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राजनीतिक आदेशों में बंधी सेना: कब तक चुप रहेगा देश?

डिफेंस अटैच कैप्टन शिव कुमार ने कहा, राजनीतिक बाधाओं के चलते वायुसेना पाकिस्तान पर कार्रवाई नहीं कर पाई, जिससे भारत को लड़ाकू विमान और पायलट गंवाने पड़े।

भारतीय सेना के एक बड़े सैन्य अधिकारी, डिफेंस अटैच कैप्टन शिव कुमार ने हाल ही में इंडोनेशिया में आयोजित एक सेमिनार में एक चौंकाने वाला बयान दिया:

राजनीतिक बाधाओं के चलते भारतीय वायुसेना को पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों पर कार्रवाई से रोका गया, और नतीजतन भारत को अपने लड़ाकू विमान और पायलट तक खोने पड़े।

आख़िर ये कौन हैं, जिनकी राजनीतिक बाधाओं के कारण भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाया? अब देश जानना चाहता है, सेना ने किस राजनीतिक आक़ा के आदेशों के तहत अपने हाथ बाँध लिए? जब दुश्मन देश की सरहद के भीतर मौजूद सैन्य ठिकाने हमारे लिए खतरा बने हुए थे, तो कार्रवाई से परहेज़ क्यों किया गया? और फिर सात समंदर पार किसी देश की संप्रभुता का मज़ाक बनाते हुए, किसके एक फोन के दबाव में सीज़फायर का आदेश देना पड़ा?

क्या पाकिस्तान की सुरक्षा हमारे कुछ नेताओं को अपने जवानों की जान से ज़्यादा प्यारी है? देश की सेना गोली चलाने को तैयार थी, लेकिन दिल्ली के किसी वातानुकूलित कक्ष में बैठे ‘शक्तिशाली’ लोगों ने आदेश देने से इंकार कर दिया।
इसका नतीजा क्या हुआ?

हमने अपने बहादुर पायलट और लड़ाकू विमान को गंवा दिया, दुश्मन को खुली छूट मिल गई और आज भी जवाबदेही शून्य है! क्या यही है राष्ट्रवाद? क्या यही है सर्जिकल स्ट्राइक का तमाशा? अगर सेना को भी राजनीति का गुलाम बना दिया गया है, तो फिर सीमा पर तैनात जवानों का हौसला कैसे बचेगा?

देश का नागरिक प्रधानमंत्री मोदी जी से यह सवाल पूछ रहा है, यह सवाल सिर्फ लड़ाकू विमान और पायलट का नहीं, बल्कि देश की संप्रभुता, सुरक्षा, और आत्मसम्मान का भी है!

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

1 thought on “राजनीतिक आदेशों में बंधी सेना: कब तक चुप रहेगा देश?”

  1. सेना का Civil Govt के अंदर रहना रणनीति” और “धीमी निर्णय प्रक्रिया नुकसानदायक हो सकता है, लेकिन यह लोकतंत्र के लिए एक तरह का वरदान भी माना जा सकता है।
    पर क्या आप यह चाहते हैं कि भारत भी पाकिस्तान की तरह सेना की तानाशाही में चला जाए?

    और अगर यह बयान ज्यों का त्यों सही है, तो इसमें बगावत की बू आ रही है।
    अगर इसे समय रहते नहीं कुचला गया, तो यह आगे चलकर नासूर बन जाएगा।

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