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सूचना से सरोकार: पत्रकारिता की असली ज़मीन

पत्रकारिता की सफलता विश्वसनीय नेटवर्क, जमीनी सक्रियता और सत्य की निर्भीक खोज पर निर्भर है, न कि तकनीक या प्रेस विज्ञप्तियों पर, यही पत्रकारिता की असली आत्मा है।

पत्रकार हो या पुलिस, दोनों की कार्यप्रणाली का आधार सूचना पर टिका होता है, और सूचना का प्रमुख स्रोत अक्सर मुखबिर ही होते हैं। ये मुखबिर सामान्यतः किसी अपराधी, भ्रष्टाचारी के प्रतिद्वंद्वी, पूर्व सहयोगी या उससे पीड़ित होते हैं, जो अपने विरोधी को नुकसान पहुँचाने के उद्देश्य से या पुलिस अथवा पत्रकार से लोभ, लाभ या सुरक्षा की अपेक्षा में गोपनीय जानकारी साझा करते हैं।

आज जहां पुलिस ने पारंपरिक मुखबिरों से आगे बढ़कर इलेक्ट्रॉनिक सर्विलांस जैसे कॉल इंटरसेप्शन, लोकेशन ट्रैकिंग, सीसीटीवी निगरानी आदि पर अधिक भरोसा करना शुरू कर दिया है, वहीं पत्रकारों के पास ऐसी तकनीकी सुविधाएं नहीं होतीं। पत्रकार के पास न तो किसी की बातचीत सुनने की कानूनी सुविधा है, न ही किसी की गतिविधियों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से ट्रेस करने का अधिकार। उसके पास एकमात्र साधन होता है, उसका नेटवर्क, उसकी विश्वसनीयता, और उसका सोर्स।

इसलिए एक जिम्मेदार पत्रकार को सूचनाएं प्राप्त करने के लिए फील्ड में सक्रिय रहना पड़ता है। इसके लिए मैं स्वयं भी कई बार बिना ‘प्रेस’ लिखे वाहन या अपनी स्कूटी के साथ अपनी पहचान छुपाकर मौके पर पहुँचता हूँ, ताकि किसी भी पूर्वाग्रह के बिना लोगों से बात कर सकूं और सत्यता की तह में जा सकूं। यह प्रक्रिया न केवल जोखिम भरी होती है, बल्कि धैर्य, विवेक और खर्चीली भी होती है।

पत्रकार को हर सूचना के पीछे छिपे उद्देश्य को समझना होता है। उसे यह पहचानना होता है कि कहीं यह खबर किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं, या इसमें कोई व्यक्तिगत स्वार्थ तो नहीं छिपा है। सूचना चाहे जितनी भी सनसनीखेज हो, यदि पत्रकार उसका गहराई से सत्यापन नहीं करता, तो उसकी पत्रकारिता संदिग्ध मानी जाएगी।

जिस पत्रकार का नेटवर्क मजबूत होता है और जिसकी निष्पक्षता पर लोगों को भरोसा होता है, उसी के पास भ्रष्टाचार, अपराध, अनैतिक कृत्यों और सत्ता के दुरुपयोग जैसी संवेदनशील खबरें पहले पहुँचती हैं। लेकिन यह नेटवर्क स्थायी रूप से नहीं बनता; इसके लिए पत्रकार को हमेशा फील्ड में सक्रिय रहना पड़ता है। उसे खाक छाननी पड़ती है और उन स्थलों पर जाना पड़ता है जहां जान का खतरा तक हो सकता है।

इसके विपरीत, जो पत्रकार सिर्फ बैठकर सरकारी प्रेस विज्ञप्तियों या साधारण घटनाओं की रिपोर्टिंग पर निर्भर हो जाते हैं, वे पत्रकारिता के असली उद्देश्य से भटक जाते हैं। ऐसे पत्रकारों की खबरें सतही होती हैं और समाज में सार्थक बदलाव लाने की क्षमता खो देती हैं।

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आज के डिजिटल युग में, जब सूचनाएं तेजी से फैलती हैं, पत्रकार के लिए चुनौती और भी बड़ी हो गई है। उसे न सिर्फ सूचना हासिल करनी है, बल्कि उसकी सच्चाई को परखकर समाज के सामने तथ्यों को बेबाकी से प्रस्तुत करना है, बिना किसी डर, दबाव या लोभ के।

इसलिए कहा जा सकता है कि पत्रकारिता में सफलता और सम्मान उसी को मिलता है, जो जमीनी सच्चाई से जुड़ा हो, जिसका नेटवर्क भरोसेमंद हो, जो फील्ड में लगे रहकर तथ्यों को तलाशे और जिसकी लेखनी जनहित के लिए निर्भीक हो। यही पत्रकारिता की आत्मा है, और यही समाज की रक्षा की पहली पंक्ति।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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