तेल विपणन कंपनियों ने जून के पहले दिन से 19 किलोग्राम वाले वाणिज्यिक एलपीजी सिलेंडर की कीमत में ₹24 की उल्लेखनीय कमी की है। दिल्ली में इसकी नई कीमत अब ₹1,723.50 निर्धारित की गई है, जो लगातार दूसरे महीने हो रही गिरावट को दर्शाती है। पिछले महीने मई में भी कंपनियों ने ₹14.50 प्रति सिलेंडर की कटौती की थी।
इस निर्णय का सबसे अधिक लाभ रेस्तराँ, ढाबे, होटल और फूड ट्रक संचालकों जैसे छोटे व्यवसायियों को मिलेगा, जो भोजन पकाने के लिए मुख्य रूप से वाणिज्यिक सिलेंडर पर निर्भर हैं। उद्योग विश्लेषकों के अनुसार, भारत में कुल एलपीजी खपत का मात्र 10% ही वाणिज्यिक और औद्योगिक क्षेत्र में उपयोग होता है, लेकिन यह क्षेत्र रोजगार सृजन और अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एक मध्यम आकार के रेस्तराँ के लिए, यह कटौती मासिक ईंधन लागत में लगभग ₹500-₹700 की बचत का संकेत देती है, जो मुद्रास्फीति के दबाव में संघर्षरत व्यवसायों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत है।
एविएशन फ्यूल में तीसरी लगातार गिरावट: एयरलाइन उद्योग में उम्मीद की किरण
विमानन टर्बाइन ईंधन (एटीएफ) में 4.4% की भारी कटौती ने प्रति किलोलीटर मूल्य को ₹3,954.38 घटाकर ₹85,486.80 कर दिया है। यह लगातार तीसरा मासिक कमी है और एयरलाइन उद्योग के लिए एक सुखद संकेत है, जहाँ ईंधन कुल परिचालन लागत का 30-40% हिस्सा होता है। एयर इंडिया, इंडिगो और वीस्तारा जैसे प्रमुख वाहकों को इससे सीधा लाभ मिलेगा, जो हाल के वर्षों में ईंधन की बढ़ती कीमतों और कोविड-पश्चात की चुनौतियों से जूझ रहे थे। एक बोइंग 737 विमान के लिए दिल्ली-मुंबई उड़ान पर लगभग 8,000 लीटर एटीएफ खर्च होता है। नई दरों के अनुसार, प्रति उड़ान ईंधन लागत में लगभग ₹31,600 की कमी आएगी। यह बचत यात्री किराए में कमी या एयरलाइनों की लाभप्रदता में सुधार की संभावना को जन्म दे सकती है।
वैश्विक तेल बाजार में भूकंप: कच्चे तेल की कीमतों में 21 महीने का निचला स्तर
इन कटौतियों का प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में आई भारी गिरावट है। ब्रेंट क्रूड की कीमत $3 प्रति बैरल के आसपास पहुँच गई है, जो अप्रैल 2021 के बाद का सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट वैश्विक मंदी की आशंकाओं, अमेरिकी बैंकिंग संकट और चीन की अर्थव्यवस्था में सुस्ती जैसे कारकों से प्रेरित है। सऊदी अरब ने हाल ही में संकेत दिया है कि वह उत्पादन कटौती को स्थिर रखते हुए कीमतों में और कमी के लिए तैयार है, जिससे ओपेक+ देशों के प्रभाव पर सवाल उठ रहे हैं। भारत के लिए, जो अपनी तेल जरूरतों का 85% आयात करता है, यह गिरावट एक रणनीतिक लाभ प्रदान करती है। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी के अनुसार, इस गिरावट ने सरकारी तेल कंपनियों को हाल में लगाए गए अतिरिक्त उत्पाद शुल्क का बोझ वहन करने में सक्षम बनाया है, जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में स्थिरता बनी हुई है।
राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: मुद्रास्फीति नियंत्रण से रुपये को मजबूती तक
तेल की गिरती कीमतों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर बहुआयामी प्रभाव पड़ता है। सबसे पहले, आयात बिल में कमी से चालू खाता घाटा सिकुड़ता है, जो रुपये को मजबूत करने में सहायक है। वित्त मंत्रालय के आंकड़े दर्शाते हैं कि तेल की कीमतों में $1 प्रति बैरल की गिरावट भारत के वार्षिक आयात खर्च में लगभग $1.5 अरब की कमी लाती है। दूसरे, पेट्रोलियम उत्पादों की सस्ती कीमतें थोक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को नीचे लाने में मदद करती हैं। रिजर्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार, डीजल की कीमतों में 10% की कमी मुद्रास्फीति को 0.2% तक कम कर सकती है। तीसरे, कमर्शियल ईंधन की लागत घटने से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलता है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 30% से अधिक का योगदान देता है।
घरेलू एलपीजी की अपरिवर्तित कीमतें
वाणिज्यिक गैस में गिरावट के बावजूद, 14.2 किलोग्राम वाले घरेलू एलपीजी सिलेंडर की कीमतें स्थिर बनी हुई हैं। इसका प्राथमिक कारण सरकार की सब्सिडी नीति है। भारत में 30 करोड़ से अधिक घरेलू उपभोक्ता हैं, जिनमें से 80% प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) जैसी योजनाओं के तहत सब्सिडी प्राप्त करते हैं। वर्तमान में, सरकार प्रति सिलेंडर ₹200-₹300 की अप्रत्यक्ष सब्सिडी देती है, जो राजकोष पर वार्षिक ₹20,000 करोड़ से अधिक का बोझ डालती है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि वैश्विक तेल कीमतों में गिरावट के बावजूद, चुनावी वर्ष में सरकार के लिए सब्सिडी घटाना राजनीतिक रूप से संवेदनशील है। हालाँकि, यदि तेल की कीमतें निम्न स्तर पर बनी रहती हैं, तो अक्टूबर तक घरेलू सिलेंडरों में ₹50-₹70 की कटौती की संभावना है।