भारत में क्रिकेट और मनोरंजन, दो ऐसे क्षेत्र हैं जो न सिर्फ जनमानस को जोड़ते हैं, बल्कि विज्ञापन उद्योग की रीढ़ भी हैं। पिछले कुछ वर्षों में रिलायंस जियो ने इन दोनों क्षेत्रों में जिस तरह से अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है, उसने न सिर्फ प्रतिस्पर्धियों को चिंता में डाल दिया है, बल्कि देश की संपूर्ण विज्ञापन रणनीतियों पर भी असर डाला है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या रिलायंस जियो की यह बढ़ती पकड़ एकाधिकार (monopoly) की ओर इशारा करती है? और क्या इसका असर भारतीय अर्थव्यवस्था, छोटे ब्रांड्स और उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा?
शुरुआत: रिलायंस जियो का उदय और रणनीति
2016 में जब जियो ने भारत में कदम रखा, तब टेलीकॉम सेक्टर में प्रतिस्पर्धा चरम पर थी। जियो ने अपने फ्री डेटा और कॉलिंग प्लान्स से एक ऐसा तूफान खड़ा किया, जिसने एयरटेल, वोडाफोन, आइडिया जैसी स्थापित कंपनियों की नींव हिला दी।
इस रणनीति का दूसरा चरण अब स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है—मीडिया, विज्ञापन और मनोरंजन के क्षेत्र पर कब्जा।
क्रिकेट: जियो की पिच पर खेलते ब्रांड्स
रिलायंस के स्वामित्व वाली Viacom18 ने IPL और अन्य क्रिकेट मैचों के डिजिटल स्ट्रीमिंग अधिकार खरीदकर जियो के मीडिया साम्राज्य को मजबूत किया है। अब क्रिकेट मैचों की स्ट्रीमिंग के दौरान जियो और उससे संबंधित ब्रांड्स का विज्ञापन प्रमुखता से दिखाई देता है।
पहले जहां IPL मैचों के दौरान कई ब्रांड्स को बराबर जगह मिलती थी, अब वहां जियो, AJIO, JioCinema, Viacom18, और Reliance Retail जैसे नामों का ही वर्चस्व है। इससे प्रतिस्पर्धियों को पर्याप्त दृश्यता नहीं मिल पा रही।
मनोरंजन उद्योग: ओटीटी और सिनेमा पर नियंत्रण
जबसे JioCinema ने मुफ्त में बड़े फिल्म और सीरीज लॉन्च किए हैं, तब से Netflix, Amazon Prime और Disney+ Hotstar जैसे बड़े ब्रांड्स को भारतीय बाजार में चुनौती का सामना करना पड़ा है।
JioCinema ने IPL को भी मुफ्त में स्ट्रीम कर, उपयोगकर्ताओं को भारी संख्या में आकर्षित किया; यह एक ऐसा कदम था जो बाकी ब्रांड्स के लिए भारी पड़ गया।
मनोरंजन उद्योग में रिलायंस अब केवल प्लेटफॉर्म नहीं बल्कि प्रोड्यूसर, डिस्ट्रीब्यूटर और विज्ञापनदाता के रूप में भी सक्रिय हो गया है। इससे इंडस्ट्री में content control और ad visibility रिलायंस के ही पास सिमटता जा रहा है।
विज्ञापन मीडिया पर एकाधिकार का खतरा
रिलायंस की बढ़ती हिस्सेदारी से विज्ञापन की दरें और स्लॉट बुकिंग की प्रक्रिया अब उसके अनुसार निर्धारित हो रही हैं। जो छोटे या नए ब्रांड्स हैं, उनके लिए प्रमुख स्लॉट लेना या बड़े इवेंट में प्रचार करना पहले से ज्यादा मुश्किल हो गया है।
पहले ब्रांड्स के पास Star Network, Sony, Zee, Colors जैसे चैनलों पर विविधता से विज्ञापन देने का विकल्प था, अब OTT और डिजिटल स्पेस में एक ही बड़े खिलाड़ी की मौजूदगी ब्रांड्स को सीमित विकल्प देती है।
