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TRP की दौड़ में पीछे विपक्ष: मीडिया को दोष देकर नहीं मिलेगा कवरेज

विपक्ष मीडिया पर पक्षपात का आरोप लगाता है, लेकिन खुद ऐसा कंटेंट नहीं देता जो TRP ला सके। आज की मीडिया खबर नहीं, बिकने लायक सामग्री दिखाती है, यही उसका कारोबारी मॉडल है।

विपक्ष भारत की मीडिया को दोषी ठहराकर अपनी नाकामी छुपा नहीं सकता। हकीकत यह है कि आप ऐसा कुछ करते ही नहीं कि मीडिया विपक्ष को दिखाए, क्योंकि उसे भी ज़िंदा रहने के लिए ब्रेकिंग न्यूज़ चाहिए, TRP चाहिए।

किसी एक मीडिया संस्थान में हज़ारों लोग काम करते हैं। उदाहरण दूं तो “टीवी टुडे मीडिया ग्रुप” में 1600 से 2000 लोग काम करते हैं, जिसमें केवल “आजतक” में 800 से 1200 लोग काम करते हैं। इनमें पत्रकार, एंकर, तकनीकी कर्मचारी, कैमरामैन, वीडियो एडिटर, प्रोडक्शन स्टाफ, प्रशासनिक और सपोर्ट स्टाफ, मार्केटिंग, एचआर और आईटी कर्मचारी होते हैं।

बजट की बात करूं तो 2023-24 की “टीवी टुडे ग्रुप” की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, कंपनी का कुल राजस्व लगभग 852 करोड़ रुपये था। इसमें आजतक, इंडिया टुडे और अन्य चैनल जैसे तेज और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की आय शामिल है। इसमें केवल “आजतक” का कुल राजस्व 400-500 करोड़ रुपये का था।

भारत में समाचार चैनलों के कारोबार का आकार 2024 में लगभग 30,000 करोड़ रुपये का है। FICCI-EY की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, टेलीविजन सेक्टर का कुल राजस्व 79,100 करोड़ रुपये था, जिसमें समाचार चैनल टेलीविजन विज्ञापन राजस्व 31,200 करोड़ रुपये था। इसमें न्यूज़ चैनल जैसे आजतक, इंडिया टीवी और ज़ी न्यूज़ का बड़ा हिस्सा था।

इन 31,200 करोड़ की बंदरबांट का सबसे बड़ा आधार TRP होती है। TRP बनती है दर्शकों द्वारा सबसे अधिक देखे जाने के आधार पर। दर्शक सनसनी देखना चाहते हैं, बिग ब्रेकिंग न्यूज़ देखना चाहते हैं। दर्शकों की गिनती चैनलों के पास रियल टाइम, अर्थात मिनट-टू-मिनट की होती है। इससे चैनल की TRP बढ़ती है और TRP के आधार पर ही चैनलों के प्रचार के स्लॉट की कीमत तय होती है। इससे कंपनियों के अधिक विज्ञापन आते हैं और सरकार भी अपने विज्ञापन देती है।

मगर विपक्ष चैनलों को ऐसा कुछ देता ही नहीं—न ब्रेकिंग न्यूज़, न TRP। देता क्या है? वही बोरिंग एयर-कंडीशंड प्रेस कॉन्फ्रेंस और राहुल गांधी का घिसा-पिटा भाषण। विपक्ष में जो लोकप्रिय चेहरे हैं, उन्हें छिपाकर रखा जाता है; बुज़ुर्ग नेता सामने किए जाते हैं।

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चैनलों को खर्च निकालना होता है। रामलीला मैदान पर 4-5 लाख की भीड़ के साथ अगर राहुल गांधी अनशन पर बैठ जाएं, तो देखिए चैनल विपक्ष के आगे-पीछे घूमने लगेंगे।

आप बात समझते नहीं, बस उलाहना देते हैं और सोचते हैं कि मीडिया अपने संस्थान को NDTV की तरह कर्ज़ में डुबोकर आपका पक्ष रखे और बिक जाए।

अब न्यूज़ चैनल समाचार दिखाने और पत्रकारिता का काम नहीं करते, खबरें बेचते हैं। आप उन्हें उच्च क्वालिटी की खबर दीजिए जिससे उनकी TRP बढ़े।
TRP का अर्थ होता है Television Rating Point—इसी के घटने-बढ़ने से कमाई घटती-बढ़ती है।

आप उन्हें बिकाऊ मटेरियल दीजिए, फिर देखिए।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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