पाकिस्तान का जन्म 1947 में भारत के विभाजन के साथ हुआ, लेकिन यह शुरू से ही अधूरे राष्ट्र की छवि लेकर आया। दो भौगोलिक रूप से अलग हिस्सों; पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान के बीच सांस्कृतिक, भाषाई और आर्थिक खाई बनी रही। 1952 में बंगाली भाषा आंदोलन ने इस असमानता को उजागर किया। पश्चिमी पाकिस्तान (जिसमें पंजाबी वर्ग हावी था) ने पूर्वी हिस्से को उपनिवेश की तरह देखा। 1970 के चुनावों में शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग की जीत के बावजूद सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दिया गया। इसके बाद 1971 का युद्ध हुआ, जिसमें भारत के समर्थन से बांग्लादेश अस्तित्व में आया। यह पाकिस्तान की कमजोर बुनियाद को उजागर किया।
पूर्वी पाकिस्तान की जनसंख्या पश्चिम से अधिक थी, लेकिन सैन्य व नौकरशाही पर पश्चिम का कब्जा था।
1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पूर्वी पाकिस्तान को रक्षाहीन छोड़ दिया गया, जिससे असंतोष बढ़ा।
1971 में पाकिस्तानी सेना द्वारा ऑपरेशन सर्चलाइट में 3 लाख से अधिक बंगालियों की हत्या ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचा।
बलूचिस्तान
1971 के बाद पाकिस्तान का अगला बड़ा संकट बलूचिस्तान में उभरा। 1973 में बलूच नेताओं ने स्वायत्तता की मांग की, जिसे सेना ने कुचल दिया। 2000 के दशक में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) शुरू होने के बाद यह संघर्ष और तीव्र हुआ। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) जैसे समूहों का आरोप है कि CPEC परियोजनाओं से बलूचिस्तान के संसाधन (गैस, सोना, तांबा) पंजाबी अभिजात्य वर्ग और चीन को लाभ पहुंचा रहे हैं।
पाकिस्तानी सेना का “किल एंड डंप” अभियान: 2000 के बाद से 20,000 से अधिक बलूच लापता हुए हैं। बलूचिस्तान में गुमनाम कब्रों की बढ़ती संख्या और मानवाधिकार उल्लंघनों की अंतरराष्ट्रीय आलोचना हो रही है। 2022 में BLA ने कराची स्टॉक एक्सचेंज और ग्वादर पोर्ट पर हमले किए, जो CPEC का केंद्र है।
सिंध और पख्तूनिस्तान
पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े प्रांत सिंध में अलगाववादी समूह (जैसे जियाल सिंध आंदोलन) सक्रिय हैं। यहां के लोग पंजाबी-केंद्रित नीतियों से नाराज हैं। सिंध के पास देश का 70% कोयला भंडार है, लेकिन यहां गरीबी दर 45% है। इसी तरह, खैबर पख्तूनख्वा में पख्तून तहरीक-ए-इंसाफ (PTM) नामक समूह सेना के “जबरन गुमशुदगी” के खिलाफ आवाज उठा रहा है।
2020 में सिंध के नेता सईद गनी ने कहा: हमारी नदियों का पानी पंजाब ले जाता है, जबकि सिंध सूखे की मार झेलता है।
PTM के नेता मनज़ूर पश्तीन पर सेना ने प्रतिबंध लगाया है। 2023 में उनकी गिरफ्तारी के बाद पूरे प्रांत में विरोध प्रदर्शन हुए।
गिलगित-बाल्टिस्तान और POK
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) और गिलगित-बाल्टिस्तान में भारत के प्रति समर्थन बढ़ रहा है। 1947 में पाकिस्तान ने इन क्षेत्रों पर अवैध कब्जा किया, लेकिन यहां के लोगों को मूल अधिकार नहीं दिए गए। 2020 में भारत द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने के बाद यहां भारतीय झंडे लहराए गए। गिलगित-बाल्टिस्तान में चीन-पाकिस्तान की संयुक्त सेना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
2022 में POK के 10 गांवों के प्रधानों ने संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखकर भारत में विलय की मांग की।
गिलगित-बाल्टिस्तान में 96% लोग शिया मुसलमान हैं, जबकि पाकिस्तानी सेना सुन्नी कट्टरपंथियों को समर्थन देती है।
आर्थिक पतन
पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर है। 2023 तक देश का कर्ज 125 अरब डॉलर (GDP का 90%) पहुंच गया है। मुद्रास्फीति 40% के पार है, और रुपया 330 प्रति डॉलर तक गिर चुका है। 2018 से 2023 के बीच, पाकिस्तान ने IMF से 23 बार कर्ज लिया, लेकिन भ्रष्टाचार और सेना के व्यय (जो बजट का 25% है) ने संकट गहरा किया।
पाकिस्तानी सेना सीधे व्यापार जगत में हिस्सेदारी रखती है। सेना के स्वामित्व वाली “फौजी फाउंडेशन” 50 से अधिक कंपनियों को नियंत्रित करती है।
2022 के बाढ़ ने 3.3 करोड़ लोगों को प्रभावित किया, लेकिन राहत राशि भ्रष्ट अधिकारियों ने हड़प ली।
