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भारत का मिडल क्लास: बीच का बोझ, संघर्ष और साइलेंट हीरो

भारत का मिडल क्लास वह मौन नायक है जो संघर्ष के साथ बीच का बोझ उठाता है- न तो सुर्खियों में आता है न राहतों में, लेकिन वही देश की नींव है।

भारत में मिडल क्लास सिर्फ़ एक आर्थिक वर्ग नहीं, एक मानसिकता है — जिम्मेदारी की, समझदारी की और बलिदान की।

चाहे बजट हो या चुनाव, सब इसकी पीठ पर सवार होते हैं, पर कोई इसकी सुनता नहीं।

इस लेख में तीन कविताओं के माध्यम से हम सामने लाए हैं उस वर्ग की खामोश पुकार, जो देश को तो चलाता है, लेकिन कभी अख़बार की हेडलाइन नहीं बनता —

बीच का बोझ
उम्मीदें और संघर्ष
साइलेंट हीरो: भारत का मिडल क्लास

भारत का मिडल क्लास: बीच का बोझ

हम हैं वो जो न अमीर कहलाए, न गरीबों में गिने जाते,
फॉर्म भरें तो ‘No Benefit’, टैक्स भरें तो सबसे आगे आते।

बेटे को पढ़ाओ तो सपना बने डॉक्टर या इंजीनियर,
लेकिन EMI की किस्तें पूछें — “ख़्वाबों का क्या किराया है सर?”

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हम न सरकार के भाषण में हैं, न किसी योजना की सूची में,
हम बस आते हैं आँकड़ों में, आमदनी की औसत गूची में।

महंगाई हर महीने सवाल पूछती है,
और वेतन सिर्फ़ ‘Inflation’ पर हँसती है।

बिजली जाए तो जनरेटर नहीं, मोमबत्ती से काम चलाते हैं,
बच्चों को समझाते हैं — “शौक़ से ज़्यादा ज़िम्मेदारी निभाते हैं।”

सब्सिडी की लाइन में नहीं, लेकिन बोझ ज़्यादा उठाते हैं,
हर बजट में छले जाते हैं, पर हर चुनाव में बहलाए जाते हैं।

बेटी की शादी हो तो गहने उधार लिए जाते हैं,
और रिटायरमेंट की प्लानिंग? बस बच्चों पर छोड़ दिए जाते हैं।

हर त्यौहार पर EMI की गिनती जुड़ जाती है,
खुशियाँ होती हैं, पर पीछे कहीं ‘बजट’ की घुटन छुप जाती है।

हम वो हैं जो हर मुद्दे पर चुप रहते हैं,
क्योंकि ‘मिडल क्लास’ के पास आवाज़ नहीं, सिर्फ़ किस्से रहते हैं।

हम भी देश की नींव हैं — दिखते नहीं, मगर टिकाए हुए हैं।
बीच का बोझ हैं हम — मगर हर इमारत हमारे भरोसे खड़ी हुई है।

भारत का मिडल क्लास: संघर्ष

थकते हैं, रुकते हैं, फिर भी चल पड़ते हैं,
मंझधार में भी उम्मीदों की नाव गढ़ते हैं।

हर सुबह एक नई लड़ाई होती है,
और हर रात — चुप्पी में गवाही होती है।

जो सपने बड़े हैं, वो जेब से नहीं डरते,
कुर्सी नहीं बदलते, पर किस्मत को रोज़ मरोड़ते।

कभी बेटे की फीस, कभी माँ की दवा,
इन दो छोरों के बीच बंधी हर दुआ।

हम हैं वो जो रोते भी मुस्कान में हैं,
संघर्ष के गीत गाते हैं, चाय की दुकान में हैं।

न शिकायत करते हैं, न सरकारों से आस रखते हैं,
अपने ही दम पर ज़िंदगी की शर्तें रखते हैं।

जो तपता है रोज़ धूप में, वो साया बनता है किसी और के लिए,
मिडल क्लास है वो — जो नींव बनता है हर उड़ान के लिए।

हौसले किताबों में नहीं, चूल्हों की आग में पलते हैं,
और सपने भी उन्हीं के सच होते हैं — जो चुपचाप चलते हैं।

भारत का मिडल क्लास: साइलेंट हीरो

वो न ध्वनि करता है, न दावा करता है,
बस रोज़ उठकर कर्तव्य निभाया करता है।

ना उसके लिए नारे लगते हैं, ना जुलूस निकलते हैं,
फिर भी वो हर मोर्चे पर डटा रहता है, जहाँ लोग फिसलते हैं।

वो पुलिस नहीं, पर नियम मानता है,
नेता नहीं, फिर भी देश चलाता है।

न सब्सिडी माँगता है, न रियायतें,
फिर भी सबसे पहले टैक्स की परतें।

EMI से बँधा, सपनों से जुड़ा,
कभी न थका, बस थोड़ा-थोड़ा झुका।

बेटे के स्कूल बैग में भविष्य रखता है,
बेटी की शादी में जीवन की जमा पूंजी तक बहाता है।

फिल्म नहीं बनती उस पर, ना भाषणों में आता है,
पर उसका हर संघर्ष, देश को आगे ले जाता है।

ये वही मिडल क्लास है — जो चुप रहता है,
लेकिन जब भी देश को ज़रूरत पड़ी — सबसे पहले खड़ा रहता है।

यह एक कविता कोशिश है उस आवाज़ को पहचान देने की, जो देश के हर कोने में बसी है — जो EMI में घुटती है पर उम्मीद में जीती है। क्योंकि असली हीरो वही है जो दिखता नहीं, लेकिन देश को थामे खड़ा है — साइलेंट हीरो: भारत का मिडल क्लास।

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राजनीश कुमार एक प्रखर और दृष्टिकोणपूर्ण पत्रकार हैं जो वर्तमान में OBC Awaaz न्यूज़ पोर्टल में विदेश समाचार एवं नीतियों के संपादक के रूप में कार्यरत हैं। उन्होंने अपनी स्नातक शिक्षा दिल्ली के प्रतिष्ठित नेताजी सुभाष प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (NSUT) से प्राप्त की है। इसके पश्चात, उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स (DSE Delhi) से अर्थशास्त्र में परास्नातक की उपाधि प्राप्त की। राजनीश की रुचि अंतरराष्ट्रीय राजनीति, वैश्विक नीतिगत निर्णयों और सामाजिक न्याय के मुद्दों में विशेष रूप से रही है। उनका लेखन तटस्थ, तथ्यों पर आधारित और व्यापक विश्लेषण से परिपूर्ण होता है, जो पाठकों को समकालीन वैश्विक घटनाओं की गहराई से जानकारी प्रदान करता है। अपने अनुभव और विद्वत्ता के बल पर राजनीश कुमार OBC Awaaz के माध्यम से वंचित तबकों की आवाज़ को वैश्विक मंच तक पहुँचाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।

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