मणिपुर के दो प्रमुख संगठनों, थाडौ इनपी मणिपुर और मैतेई अलायंस ,ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय से मांग की है कि राज्य की अनुसूचित जनजाति (ST) सूची से Any Kuki Tribes (AKT) श्रेणी को हटाया जाए। इन संगठनों का कहना है कि इस श्रेणी की अस्पष्टता के कारण विदेशियों को भी मणिपुर के मूल निवासियों के अधिकार मिल जाते हैं, जिससे राज्य की ज़मीन, संसाधन और पहले से मौजूद जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों पर गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
मान्यता के मानकों पर सवाल
संगठनों ने अपने ज्ञापन में तर्क दिया है कि Any Kuki Tribes में न तो कोई विशिष्ट भाषा है, न अलग सांस्कृतिक विरासत, न ही भौगोलिक अलगाव, जबकि ये सभी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति की मान्यता के लिए जरूरी मानक हैं। उनका आरोप है कि AKT को 2003 में राजनीतिक कारणों और अपारदर्शी प्रक्रिया के तहत सूची में जोड़ा गया, जबकि मणिपुर की अन्य सभी जनजातियां भाषाई और सांस्कृतिक रूप से विशिष्ट हैं।
सामाजिक सौहार्द और कानूनी उलझन
ज्ञापन में कहा गया है कि AKT की मौजूदगी से राज्य में जातीय तनाव और सामाजिक असंतुलन बढ़ा है। इसे मणिपुर की किसी भी मान्यता प्राप्त जनजाति द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है, बल्कि इसकी वजह से कानूनी भ्रम और सामाजिक टकराव और बढ़ गए हैं। संगठनों का कहना है कि यह श्रेणी न सिर्फ गैर-जरूरी है, बल्कि मणिपुर की सामाजिक संरचना के लिए नुकसानदेह भी है।
सरकार का रुख और आगे की राह
यह मांग मणिपुर सरकार की आधिकारिक स्थिति के अनुरूप है, जिसने 2018 और 2023 में कैबिनेट फैसलों के तहत Any Kuki Tribes श्रेणी को हटाने की सिफारिश केंद्र को भेजी थी। अब देखना होगा कि केंद्र सरकार इस संवेदनशील मुद्दे पर क्या फैसला लेती है, क्योंकि यह मणिपुर की जनजातीय राजनीति और सामाजिक संतुलन के लिए बेहद अहम है।