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अनिल यादव का पन्ना: विभाजन की राजनीति

विभाजन की राजनीति अब फिर ज़ोरों पर है। पसमांदा मुस्लिमों के ज़ख्म भुला दिए गए हैं, और सत्ता की भूखी सोच उन्हें एक बार फिर इस्तेमाल करने में लगी है।

कहते हैं कि इंसान बुढ़ापे में अच्छे काम करता है जिससे उसके पुराने पापों की भरपाई हो सके। मगर 75 पार करने को तैयार अपने वाले लगातार देश में सांप्रदायिक विभाजन कराते जा रहें हैं और यही कारण है कि “गुना से लेकर मुर्शिदाबाद” तक दंगे फैल चुके हैं।

देश के लिए कुछ करने की बजाय हर कुछ दिन में सांप्रदायिक विभाजन का एक नया तीर चलता रहता है जिससे उनके ही समर्थकों को कोई लाभ नहीं मिलता मगर मुसलमानों को परेशान करने मात्र से उनकी खुराक़ पूरी हो जाती है।

अब वह अचानक पसमांदा और मुस्लिम औरतों के शुभचिंतक बनकर खुद को उनका मसीहा बता रहे हैं, मगर इनके लिए अपने वाले का इतिहास क्या रहा है वह भी जान लीजिए

नरोदा पाटिया में 10 घंटे से अधिक समय तक हिंसा हुई जिसके दौरान भीड़ ने लूटपाट की, चाकू मारा, यौन उत्पीड़न किया, सामूहिक बलात्कार किया और लोगों को व्यक्तिगत और समूहों में जला दिया ।

बजरंग दल द्वारा आयोजित और कथित तौर पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा समर्थित लगभग 5,000 लोगों की भीड़ द्वारा 130 मुसलमानों को मार दिया गया , 94 लोगों के शव बरामद हुए जिसमें अधिकांश पसमांदा ही थे।

ह्यूमन राइट्स वॉच के अनुसार, तीन गर्भवती महिलाओं के पेट काट दिए गए और भ्रूण को निकालकर त्रीशूल से गोद गोद कर मार डाला गया और फिर आग में फेंक दिया गया। इसमें एक महिला कैसर बानो थी मगर पोस्टमार्टम रिपोर्ट में उसकी मौत की वजह सद्मा बताया गया।

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सुरेश देदावाला (रिचर्ड) उर्फ ​​लंगड़ो को तहलका के स्टिंग ऑपरेशन में कैमरे पर गर्भवती मुस्लिम कौसर बानो का पेट काटने, उसके भ्रूण को निकालने और तलवार से उसे मारने के बारे में बाबू बजरंगी से बात करते हुए पकड़ा गया था।

2020 में मामले की सुनवाई कर रहे न्यायाधीश ने इस दावे को खारिज कर दिया कि बजरंगी ने भ्रूण को मार दिया था, जबकि कोबरापोस्ट के स्टिंग ऑपरेशन में बजरंगी ने कहा कि कौसर बानो को मार दिया था और भ्रूण को काट डाला।

और यह सब हो रहा था अपने वाले के कार्यालय से मात्र चंद मिनटों की दूरी पर।

बिल्किस बानों भी उनके ही मुस्लिम महिलाओं के लिए किए उत्थान का एक उदाहरण है, जिस बिल्किस बानो और उनकी मां का जिन 11 लोगों ने बलात्कार किया उसे जेल से छोड़ा गया और उनका तिलक आरती और बैंड बाजे के साथ स्वागत किया गया।

1 मार्च 2002 को बड़ोदरा के हनुमान टेकरी इलाके में स्थित जिस बेस्ट बेकरी में आग लगा कर हबीबुल्लाह शेख के परिवार के 11 लोगों की हत्या कर दी गई वह सभी पसमांदा ही थे।

समाज के हालात देखिए कि बेस्ट बेकरी मामले की एकमात्र गवाह ज़ाहिरा शेख के बयान के अनुसार “दंगों के फैलने के बाद जब सभी पसमांदा यह इलाका छोड़ कर जा रहे थे तब एक स्थानीय प्रभावशाली मोहल्ले के दादा, जयंतीभाई चायवाले नाम के आदमी ने बेस्ट बेकरी के लोगों को आश्वस्त किया ! “कि आप लोग आराम से रहिए ! कोई कुछ नहीं करेगा !”