प्रतिस्पर्धियों पर प्रभाव
जियो के प्रवेश के बाद ही वोडाफोन और आइडिया को मर्ज होना पड़ा। फिर भी वे लगातार घाटे में चल रहे हैं। एयरटेल ने भी अब खुद को डिजिटल सर्विस प्रोवाइडर की ओर ढालने की कोशिश की है, लेकिन क्रिकेट और मनोरंजन के विज्ञापन क्षेत्र में वो पीछे छूट गए हैं।
जहां पहले एयरटेल IPL का प्रमुख प्रायोजक हुआ करता था, अब वहां Jio और इसके सहयोगी ब्रांड्स का कब्जा है। इससे उनके ब्रांड एक्सपोजर और कस्टमर इंगेजमेंट दोनों पर असर पड़ा है।
अर्थव्यवस्था और ब्रांड विविधता पर असर
जब कोई एक कंपनी बाजार में पूरी तरह हावी हो जाती है, तो नवाचार (innovation) और प्रतिस्पर्धा में गिरावट आती है। इससे न केवल उपभोक्ताओं को कम विकल्प मिलते हैं, बल्कि पूरे विज्ञापन और कंटेंट इंडस्ट्री में रचनात्मकता का ह्रास होता है।
Startup या नए ब्रांड्स के लिए अब क्रिकेट या बड़े मनोरंजन प्लेटफॉर्म पर पहुंच बनाना अत्यंत कठिन हो गया है। विज्ञापन दरें बढ़ने और स्लॉट्स की उपलब्धता सीमित होने से केवल बड़ी कंपनियां ही मुख्य दृश्यता ले पा रही हैं।
डिजिटल मीडिया के केंद्र में जियो
भारत में जहां डिजिटल विज्ञापन का एक बड़ा हिस्सा Google और Facebook के पास था, वहीं अब जियो इन कंपनियों को टक्कर दे रहा है, लेकिन यह प्रतिस्पर्धा नहीं बल्कि वर्चस्व की ओर बढ़ता कदम है।
JioAds जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से रिलायंस अब खुद विज्ञापन नेटवर्क खड़ा कर रहा है, जो कि ब्रांड्स को एक ही चैनल के अधीन ला सकता है।
क्या नियामक कदम उठाएंगे?
भारत में Competition Commission of India (CCI) जैसे निकायों का उद्देश्य प्रतिस्पर्धा बनाए रखना है। लेकिन जियो की गतिविधियों पर अब तक कोई कठोर कदम नहीं उठाया गया है। यह चिंता का विषय बनता जा रहा है।
शुरुआत में उपभोक्ताओं को जियो के कारण सस्ते डेटा, मुफ्त कंटेंट और बेहतर सर्विस मिली। लेकिन अगर प्रतिस्पर्धा खत्म हो जाती है, तो भविष्य में विकल्पों की कमी और कीमतों में इजाफा भी संभव है।
रिलायंस जियो ने भारतीय टेलीकॉम और मीडिया इंडस्ट्री में क्रांति लाई है, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन अगर यह क्रांति धीरे-धीरे एकाधिकार की ओर बढ़े, तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था, ब्रांड्स की विविधता और उपभोक्ताओं की स्वतंत्रता तीनों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
एक लोकतांत्रिक और विविधता से भरे देश में मीडिया और विज्ञापन पर किसी एक कंपनी का वर्चस्व दीर्घकालिक रूप से सकारात्मक नहीं कहा जा सकता। जरूरी है कि विज्ञापन नीति, मीडिया नियमन और प्रतिस्पर्धा के नियमों को फिर से सशक्त किया जाए ताकि हर ब्रांड को समान अवसर मिल सके।
यह लेख किसी कंपनी के पक्ष या विपक्ष में नहीं है, बल्कि भारतीय मीडिया, क्रिकेट और विज्ञापन उद्योग की बदलती प्रवृत्तियों का विश्लेषणात्मक चित्रण है।