राजनीतिक उथल-पुथल: सेना बनाम नागरिक सरकार
पाकिस्तान की राजनीति सेना के छाया शासन से प्रभावित रही है। 2018 में इमरान खान को सेना का समर्थन मिला, लेकिन 2022 में उन्हें अमेरिकी “रेजिम चेंज” साजिश के बहाने हटा दिया गया। 2023 में शाहबाज शरीफ सरकार ने इमरान को जेल में डाला, जिससे देशभर में हिंसक प्रदर्शन हुए। सेना प्रमुख जनरल आसिफ मुनीर का कहना है कि “राजनीति में हस्तक्षेप नहीं होगा,” लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि सेना अब भी असली सत्ता है।
9 मई 2023 को इमरान खान की गिरफ्तारी के बाद लाहौर, इस्लामाबाद और कराची में सेना के अड्डों पर हमले हुए।
पाकिस्तानी मीडिया पर सेना का कड़ा नियंत्रण: दूनिया न्यूज़ और जियो न्यूज़ जैसे चैनलों को सेना के आदेश पर कार्यक्रम बंद करने पड़े।
अंतरराष्ट्रीय भूमिका: अमेरिका, चीन और भारत
पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ रहा है। अमेरिका ने 2022 के बाद सैन्य सहायता रोक दी है। चीन, जो CPEC के माध्यम से पाकिस्तान को “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” में जोड़ना चाहता था, अब निवेश वापस ले रहा है। भारत ने POK और गिलगित-बाल्टिस्तान को लेकर सख्त रुख अपनाया है। 2023 में G20 की बैठक कश्मीर में आयोजित कर भारत ने संदेश दिया कि वह POK को वापस लेने के लिए गंभीर है।
2023 में चीनी कंपनियों ने CPEC की 36 परियोजनाओं को स्थगित कर दिया, क्योंकि पाकिस्तान 30 अरब डॉलर का कर्ज नहीं चुका सका।
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा: पाकिस्तान को आतंकवाद के साथ अपने संबंध तोड़ने होंगे।
क्या पाकिस्तान सीरिया या यूगोस्लाविया बनेगा?
विश्लेषकों के अनुसार, पाकिस्तान के सामने दो मुख्य परिदृश्य हैं:
1. बाल्कनाइजेशन: देश 4-5 स्वतंत्र राज्यों (पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, पख्तूनिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान) में बंट जाएगा।
2. सीरिया मॉडल: केंद्र सरकार कमजोर होगी, लेकिन देश आधिकारिक तौर पर बना रहेगा। प्रांतों पर स्थानीय समूहों या आतंकवादियों का नियंत्रण होगा।
बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान के नेता पहले ही नॉर्वे और स्विट्ज़रलैंड में गुप्त बैठकें कर चुके हैं।
भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि POK में भारत समर्थक प्रदर्शन 2025 तक तेज होंगे।
पाकिस्तानी जनता की आवाज़
पाकिस्तान की 65% आबादी 30 साल से कम उम्र की है। युवा वर्ग सोशल मीडिया के माध्यम से व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठा रहा है। 2023 में #FreeBalochistan और #PashtunLivesMatter हैशटैग ट्रेंड किए।
लाहौर के एक छात्र आकिब ने बताया: “हमें पता है कि देश टूट रहा है, लेकिन हमारे पास बदलाव का कोई रास्ता नहीं।”
पाकिस्तानी युवाओं का पलायन: 2022 में 8 लाख से अधिक पाकिस्तानियों ने यूरोप में शरण मांगी।
टिकटॉक पर “चाय वाला” ट्रेंड: युवा चाय बेचकर विदेश जाने के लिए पैसे जमा कर रहे हैं।
2025 तक पाकिस्तान के विघटन को लेकर वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर गहन चर्चाएँ हो रही हैं। भारतीय नेताओं, रक्षा विशेषज्ञों और अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक्स का मानना है कि पाकिस्तान की अस्तित्वहीन होती अर्थव्यवस्था, सेना-राजनीति का टकराव, और बलूचिस्तान-सिंध-पख्तूनिस्तान जैसे प्रांतों में बढ़ते अलगाववादी आंदोलन देश को “बाल्कनाइजेशन” की ओर धकेल रहे हैं।
कुछ अनुमानों के अनुसार, 2025 तक पाकिस्तान के चार टुकड़े (पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, पख्तूनिस्तान) और गिलगित-बाल्टिस्तान का भारत में विलय हो सकता है। हालाँकि, यह प्रक्रिया शांतिपूर्ण नहीं होगी ; सेना का दमन, आर्थिक पतन, और अंतरराष्ट्रीय दबाव (खासकर चीन-अमेरिका की भूमिका) निर्णायक होंगे। इमरान खान जैसे नेता स्वीकार चुके हैं कि देश ICU में है, जबकि पाकिस्तानी जनता सोशल मीडिया पर #BreakPakistan जैसे ट्रेंड्स से अपना गुस्सा जाहिर कर रही है।
2025 की समयसीमा सटीक हो या नहीं, पर यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान का भविष्य उसकी एकता के सवालों से घिरा हुआ है।