उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का शासन संविधान से नहीं, बल्कि मनुस्मृति के नियमों पर चल रहा है। यहाँ जाति और वर्ण व्यवस्था के आधार पर काम बाँटा जाता है। इटावा की घटना, एक चरवाहा अहीर कथावाचक को उसकी भक्ति के लिए नहीं, बल्कि उसकी जाति के कारण अपमानित किया जा रहा है।
इटावा में कथावाचक के साथ अन्याय
इटावा जिले के अहेरीपुर में एक यादव (अहीर) कथावाचक रामकथा सुना रहे थे। वे भगवान की कथा और भक्ति का संदेश दे रहे थे। लेकिन कुछ ब्राह्मणों को यह पसंद नहीं आया, क्योंकि वे धर्म को अपना निजी धंधा मानते हैं। सिर्फ इसलिए कि एक चरवाहा धर्म का मंच संभाल रहा था, उसकी पिटाई की गई, सिर मुंडवाया गया, नाक रगड़ी गई और उसे शूद्र होने की सजा दी गई। मनुस्मृति कहती है कि ज्ञान और कथावाचन केवल ब्राह्मणों का काम है।
यह लोकतंत्र नहीं, मनुवाद है
जब एक यादव को भगवत कथा सुनाने से रोका जाता है, तो यह लोकतंत्र नहीं, मनुवाद है। हम नहीं भूल सकते कि यही ताकतें हैं, जिन्होंने सदियों तक पिछड़ों, शूद्रों और दलितों को मंदिरों से दूर रखा। इन्होंने धर्म और भक्ति को ब्राह्मणों की संपत्ति बना दिया। आज भी ये मनुवादी लोग देश को संविधान से नहीं, मनुस्मृति से चलाना चाहते हैं। ओबीसी समाज को अंधविश्वास और पाखंड छोड़कर वैज्ञानिक और तार्किक सोच अपनानी चाहिए।
अपमान और शोषण की कहानी
मुकुटमणि यादव और संतसिंह यादव के साथ इटावा में जो हुआ, वह नई बात नहीं है। यह हजारों सालों से पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज के साथ होने वाले अपमान और शोषण की एक कड़ी है। यह उस सामाजिक ढांचे को दिखाता है, जिसमें ब्राह्मण वर्ग ने ज्ञान, धर्म और संस्कृति पर कब्जा किया हुआ है।
संवैधानिक अधिकारों पर हमला
आजादी के 76 साल बाद, संविधान से मिले अधिकारों के दम पर हाशिए के लोग अपनी पहचान और सम्मान के लिए लड़ रहे हैं। फिर भी उन्हें विरोध झेलना पड़ता है। संतसिंह यादव जैसे चरवाहा संत उस पुरानी व्यवस्था को तोड़ रहे हैं, जिस पर कुछ जातियों का कब्जा है। यह घटना दिखाती है कि कुछ लोग अब भी ओबीसी समाज की चेतना को दबाना चाहते हैं।
यादव समाज और वैचारिक आजादी
उत्तर भारत का यादव समाज जनसंख्या में बड़ा है, लेकिन यह ललई सिंह यादव और पेरियार जैसे क्रांतिकारी विचारकों से दूर है। यह दूरी उसे धार्मिक पाखंड और ब्राह्मणवादी कब्जे में रखती है।
यह धर्म नहीं, शोषण है
यह सिर्फ धार्मिक सवाल नहीं है। यह सत्ता, ज्ञान और सम्मान बाँटने का सवाल है। जो धर्म तुम्हें मंदिर में घुसने या वेद पढ़ने से रोकता है, जो जन्म के आधार पर तुम्हें नीचा समझता है, वह धर्म नहीं, शोषण की व्यवस्था है। पिछड़े, दलित और आदिवासी समाज को इस ब्राह्मणवादी धर्म को नकारना होगा। उनकी आजादी का रास्ता फूले, अम्बेडकर और पेरियार जैसे विचारकों की समानता और वैज्ञानिक सोच से होकर जाता है।
फूले, अम्बेडकर और पेरियार का रास्ता
फूले, अम्बेडकर और पेरियार ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था के शोषण को पहचाना और इसके समाधान दिए। शिक्षा, आत्मसम्मान और तार्किक सोच से हमें यह चेतना फैलानी होगी। ताकि संतसिंह, मुकुटमणि और देविका पटेल जैसे लोग धार्मिक जाल में फंसकर अपमानित न हों। वे समाज को समानता, मानवता और सम्मान के साथ जीने का रास्ता दिखाएँ।
कथाकार से सारा आकाश
मुकुट मणि यादव जैसे कथाकार राजेंद्र यादव बनकर ‘सारा आकाश’ लिख सकते हैं। इटावा की घटना को लेकर लोग समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव से आंदोलन की उम्मीद करते हैं, लेकिन यह समस्या का आसान जवाब नहीं है। यह मामला राजनीति से ज्यादा सामाजिक और सांस्कृतिक है। संत सिंह यादव ने सामाजिक अव्यवस्था के धंधे पर हाथ डाला है। अगर अहीर-गड़ेरिया पढ़ने-पढ़ाने और कथा सुनाने में आए, तो वे भगवत कथा से आगे बढ़कर संविधान, डार्विन और आइंस्टीन की बात करेंगे।
चरवाहों का सपना
ये कथाकार राजेंद्र यादव की तरह ‘सारा आकाश’ जैसे उपन्यास लिखेंगे और पढ़ाएंगे। अगर यादव समाज चरवाहा स्कूल और विश्वविद्यालय बनाए, तो वर्ण व्यवस्था खत्म हो जाएगी। अभी उनके सपने संसद, विधायक और प्रधान तक हैं। इस घटना को सिर्फ राजनीतिक न्याय तक सीमित करना गलत होगा। चरवाहों का सपना सारा आकाश, धरती और पाताल तक जाएगा।
युवा पीढ़ी का दर्द और भविष्य
सारा आकाश’ में भारत की युवा पीढ़ी का दर्द और भविष्य का नक्शा है। कहा जाता है कि सारा आकाश खुला है, बस हिम्मत चाहिए। लेकिन हकीकत में हर कदम पर बेड़ियाँ हैं और हर दरवाजा बंद है। युवा बेचैन है, उसे रास्ता नहीं दिखता। इस बेचैनी में उसका तन, मन और सपना टूटता है। फिर वह क्या करे, पलायन, आत्महत्या या आत्मसमर्पण?