अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपने my friend की हर दिन चड्ढी उतार रहा है। दूसरी बार अमेरिका का राष्ट्रपति बनने के बाद जिस तरह वह अपने my friend के पीछे पड़ा है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपने my friend के साथ ऐसा कभी नहीं किया।
खैर छोड़िए दोनों की बात, दोनों का स्तर एक ही जैसा है, नीच। हम भारत और भारतीय प्रधानमंत्री की बात करते हैं…
सिंदूर ऑपरेशन में हमारी जीत हुई है, निश्चित रूप से हमारी जीत हुई है। हमारी सेनाओं के शौर्य और पराक्रम को सारी दुनिया ने देखा है। मगर रवीश कुमार पूछ रहे हैं कि विजय के इस पावन पर्व पर देश में खुशी कहां है?
बात भी सही है, जो देश क्रिकेट में चैंपियंस ट्रॉफी जीतने पर इंडिया गेट से लेकर मुंबई की सड़कों तक रात भर जश्न मनाता रहा हो, वह बहुप्रतीक्षित पाकिस्तान पर विजय के बाद इतना खामोश क्यों है?
ना कोई खुशी, ना कोई जश्न? सिर्फ सवाल हैं, सवाल हैं, और सिर्फ सवाल हैं कि जब हमारी सेनाएं जीत रही थीं, तब सीज़फायर क्यों?
जब पाकिस्तान गिड़गिड़ाता हुआ भारत के पास आया, तो उससे POK लेने की बात क्यों नहीं हुई? क्यों नहीं उसके प्रधानमंत्री से तमाम समझौतों पर हस्ताक्षर कराए गए? और सीज़फायर की घोषणा के 3 घंटे बाद पाकिस्तान ने फिर मिसाइलें और ड्रोन भारतीय सीमा में भेजे? और कल तक वह लगातार दुस्साहस कर रहा है कि हमारी तमाम फ्लाइट्स अमृतसर नहीं पहुंच पा रही हैं?
इन सवालों का जवाब देने की बजाय देश के प्रधानमंत्री भारतीय सेना को ढाल बनाकर उसके पीछे छिप रहे हैं, जिससे उनसे कोई सवाल ना पूछ सके।
देश सवाल पूछ रहा है और देश के प्रधानमंत्री आदमपुर एयरबेस जाकर सेना के जवानों के बीच भाषणबाज़ी कर रहे हैं। देश के सारे गोदी मीडिया चैनल इसका लाइव प्रसारण कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी देश में तिरंगा यात्रा निकाल रही है, जो कल कर्नल सोफिया कुरैशी पर गाली-गलौज से शुरू हुई। हकीकत यह है कि इस यात्रा के लिए उसे पार्टी के कार्यकर्ता नहीं मिल रहे हैं।
इस सबसे बचने के लिए सेना से बार-बार लाइव प्रेस कॉन्फ्रेंस कराई जा रही है, पाकिस्तान पर विजय के प्रमाण दिखाए जा रहे हैं, मगर देश में विजय का जश्न गायब है। दर्जनों मीडिया चैनलों के विजय की हवा भरने पर भी हवा नहीं भरी जा रही है, जैसे देश में खुशी का गुब्बारा पंचर हो गया है।
एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दावों को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार झुठला रहे हैं, और कल सऊदी अरब से उन्होंने फिर कहा कि मैंने भारत-पाकिस्तान का युद्ध रुकवा दिया, नहीं तो मिलियन्स लोग मारे जाते।
देश की सरकार के दावों के विपरीत डोनाल्ड ट्रंप के इस बयान का नाम लेकर खंडन करने का साहस न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में है, न उनकी सरकार में।
दरअसल जब आप अपने देश में दो समुदायों को लड़ाकर, दंगा-फसाद कराकर, एक समुदाय के लोगों का कत्लेआम कराकर, उनके खिलाफ नफ़रत फैला कर सत्ता के शीर्ष पर पहुंचते हैं, तो वैश्विक मंच पर आप किसी से आंख मिलाने का साहस नहीं कर पाते।
सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे ऐसे लोगों को एक समुदाय से घृणा के कारण इतिहास में उस व्यक्ति को घृणा के साथ ही याद किया जाता है। उदाहरण के लिए हिटलर, मुसोलिनी, माओ, सद्दाम हुसैन और असद अल बशर जैसे तमाम नाम हैं…
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी विश्वसनीयता के निम्नतम स्तर पर हैं। उनके लोग ही विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि जब देश की सेना पाकिस्तान पर विजय की ओर अग्रसर थी, तब सीज़फायर क्यों? अगर सीज़फायर हुआ, तो पाकिस्तान के DGMO से 1971 की तरह सार्वजनिक रूप से दस्तखत क्यों नहीं करवाए गए?
सवाल बहुत हैं, जवाब एक भी नहीं। पाकिस्तान, POK को भारत में मिलाना और अखंड भारत बनाना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा का मुख्य एजेंडा था, जिससे उनके संगठन में ऊर्जा मिलती थी। अब जब फैसले की घड़ी आई, तो सीज़फायर कर दिया गया। देश को अपनी सेना पर पूर्ण विश्वास था कि वह ऐसा करेगी, मगर जैसे ही सेना आगे बढ़ी, उसे रोक लिया गया। कितने राफेल गिराए गए यह छिपाया जा रहा है।
ऊर्जा पूरी तरह से बिखर गई… इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारतीय सेना के पीछे छिप रहे हैं… मगर कब तक छिपेंगे?