नई दिल्ली: भारत की मेडिकल शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर सवालों के घेरे में है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की जांच में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय, राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NMC), विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अधिकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों के मालिकों के बीच कथित भ्रष्टाचार नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है।
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि इस नेटवर्क ने फर्जी तरीके से मेडिकल कॉलेजों को मान्यता दिलाने और सीट रिन्युअल कराने के बदले मोटी रिश्वत वसूली। इस मामले में फॉर्मर फॉर्मेसी काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन डॉ. मोंटू पटेल पर ₹5400 करोड़ के घोटाले का आरोप है। वे कथित रूप से परिवार सहित विदेश भागने की फिराक में थे, लेकिन एजेंसियों ने समय रहते उन्हें पकड़ लिया।
कैसे चलता था भ्रष्टाचार का नेटवर्क?
CBI के मुताबिक, मंत्रालय के अफसर, NMC और UGC से जुड़े अधिकारी निजी मेडिकल कॉलेजों के संचालकों के साथ मिलकर कॉलेजों को अप्रूवल देने के लिए ‘रेट कार्ड’ बनाते थे। यह रेट कार्ड कॉलेज की मान्यता, सीट बढ़ाने, या नवीनीकरण के लिए निर्धारित की गई रिश्वत की राशि होती थी। कॉलेजों को फर्जी निरीक्षण रिपोर्ट्स, दस्तावेज़ और अनुमतियाँ दी जाती थीं।
डॉ. मोंटू पटेल की भूमिका
फॉर्मेसी काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष डॉ. मोंटू पटेल पर न केवल आर्थिक घोटाले, बल्कि सत्ता का दुरुपयोग कर अवैध अनुमतियाँ देने का आरोप है। जांच में सामने आया है कि उन्होंने 8 फर्जी मेडिकल संस्थानों को मान्यता दिलाई और इसके बदले भारी रकम ली। उनका नेटवर्क 12,000 से अधिक छात्रों के एडमिशन घोटाले में भी लिप्त पाया गया है।
पूर्व यूजीसी चेयरमैन डीपी सिंह की भूमिका
CBI ने मामले में पूर्व यूजीसी चेयरमैन डीपी सिंह से भी पूछताछ की है। सिंह पर आरोप है कि उन्होंने कई कॉलेजों को बिना आवश्यक दस्तावेजों के मान्यता दिलाने में मदद की। उन्हें भी सीबीआई ने अपने घेरे में लिया है।
एनएमसी की त्वरित कार्रवाई
घोटाले के सामने आते ही एनएमसी ने तत्काल कार्रवाई करते हुए 2025–26 सत्र के लिए कुछ मेडिकल कॉलेजों की सीट रिन्युअल प्रक्रिया को रोक दिया है। जिन अधिकारियों पर रिश्वत लेने के आरोप हैं, उन्हें ब्लैकलिस्ट किया गया है।