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सावन की कांवड़: मौसमी बेरोजगारी से धार्मिक यात्रा तक का सफर

मिश्रित खेती-सावन में दुकानदारी बंद रहने पर बनिया वर्ग ने कांवड़ यात्रा शुरू की। अब यह उत्तर भारत की बड़ी धार्मिक यात्रा बन चुकी है, बेरोजगारी का रोजगार में बदलकर महाकुंभ बन गया।

कांवड़ का आरंभ सावन में दुकानदारी शून्य होने के कारण कुछ दशक पहले बनियों ने शुरू किया।

सावन में खेती-किसानी की व्यस्तता के चलते इनसे जुड़े लोग बनियों की दुकानों से इस महीने में खरीदारी नहीं करते थे अथवा बहुत कम करते थे, क्योंकि यही वह समय होता था जब शिक्षा और खेती दोनों अपने चरम पर होते थे। इससे बनिया वर्ग एक तरह से बेरोजगार हो जाता था।

इसी सावन को लेकर ग्रामीण इलाकों में कहावत है:
सावन में सुग्गा भी उपवास करता है।

सावन का यह ‘सुग्गा’ कोई और नहीं, बल्कि बनिया ही है, जिसने इस महीने में धार्मिक यात्रा कांवड़ को चुना।

बहुत पहले ट्रेनों में बनियों के बच्चों को छोटे पीले नेकर में बिना टिकट कांवड़ यात्रा करते देखा जाता था। फिर शहरों की सीमा से जुड़े किसानी इलाकों के बनिया मित्र भी इसमें शामिल हुए। डेढ़ दशक बीतते-बीतते आज की स्थिति यह है कि पूरा उत्तर भारत इसकी चपेट में है।

बनियों की बेरोजगारी का प्रतीक बनी कांवड़ यात्रा अब उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों की सबसे बड़ी धार्मिक यात्रा बन गई है और धर्म आधारित राजनीति का महाकुंभ बन चुकी है।

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किसान और मेहनतकश वर्ग अपने खेती और शिक्षा जैसे बहुमूल्य समय को छोड़कर धार्मिक यात्रा में लग जाता है, यह इस समाज का दुर्भाग्य है।

जिस मौसमी बेरोजगारी के चलते बनिया वर्ग ने कांवड़ यात्रा शुरू की थी, वही कांवड़ आज विस्तारित होकर उन्हें रोजगार दे रही है।

आर्थिक प्रभाव

व्यापारिक मुनाफा:

  • महज एक महीने की यात्रा में लगभग ₹1,000 करोड़ का व्यवसाय होता है, जिसमें खाद्य सामग्री, कपड़े, मिट्टी के पात्र, पेट्रोल, ढाबे आदि पर खर्च शामिल है।
  • एक कांवड़िया औसतन ₹3,000-₹4,000 खर्च करता है।
  • रास्तों पर ढाबे सामान्य दिनों की तुलना में लगभग दोगुनी कमाई करते हैं।

यात्रा का दायरा:

  • 2024 में हरिद्वार के प्रमुख गंगाघाट तक कुल 4.5 करोड़ श्रद्धालु पहुँचे।

सरकारी और स्थानीय असर:

  • उत्तर प्रदेश में रास्तों पर यात्रियों की वजह से टोल प्लाज़ा को प्रति वर्ष लगभग ₹1.5–2 करोड़ का राजस्व नुकसान होता है।
  • सरकार ने करीब ₹100 करोड़ का तैयारी बजट भी जारी किया है।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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