पूर्व प्रधानमंत्री बी.पी. सिंह, जिन्होंने धूल खा रही मंडल कमीशन की रिपोर्ट पर अपने एक हस्ताक्षर से हजारों वर्षों से शोषित, पीड़ित, वंचित, पिछड़े समाज की तक़दीर बदल दी, आज़ादी के बाद यह देश में दूसरी मौन क्रांति थी।
आज उनका जन्मदिन उन करोड़ों ओबीसी समाज के लोगों के लिए प्रेरणा का दिन है। उन्होंने मंडल आयोग की सिफ़ारिशें लागू करके शिक्षा और सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया। यह कोई सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि हज़ारों वर्षों से संसाधनों और अधिकारों से वंचित समाज के लिए न्याय की एक निर्णायक शुरुआत थी।
स्व. वी.पी. सिंह ने न केवल मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू की, बल्कि वे जातिगत असमानता के विरुद्ध एक मज़बूत आवाज़ बनकर उभरे। एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने बेबाक़ी से बताया कि कैसे उनके व्यक्तित्व को बदनाम करने के लिए राजा नहीं फ़कीर है, देश की तक़दीर है” को तोड़-मरोड़ कर, राजा नहीं रंक है, देश का कलंक है, जैसे स्लोगन से जातिवादी मीडिया ने रिपोर्टिंग की।
मंडल रिपोर्ट पर मीडिया पक्षपाती रवैया अपना रहा था, और समाज के वर्चस्वशाली तबके किस तरह से मंडल कमीशन की रिपोर्ट के विरोध में एकजुट हो गए थे। फिर भी बी.पी. सिंह का साहस उस समय के स्थापित सामंतवादी और मनुवादी ढांचे को सीधी चुनौती थी। आज भी जब वंचित समाज को उसका हक़ और हिस्सा मिलना शुरू होता है, तब सत्ता और संसाधनों पर कब्जा जमाए वर्ग को पीड़ा होती है। वे नए-नए नामों, तरीक़ों और बहानों (जैसे NFS) के ज़रिए वंचितों के अधिकार छीनने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन हमें याद रखना होगा कि सामाजिक न्याय की यह लड़ाई अभी समाप्त नहीं हुई है। वी.पी. सिंह जी की विरासत हमें सिखाती है कि न्याय, समानता और भागीदारी के लिए निरंतर संघर्ष करना आवश्यक है।
सामाजिक न्याय की बुलंद आवाज़, मंडल मसीहा, पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह जी को भारत रत्न देकर उनके इस ऐतिहासिक कार्य को यादगार बनाना चाहिए। उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।