्निकल कैंपस ग्रेटर नोएडा से पूरी की है। वे समसामयिक समाचारों पर आधारित कहानियाँ और रिपोर्ट लिखने में विशेष रुचि रखती हैं। सामाजिक मुद्दों को आम लोगों की आवाज़ बनाकर प्रस्तुत करना उनका उद्देश्य है। लेखन के अलावा रीतु को फोटोग्राफी का शौक है, और वे एक अच्छी फोटोग्राफर बनने का सपना भी देखती है। रीतु अपने कैमरे के ज़रिए समाज के अनदेखे पहलुओं को उजागर करना चाहती है।

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