अपनी नियुक्ति के समय, बहुत उच्च नैतिक आधार (हाई मोरल ग्राउंड) और एक निराश देश की उम्मीदों के साथ भारत के 50वें मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठे जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ ने रिटायरमेंट के बाद नैतिकता, भारतीय न्याय के सिद्धांत और मोरल ग्राउंड को रसातल में पहुँचा दिया है। वे इस हद तक नीचे गिर चुके हैं कि अब स्वयं सर्वोच्च न्यायालय को केंद्र सरकार से यह कहना पड़ रहा है कि जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ से 5, कृष्ण मेनन मार्ग स्थित आधिकारिक आवास खाली कराया जाए, जिसे वे खाली नहीं कर रहे हैं।
दरअसल, नियमों के अनुसार, जस्टिस चंद्रचूड़ को अपने रिटायरमेंट के 3 से 6 महीने के भीतर बंगला खाली कर देना चाहिए। सामान्यतः लोग 10–15 दिनों के भीतर ही नए मुख्य न्यायाधीश के लिए बंगला खाली कर देते हैं। लेकिन दो विकलांग बेटियों को गोद लेने की खबर वायरल होने के चलते ‘हाई मोरल ग्राउंड’ पर भारत के मुख्य न्यायाधीश बने जस्टिस चंद्रचूड़ अब उसी बंगले को खाली करने में आनाकानी कर रहे हैं, जबकि दिल्ली के तुगलक रोड स्थित टाइप-7 बंगला नंबर 14 पहले ही उन्हें आवंटित किया जा चुका है।
कुछ मामलों में, सुरक्षा कारणों से सरकार रिटायरमेंट के बाद भी पूर्व मुख्य न्यायाधीश को बंगला आवंटित करती है, मगर जस्टिस चंद्रचूड़ वहां जाने का नाम ही नहीं ले रहे हैं।
उनके इस बंगला प्रेम के कारण जस्टिस संजीव खन्ना को वह बंगला नहीं मिल पाया, और वे अब रिटायर हो चुके हैं। वहीं अब जस्टिस गवई भी मुख्य न्यायाधीश के आधिकारिक आवास का इंतजार कर रहे हैं।
10 नवंबर 2024 को मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायर हुए जस्टिस चंद्रचूड़ अब कह रहे हैं कि उन्हें बंगले में रहने के लिए मौखिक अनुमति प्राप्त है।
लेकिन सवाल यह है कि, सरकारी कामकाज में मौखिक अनुमति किसे कहते हैं? क्या देश के मुख्य न्यायाधीश रहे व्यक्ति को यह नहीं पता कि भारतीय न्याय व्यवस्था में भगवान के आदेश नहीं, बल्कि सबूत और गवाह चलते हैं?
शायद डी. वाई. चंद्रचूड़ को यह जानकारी नहीं कि मौखिक आदेश की सरकारी प्रक्रिया में कोई वैधता नहीं होती। शायद इसीलिए वे बंगला खाली करने के लिए भगवान के आदेश की प्रतीक्षा कर रहे होंगे…