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वीरता की राजनीति: आपरेशन सिंदूर के बहाने वोटों की खेती

आपरेशन सिंदूर के दौरान सेना की सफलता के बावजूद 22 मिनट में युद्ध रोकना पीएम मोदी की छवि पर सवाल उठाता है; इसे राजनीतिक लाभ के लिए ब्रांडिंग बताई जा रही है।

आपरेशन सिंदूर जारी है, भारतीय सेना जब अपना पराक्रम दिखा रही थी, पाकिस्तान के तमाम ठिकानों को तबाह कर रही थी और विजय के करीब थी, तब उसे वापस बुला लिया गया।

मात्र 22 मिनट में युद्ध रोककर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी 22 साल से बनी किसी के आगे न झुकने की छवि को स्वयं ही ध्वस्त कर दिया, और उस ध्वस्त छवि की पुनः ब्रांडिंग करके उसे सही करने के लिए आपरेशन सिंदूर के अगले क्रम में वोटों का दोहन करने निकल पड़े।

यद्यपि यह सवाल उन्हें भारी पड़ने वाला है कि इतनी जल्दी सीज़फायर क्यों? जबकि POK भी नहीं लिया? बलूचिस्तान को भी अलग नहीं किया, आतंकी सरगना मसूद अजहर, आतंकवादी हाफिज सईद, दाऊद इब्राहिम को वापस क्यों नहीं मांगा? और कुछ नहीं तो 9 साल से पाकिस्तान की जेल में बंद कुलभूषण जाधव को ही सीज़फायर की शर्त के रूप में मांग लेते।

पाकिस्तान जब 22 मिनट में घुटनों पर आकर सीज़फायर की भीख मांगने लगा, तो अपनी डिमांड लिस्ट उसे पकड़ा देते। 22 मिनट और कार्रवाई होती तो वह सब दे देता।

मगर कोई यह सवाल पूछे, तो वह पाकिस्तानी! आप पाकिस्तान की भाषा बोल रहे हैं… उधर प्रधानमंत्री चुनावी फसल काटने निकल पड़े हैं और सी ग्रेड फिल्मों के डायलॉग का प्रयोग करके भारतीय सेना की कार्रवाई को मैं, मैं, मैं और मोदी कर रहे हैं।

ख़बर है कि गुजरात के दो दिवसीय दौरे में कर्नल सोफिया कुरैशी के परिवार वालों को बुलाया गया और रोड शो में उनसे अपने ऊपर फूल बरसवाए गए।

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ऐसा इसके पहले इस देश में कभी नहीं हुआ कि सेना के परिवार का राजनीतिक उद्देश्य से इस्तेमाल किया गया हो… मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर बार इसी बात के लिए जाने गए कि जो इस देश में कभी नहीं हुआ, उन्होंने वह किया।

कर्नल सोफिया कुरैशी के परिवार से खुद पर फूल बरसवाना भारतीय सेना का अपमान है। मगर नरेंद्र मोदी को सब माफ़ है।

दरअसल, अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा इस राजनीतिक दोहन से समझ में आ रहा है कि पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान के खिलाफ आपरेशन को नरेंद्र मोदी द्वारा इतना भावुक नाम आपरेशन सिंदूर क्यों दिया गया?

दरअसल, देश को भावनाओं के ज्वर में उबालना था। यह एक सोची-समझी रणनीति थी कि सेना के विजयी आपरेशन के बाद उसकी ब्रांडिंग करके वोटों की फसल काटी जाए, मगर लाख प्रयासों के बावजूद ऐसा सफल होता दिखाई नहीं दे रहा है।

जो हकीकत सामने आ रही है, वह बहुत कड़वी है। अब तथ्य सामने आ रहे हैं कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृहराज्य गुजरात में ही उन्हें लेकर कोई उत्साह नहीं है।

उनके रोड शो को सफल बनाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा जिस तरह से सरकारी अध्यापकों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और सरकारी स्कूल-कॉलेज के छात्रों को एकत्रित किया गया, यहां तक कि खबर है कि केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं के लाभार्थियों को संदेश भेजकर बुलवाया गया कि यदि नहीं आए तो आगे से लाभ नहीं मिलेगा, वह चौंकाने वाला है।

कर्नल सोफिया कुरैशी के परिवार ने बयान दिया है कि उन्हें कलेक्टर ने फोन करके प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए बुलाया।

हैरानी होती है कि कोई व्यक्ति कितना संवेदनहीन हो सकता है, जिसका दिमाग 24×7 सिर्फ और सिर्फ वोट और तुक्केबाजी को सेट करने में लगा रहता है।

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इवेंट मैनेजमेंट के एक बेहतरीन गुरु हैं और पिछले 25 सालों से वही करके सत्ता में बने हुए हैं।

देश को नहीं पता कि आपरेशन सिंदूर के तहत सेना की कार्रवाई में कर्नल सोफिया कुरैशी ने ज़मीनी स्तर पर क्या योगदान दिया? यह सेना की गोपनीयता का हिस्सा है। संभव है कि युद्ध में उन्होंने भी भाग लिया हो, मगर दुनिया के सामने जो स्पष्ट है, वह यह कि उस आपरेशन की मीडिया ब्रीफिंग करने वाले तीन लोगों: विंग कमांडर व्योमिका सिंह, विदेश सचिव मिसरी, और स्वयं कर्नल सोफिया कुरैशी शामिल थीं।

कर्नल सोफिया कुरैशी को आगे करना भारतीय सेना की सफल रणनीति का हिस्सा था, जिससे पाकिस्तान और पहलगाम के आतंकवादियों को जवाब दिया जा सके।

इसके बाद वह वायरल हो गईं, चर्चित हो गईं, लोकप्रिय हो गईं, और किसी की लोकप्रियता को अपने पक्ष में करने का खेल नरेन्द्र मोदी से अधिक इस देश में कोई और नहीं कर सकता…

अभी रुको ज़रा, बिहार चुनाव क़रीब आने दो। धर्म पूछकर, पैंट उतरवाकर, कलमा पढ़वाकर यह व्यक्ति इतना करेगा कि बिहार में सांप्रदायिक विभाजन होगा। देश में धार्मिक विभाजन करने का काम, जो काम पहलगाम की घटना नहीं कर सकी, वह काम यह व्यक्ति राजनीतिक सफलता के लिए करेगा।

श्री श्री जगीरा जी ऐसे ही नहीं कह गए हैं उलट खोपड़िए? मुझसे लड़ने की हिम्मत तो जुटा लोगे, मगर कमीनापन कहां से लाओगे?”

मेरे मन को भाया, मैं कुत्ता काट के खाया…

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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