और मार्च की एक तारीख को सुबह के आठ बजे उसी जयंती चायवाले के साथ महेश मुन्ना पेंटर, ठक्कर के नेतृत्व में 500 – 700 लोगों ने हाथों में पेट्रोल के कॅन और पेट्रोल बॉम्ब‌ के साथ बेस्ट बेकरी पर हमला करके सभी को ज़िंदा जला दिया।

अभियोजन पक्ष ने लीपापोती की और सभी आरोपियों को बाईज़्ज़त बरी कर दिया गया..

यह पसमांदा से अपने वाले की मुहब्बत है

अखलाक भी पसमांदा ही थे , मिन्हाज अंसारी भी पसमांदा ही थे , तबरेज अंसारी भी पसमांदा ही थे , पुणे के मोहसिन शेख पसमांदा ही थे , जानवरों की खरीद फरोख्त करने वाले पहलू खान पसमांदा ही थे , झारखंड के असगर अंसारी , हापुड़ के कासिम कुरैशी , अलवर के रकबर खान , झारखंड के अलीमुद्दीन अंसारी पसमांदा ही थे, ट्रेन में मार दिए गए हाफ़िज़ जुनैद भी पसमांदा ही थे यहां तक कि गुजरात दंगों के पोस्टर ब्वाय कुतुबुद्दीन अंसारी भी पसमांदा ही थे।

दरअसल “अपने वाले” विभाजन की राजनीति के उस्ताद हैं, संघ से मिले प्रतीक्षण से उन्होंने मायावती के वोट बैंक दलितों में विभाजन कराकर उनको “जाटव और गैर जाटव” में बांट दिया। मुलायम सिंह यादव के वोटबैंक पिछड़े वर्ग को उन्होंने यादव और अन्य जातियों में बांट दिया।

नहीं बांटा तो सिर्फ अपर कास्ट, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश , कायस्थ कोसर , प्वाइंट पर ध्यान दीजिए

दरअसल “अपने वाले” विभाजन की राजनीति के उस्ताद हैं, संघ से मिले प्रतीक्षण से उन्होंने दलितों में विभाजन कराकर उनको “जाटव और गैर जाटव” में बांट दिया। पिछड़े वर्ग को उन्होंने यादव और अन्य जातियों में बांट दिया।

नहीं बांटा तो सिर्फ अपर कास्ट को , ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य , कायस्थ सब एक हैं , जबकि उनमें सबसे अधिक धार्मिक विभाजन है , मिश्रा, तिवारी, उपाध्याय, दूबे , त्रिवेदी, चतुर्वेदी , गुप्ता, केसरवानी, अग्रवाल, जायसवाल, श्रीवास्तव, सक्सेना इत्यादि इत्यादि ..सब एक हैं क्योंकि वह सभी इनके समर्थक हैं वर्ना इन्हें भी बांट दिया जाता।

अब वही काम वह मुसलमानों में करना चाहते हैं, और अशराफ़ – पसमांदा का खेल शुरू करके खुद को पसमांदा और मुस्लिम महिलाओं के हमदर्द के रूप में पेश करके मुसलमानों को राजनैतिक रूप से विभाजित करने का खेल खेल रहे हैं।

मगर इस देश का मुसलमान राजनीतिक रूप से सबसे जागरूक समाज है , वह बटेगा नहीं, इनकी चालें खूब अच्छी तरह समझ रहा है कि यह वक्फ़ संसोधन बिल में फंसे “अपने वाले” बात को घुमाकर इससे निकलने की एक कोशिश मात्र कर रहे हैं।

मुस्लिम महिला, पंचर और पसमांदा इसी खेल का हिस्सा है।

source :- https://en.m.wikipedia.org/wiki/Naroda_Patiya_massacre

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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