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हादसों की राख पर चमकती राजनीति, चीखती मीडिया और गुम इंसानियत

प्लेन हादसे में कई जानें गईं, मगर मीडिया का ध्यान पीड़ितों पर नहीं, पीएम की भावनाओं पर रहा। असली सवाल दबा दिए गए। हादसा नहीं, ये सिस्टम की नाकामी की खुली तस्वीर है।

प्लेन आसमान से गिरता है, ज़मीन पर सैकड़ों ज़िंदगियाँ धुएँ में बदल जाती हैं, और न्यूज़ चैनलों के स्टूडियो में चमचमाती लाइटों के बीच एंकर उछलते हुए चिल्लाते हैं, पीएम मोदी स्तब्ध हैं!
जैसे यह कोई सस्पेंस थ्रिलर हो, और दुख का सबसे बड़ा पात्र कोई और नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री हों!

स्पॉटलाइट लाशों पर नहीं, चेहरे पर टिकती है

मीडिया कैमरे नहीं चलाता, वह स्पॉटलाइट चलाता है, और वह स्पॉटलाइट हमेशा जनता की लाशों से हटकर एक चेहरे पर जाकर टिकती है। उस चेहरे के इर्द-गिर्द पूरा विमर्श बुना जाता है। कौन जीया, कौन मरा, ये साइड स्टोरी है। असली स्टोरी यह है कि मोदी जी कितने दुखी हैं, मोदी जी ने ट्वीट किया, जैसे कोई देवता पृथ्वी पर उतर आए हों और इंसानों की मौत उनका मन खिन्न कर रही हो।

यही है राजनीति की कॉर्पोरेट मशीन। मौत यहाँ सिर्फ टीआरपी का स्प्रिंकल है। जब तक लाशें गर्म हैं, ब्रांडिंग की रोटियाँ सेंकी जाती हैं।
पत्रकारिता अब जानकारी नहीं देती, प्रचार देती है। एंकर अब रिपोर्टर नहीं, भोंपू बन गए हैं। वे चीखते हैं क्योंकि सच्चाई बताने की ज़रूरत नहीं, साउंड इफेक्ट ही काफ़ी है।

सवाल पूछना देशद्रोह है?

क्यों गिरा प्लेन? किसके जिम्मे सुरक्षा थी? कौन ज़िम्मेदार है? क्या पब्लिक एयरलाइंस की हालत ऐसी हो गई है कि ज़िंदगी से ज़्यादा अहम हो गया है प्रॉफिट मार्जिन? या फिर विमानन मंत्री को अपनी कुर्सी की चिंता थी, यात्रियों की नहीं?
मगर नहीं, ये सब सवाल मत पूछिए, वरना देशद्रोही कहलाएंगे।

आँकड़े और भगवान भरोसे ज़िंदगी

इस सिस्टम में मनुष्य जीवन का कोई मोल नहीं। जो मरे, वे आँकड़े बनते हैं; और जो बच गए, वे अगली दुर्घटना तक भगवान भरोसे छोड़ दिए जाते हैं।
मगर स्क्रीन पर वही स्तब्धता का नाटक चलता रहता है। कैमरा लाशों से हटकर प्रधानमंत्री के चेहरे के क्लोज़अप में जाता है, और एंकर भावुक होकर बोलते हैं, पीएम मोदी लगातार संपर्क बनाए हुए हैं।

इवेंट मैनेजमेंट में तब्दील हो चुकी है सरकार

यह देश अब सरकार से नहीं, इवेंट मैनेजमेंट से चल रहा है। दुख भी मैनेज होता है, क्रोध भी, और संवेदनाएँ भी।
जो असल में मरे हैं, उनकी कहानी कभी नहीं सुनी जाती।
जो सबसे ऊँचे सिंहासन पर बैठे हैं, वही हर दर्द के केंद्र में बिठा दिए जाते हैं।
और मीडिया? वह सिर्फ कैप्शन बदलता है, कंटेंट नहीं।

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राख से नहीं, ब्रांड से बनती है खबर

ये मौतें सिर्फ हादसे नहीं हैं। ये उस व्यवस्था की विफलता की चीख हैं, जो जनता को हवाई सफर का सपना तो देती है, पर सुरक्षा नहीं। और जब वो सपना जलकर राख हो जाता है, तो राख से खबर नहीं बनती, वहाँ से बस एक बार फिर ब्रांड चमकाया जाता है।

चमत्कार नहीं, बेहूदगी है

देखिए इनकी बेहूदगी की हद, ये कैमरे लेकर उस आदमी के पीछे पड़े हैं जो बच गया। जैसे उसकी जान बचना कोई चमत्कारी तमाशा है, कोई गॉड का सिग्नल, जिसे प्राइम टाइम पर बेचकर टीआरपी की भट्टी में झोंक दिया जाए।
बार-बार वही सवाल, कोई सपना आया क्या? भगवान ने कुछ कहा क्या?
जैसे ये पत्रकार नहीं, किसी भूत-प्रेत कथा की स्क्रिप्ट लिख रहे हों। और इस पूरी कोशिश में वे उन मरे हुए लोगों की गरिमा का कत्ल कर रहे हैं, उनके जीवन को यूँ पेश कर रहे हैं जैसे वे ईश्वर की फेवरिट लिस्ट से बाहर के लोग थे।

संवेदना नहीं, सर्कस है

एंकरों का ध्यान अब सूचना देने पर नहीं, ड्रामा रचने पर है।
जो बचे, उन्हें चमत्कार बना दो;
जो मरे, उन्हें संख्या।
यही है गोदी मीडिया की आत्मा, संवेदनहीन, पत्थरदिल और पूरी तरह बाज़ार के हवाले।

हर मृतक एक मुकम्मल दुनिया था

जो लोग इस भीषण हादसे में अपनी जान गंवा बैठे, उनके लिए शब्द बौने पड़ जाते हैं।
वे कोई संख्या नहीं थे, हर एक इंसान एक मुकम्मल दुनिया था, सपनों से भरा, रिश्तों से जुड़ा, ज़िंदगी से लबालब।
उनके असमय चले जाने से न जाने कितने घर सूने हो गए, कितनी माताओं की गोदें उजड़ गईं, बच्चों के सिर से साया उठ गया, और साथी अधूरे रह गए।

यह केवल हादसा नहीं, नैतिक जिम्मेदारी है

इस त्रासदी पर सिर्फ दुख व्यक्त करना पर्याप्त नहीं, हम सबका नैतिक कर्तव्य है कि इन मृतकों की गरिमा बनाए रखें, उनके नाम को सनसनी से दूर रखें, और उनके परिवारों के दुःख में सच्चे मन से सहभागी बनें।
यह सिर्फ हादसा नहीं, सामूहिक शोक है, जिसे सम्मान और शांति के साथ महसूस किया जाना चाहिए,
न कि कैमरे के लेंस और चिल्लाते एंकरों के बीच बेच दिया जाए।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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