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सेना में जाति बताओ तो देशद्रोही, मंत्री अपमान करे तो क्षमायोग्य?

सेना में जाति बताने पर हंगामा, पर जब मंत्री मुस्लिम महिला अधिकारी को अपमानित करे तो माफी मांगकर बच निकलने की कोशिश? दोहरे मापदंडों पर उठे सवाल।

भारत पाकिस्तान के बीच युद्धविराम की घोषणा हो गई है, उपलब्धि के नाम पर हमारे पास कुछ बयान भी बच गए हैं जो गाहे बगाहे माहौल को गर्म कर देते हैं, और इन्हीं बयानों के बीच कहीं खो गया है आम जनता का सवाल…

चौराहों पर चाय की चुस्की के बीच आज भी एक सवाल चाय के प्याले के साथ साथ होंठों को छू लेता है कि जब युद्ध हम जीत ही रहे थे तो सीजफायर क्यों ?
किसने करवाया , किसके दबाव के कारण हुआ क्यों हुआ इन सवालों से इतर एक बड़ा मसला हमारे सामने खड़ा हो गया है कि भारत में मुसलमानों/दलितों/पिछड़ों के बलिदान का महत्व बस इतना रह गया है कि उन्हें आतंकियों की बहन कहा जाए।

कर्नल सोफिया पर आपत्तिजनक बयान और राजनीतिक प्रतिक्रिया

भाजपा के एक मंत्री ने कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकियों की बहन बता दिया, मंत्री ने अपने बयान में कहा कि,

“उन्होंने कपड़े उतार-उतार कर हमारे हिंदुओं को मारा और मोदी जी ने उनकी बहन को उनकी ऐसी की तैसी करने उनके घर भेजा।’

शाह ने आगे कहा- ‘अब मोदी जी कपड़े तो उतार नहीं सकते। इसलिए उनकी समाज की बहन को भेजा, कि तुमने हमारी बहनों को विधवा किया है, तो तुम्हारे समाज की बहन आकर तुम्हें नंगा करके छोड़ेगी। देश का मान-सम्मान और हमारी बहनों के सुहाग का बदला तुम्हारी जाति, समाज की बहनों को पाकिस्तान भेजकर ले सकते हैं।”

इस पर मामला अभी तक तूल पकड़े ही है, लेख लिखे जाने तक खबर है कि सुप्रीम कोर्ट ने SIT बना दी है जबकि अभी गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए मंत्री के माफी को नामंजूर कर दिया है।

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भाजपा के इस बयानवीर का ये कोई पहला विवादित बयान नहीं है इससे पहले भी मंत्री जी राहुल गांधी को लेकर एक विवादित बयान दे चुके हैं।

मुसलमानों की सामाजिक स्थिति और भाजपा में उनकी इज्जत का अंदाजा आप इस बयान से लगा सकते हैं जब एक सैन्य अधिकारी के बारे में मंत्री जी ऐसी राय रखते हैं तो आम मुसलमानों के बारे में उनकी राय क्या होगी ?

ऑपरेशन सिंदूर और PDA की भूमिका

ऑपरेशन सिंदूर का पूरा क्रेडिट तीन सैन्य अधिकारियों को जाता है जिनमें हमारी दो बहने हैं जो नारी सम्मान का प्रतीक भी हैं कर्नल सोफिया कुरैशी, विंग कमांडर व्योमिका सिंह, एवं तीसरे ए के भारती जिनके नेतृत्व में हवाई हमलों को अंजाम दिया गया।

प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने इन्हीं तीनों अधिकारियों का नाम लेते हुए कह दिया कि एक मुस्लिम, दूसरी दलित और तीसरे पिछड़े वर्ग (यादव) से हैं इस ऑपरेशन को कामयाब बनाने में PDA का रोल रहा है।

बस इस बयान का मतलब भाजपा ने सैन्य अधिकारियों का अपमान माना और पूरी भाजपा समेत मीडिया संस्थाओं में बैठे पूंजीवादी सत्ता के भोंपू भी एक ही सुर में बज उठे।

क्या जाति बताना गुनाह है?

