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मुंह से निकला रिपीट, मन में था डिलीट : अखिलेश यादव ने बीजेपी की पोल खोल दी!

अखिलेश यादव ने बीजेपी पर तंज कसते हुए कहा, "मुंह से निकला रिपीट, मन में था डिलीट!", जिससे सत्ता पक्ष की कथनी और करनी के फर्क को उजागर किया। उनके बयान ने बीजेपी की आंतरिक राजनीति, नेतृत्व संकट और हिंदुत्व की होड़ पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए।

लोकसभा में बजट सत्र के दौरान समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने एक बार फिर अपने चुटीले अंदाज में सत्ता पक्ष को कठघरे में खड़ा कर दिया। अखिलेश यादव का जवाब जितना मज़ाकिया दिखा, उसके भीतर उतनी ही सियासी तल्ख़ी भी छिपी थी।

उनकी सीधी और चुभती हुई टिप्पणी —
“मुंह से निकला रिपीट, मन में था डिलीट!”
यानी सत्ता पक्ष जो कह रहा है, असल में वह उसके ठीक उलट सोच रहा है!

अब सवाल यह उठता है कि अखिलेश यादव किसके ‘डिलीट’ होने की बात कर रहे हैं? क्या योगी को ही लेकर सत्ता के गलियारों में चर्चा गर्म है? या फिर दिल्ली तक की सियासत में कुछ और पक रहा है?

बीजेपी के अंदर ही सब ठीक नहीं है?

अखिलेश यादव यहीं नहीं रुके। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि —
“भाजपा के अंदर मुकाबला ये चल रहा है कि ‘खराब हिंदू’ कौन बड़ा है!”

मतलब साफ़ है, बीजेपी अपने ही एजेंडे में उलझ चुकी है। हिंदुत्व की ठेकेदारी किसके हाथ में जाए, इसी की होड़ मची है। और इस लड़ाई में जनता और विकास तो कहीं खो ही गए हैं!

इतना ही नहीं, अखिलेश यादव ने भाजपा के नेतृत्व पर सवाल उठाते हुए कहा —
“जो पार्टी खुद को दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बताती है, वह आज तक अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं कर सकी है!”

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यानी जो लोग लोकतंत्र के सबसे बड़े रक्षक होने का दावा करते हैं, वे अपनी ही पार्टी में लोकतंत्र लागू नहीं कर पा रहे हैं! यह तंज सीधा देश को गर्त में ले जाने वाली पार्टी बीजेपी पर था।

चुप्पी में भी हलचल होती है!

सवाल यह नहीं है कि बीजेपी इस तंज का जवाब देगी या नहीं, सवाल यह है कि क्या इस बयान में सच्चाई है? क्या सत्ता के अंदर सच में कुछ ऐसा पक रहा है जिसे छुपाने की कोशिश की जा रही है?

और सबसे बड़ा सवाल —
“अगर ‘डिलीट’ की प्लानिंग पहले से थी, तो ‘रिपीट’ का दिखावा क्यों?”

जो भी हो, अखिलेश यादव ने बीजेपी की अंदरूनी राजनीति को लेकर जो तंज कसा है, उसकी गूंज अब सिर्फ़ संसद तक सीमित नहीं रहने वाली।

क्या संदेश दे गए अखिलेश यादव?

इस बयान ने कई राजनीतिक समीकरणों को हवा दे दी है।

  • क्या बीजेपी के भीतर बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है?
  • क्या योगी को लेकर पार्टी के अंदर ही मतभेद हैं?
  • क्या अखिलेश यादव ने सिर्फ़ मज़ाक किया या सत्ता के अंदर चल रही सच्चाई पर से पर्दा उठाया?

अब यह सब देखा जा रहा है।

लेकिन इतना तय है कि अखिलेश यादव अब सिर्फ़ विपक्ष के नेता नहीं, बल्कि सत्ता के भीतर चल रही चालों को गहराई से समझने वाले राजनीतिक पर्यवेक्षक हैं।

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