राजस्थान सरकार ने पंचायत और नगर निकाय चुनावों में ओबीसी को आरक्षण देने से जुड़ी सिफारिशों के लिए एक नया आयोग बना दिया है। इस आयोग का नाम है – राज्य ओबीसी (राजनीतिक प्रतिनिधित्व) आयोग। इसकी कमान पूर्व जिला जज मदनलाल को सौंपी गई है, जबकि बाकी सदस्यों में मोहन मोरवाल, प्रो. राजीव सक्सेना, एडवोकेट गोपाल कृष्ण और पवन मंडाविया शामिल हैं। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी है। शुरू में इस आयोग का कार्यकाल तीन महीने का रखा गया है, लेकिन जरूरत पड़ी तो इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।
इस फैसले पर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि बीजेपी सरकार चुनावों को टालने की कोशिश कर रही है।
अब जाकर सरकार को होश आया: डोटासरा
डोटासरा ने सोशल मीडिया पर लिखा,
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, ओबीसी सर्वे के बिना पंचायत और नगर निकाय चुनावों में आरक्षण नहीं दिया जा सकता। बीजेपी को सरकार बनाते ही सर्वे की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए थी, लेकिन डेढ़ साल तक कुछ नहीं किया गया।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार बिना OBC सर्वे के नगर निकाय एवं पंचायती चुनावों में आरक्षण नहीं दिया जा सकता है।
— Govind Singh Dotasra (@GovindDotasra) May 28, 2025
भाजपा को चाहिए था कि सरकार बनते ही OBC सर्वे के लिए आयोग गठित कर सर्वेक्षण का काम शुरू करें, लेकिन डेढ़ साल में कोई काम नहीं हुआ।
अब जाकर सरकार की नींद खुली है,…
उन्होंने कहा, अब जाकर सरकार को होश आया है और आयोग बना दिया है। लेकिन केवल तीन महीनों में ओबीसी की गिनती कर पाना मुश्किल है। इससे सरकार की नीयत और पारदर्शिता पर सवाल खड़े होते हैं।
असल मकसद चुनाव टालना है
डोटासरा ने यह भी आरोप लगाया कि, बीजेपी सरकार का असली मकसद चुनाव टालना है। पहले परिसीमन और अब ओबीसी सर्वे के नाम पर चुनाव की प्रक्रिया को लटकाया जा रहा है। यह लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ है और संविधान की गरिमा को ठेस पहुंचाने जैसा है।
राजस्थान में पहली बार बना ये आयोग
यह पहली बार है जब राज्य में ओबीसी राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लिए कोई आयोग बना है। इसका मकसद यह तय करना है कि पंचायत और शहरी निकायों में ओबीसी को आरक्षण कैसे और कितने प्रतिशत दिया जाए। आयोग की रिपोर्ट आने वाले चुनावों में आरक्षण नीति तय करने में अहम रोल निभाएगी।