इस देश में जहां एनकाउंटर भी जाति और धर्म देखकर होता हो, जहां अपराध भी धर्म के आधार पर तय किए जाते हैं कहां जाति देखकर उच्च जाति के लोगों द्वारा दलितों पर पेशाब किया जाता है, वहां इन तीनों की जाति बता देना कौन सा अपराध है ?

भारत देश में जहां मुस्लिम अपने आप को अपमानित महसूस कर रहा था विजय शाह के बयान के बाद, क्या उसे गर्व नहीं हुआ ?
दलितों पर पेशाब वाले घटना से, या दलित बच्ची के रेप के बाद हत्या और उसके बाद शव को भी परिजनों को ना सौंपकर जला देने से अगर दलित अपमानित महसूस कर रहा था क्या उसे विंग कमांडर व्योमिका सिंह की कहानी सुनकर गर्व नहीं महसूस हुआ होगा ?
ए के भारती का भी वही हाल है…

दबे-कुचलों के बलिदान का अपमान क्यों?

पाकिस्तान पर हमले से ही देश में जश्न का माहौल था… क्या ये जातियां जश्न नहीं मना सकती ? क्या PDA के लोगों को जश्न मनाने का अधिकार नहीं है, हम तो चाहते हैं कि गांव गांव एक एक व्यक्ति तक ये बात पहुंचे कि इन तीनों की जाति क्या थी ये लोग अपने अपने समाज के साथ पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं।

लेकिन मसला तो ये है कि उच्च जाति के कुछ लोगों को ये बरदाश्त नहीं होता कि ये दबे कुचले समाज से आने वाले लोग आज नेशनल हीरो कैसे बन गए ?

1857 की क्रांति के पहले से लेकर आजमगढ़ में विरोध का बिगुल बजने तक और फिर रेजांगला तक सबसे ज्यादा बलिदान अगर किसी ने दिया है तो आप इतिहास उठकर देख लीजिए यही जातियां रही हैं।

जब विरोध जाति पर आधारित हो, तो गर्व क्यों नहीं?

मै इन बलिदानों को जातियों के नहीं बांटता क्योंकि हम सब पहले एक भारतीय हैं, लेकिन अगर समर्थन या विरोध केवल जाति के आधार पर होगा तो हम भी अपने अपने समाज के साथ खड़े हैं।
किसी को चमार कहना उसके लिए गर्व की बात है, चमार शब्द को आपने अपने क्रोध को शांत करने या दूसरों को अपमानित करने के लिए सदियों से इस्तेमाल किया है, यही वजह है कि “चमार” शब्द में आपको अपमान छुपा नजर आ रहा है, आपकी यह आपत्ति हमारी बहन विंग कमांडर व्योमिका सिंह जी से प्रेम नहीं बल्कि आपकी जातीय कुंठा को दर्शाता है।

और जरा सोचिए भाजपा तो खुद अब जातीय जनगणना करवाने जा रही है, क्या चमारों की जनगणना नहीं होगी अगर होगी तो जाति के कॉलम में “चमार” शब्द ही लिखा जाएगा और शायद यही व्योमिका सिंह जी भी लिखें।

पिछड़ा, दलित , मुसलमान इस देश की ताकत हमेशा से रहा है हमेशा रहेगा…
जय हिंद…
जय हिंद की सेना।

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फैज़ अहमद एक स्वतंत्र पत्रकार हैं, जो राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों पर पैनी नजर रखते हैं। वे विशेष रूप से हाशिए पर खड़े तबकों की आवाज़ को मुख्यधारा में लाने के लिए लिखते हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि से आने वाले फैज़ ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकारिता को जनसरोकार का माध्यम बनाया। OBC आवाज़ के लिए वे सामाजिक न्याय, आरक्षण, शिक्षा, और पिछड़े वर्गों से जुड़े सवालों पर शोधपरक लेख और विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। उनकी लेखनी में तथ्यों की गहराई और जमीनी सच्चाई की झलक मिलती है, जो पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देती है।

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