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कुणाल कामरा गद्दार मामला: FIR के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंचे स्टैंड-अप कॉमेडियन

कुणाल कामरा गद्दार मामला में कॉमेडियन ने बॉम्बे हाईकोर्ट में FIR को चुनौती दी है, जिसे उन्होंने संविधान के मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया है। यह विवाद देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक सहिष्णुता के टकराव को उजागर करता है।

कुणाल कामरा गद्दार मामला इन दिनों देशभर में सुर्खियों में है। मशहूर स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने खुद पर दर्ज एफआईआर को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी है। यह एफआईआर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को अप्रत्यक्ष रूप से “गद्दार” कहने के आरोप में दर्ज की गई थी। कामरा का कहना है कि यह मामला उनके अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, पेशे की आज़ादी और जीवन के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है।

पूरा मामला तब शुरू हुआ जब कुणाल कामरा ने एक कॉमेडी शो के दौरान एक पुराने हिंदी गाने की पैरोडी करते हुए, बिना नाम लिए, एकनाथ शिंदे को “गद्दार” कहा। यह तंज उस राजनीतिक घटनाक्रम से जुड़ा था जब शिंदे ने उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत करते हुए अलग सरकार बना ली थी। इस कार्यक्रम का वीडियो कुणाल कामरा ने स्वयं सोशल मीडिया पर डाला, जिसे बाद में शिवसेना (UBT) नेता संजय राउत ने भी साझा किया।

वीडियो वायरल होते ही एकनाथ शिंदे के समर्थकों में रोष फैल गया। इसके बाद मुंबई के खार इलाके स्थित हबीटैट स्टूडियो में तोड़फोड़ की गई, जहां यह शो आयोजित हुआ था। इस मामले में पुलिस ने कई लोगों को गिरफ़्तार किया, जिन्हें बाद में जमानत मिल गई। दूसरी ओर, कुणाल कामरा को तीन बार पूछताछ के लिए बुलाया गया, लेकिन उन्होंने किसी भी समन का जवाब नहीं दिया।

इसके बाद शिवसेना विधायक मुरजी पटेल की शिकायत पर मालाड पुलिस थाने में एफआईआर दर्ज की गई। एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 353(1)(b) — जो लोक विघटनकारी बयान से संबंधित है, और 356(2) — जो मानहानि से जुड़ी है, को आधार बनाया गया है। हालांकि, कुणाल कामरा को मद्रास हाईकोर्ट से अंतरिम ट्रांजिट अग्रिम जमानत मिल चुकी है क्योंकि वह तमिलनाडु के स्थायी निवासी हैं।

कुणाल कामरा गद्दार मामला में दायर याचिका के अनुसार, यह एफआईआर एक हास्य कलाकार के व्यंग्य को अपराध मानने की कोशिश है। उन्होंने हाईकोर्ट से अपील की है कि इसे रद्द किया जाए क्योंकि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 का उल्लंघन करती है। अनुच्छेद 19 नागरिकों को अभिव्यक्ति और पेशे की स्वतंत्रता प्रदान करता है, जबकि अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है।

अब यह मामला 21 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सरंग कोतवाल की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है। देशभर की नजर इस पर टिकी हुई है कि अदालत इस मुद्दे को हास्य की आज़ादी मानेगी या फिर इसे कानून का उल्लंघन मानकर कार्यवाही जारी रखेगी। इस मामले ने एक बार फिर सवाल खड़ा किया है कि क्या भारत में व्यंग्य के नाम पर किसी राजनेता की आलोचना करना अपराध है।

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कुणाल कामरा गद्दार मामला अब सिर्फ एक कॉमेडी शो का हिस्सा नहीं रह गया है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक सहिष्णुता के बीच संतुलन का परीक्षण बन गया है। अगर कोर्ट से कुणाल कामरा को राहत मिलती है, तो यह सभी कलाकारों और व्यंग्यकारों के लिए एक बड़ा संदेश होगा।

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