8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि को कड़ा झटका दिया। कोर्ट ने विधानसभा से पारित 10 बिलों को रोके रखने और राष्ट्रपति को भेजने को “अवैध” और “असंवैधानिक” ठहराया। इन बिलों को विशेष शक्ति (अनुच्छेद 142) का इस्तेमाल कर मंजूर मान लिया गया। साथ ही, कोर्ट ने राज्यपाल की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि उन्होंने “ईमानदारी से काम नहीं किया” और संवैधानिक जिम्मेदारी को ठीक से नहीं निभाया।
हैरानी की बात है कि इतनी तगड़ी फटकार के बाद भी राज्यपाल आरएन रवि ने अपने पद से त्यागपत्र नहीं दिया है, और न ही केंद्र सरकार की मंशा दिख रही है कि वो राज्यपाल रवि को हटाएगी। ये राजनीतिक शुचिता की कमी का ताकतवर नमूना है।
दस बिलों का विवाद
तमिलनाडु विधानसभा ने 2020 से 2023 के बीच 10 अहम बिल पास किए। ये बिल मुख्य रूप से विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति से जुड़े थे। मकसद था नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल से हटाकर राज्य सरकार को देना। लेकिन राज्यपाल ने इन्हें लंबे समय तक अटकाए रखा।
कौन से थे वो 10 बिल?
- तमिलनाडु डॉ. अंबेडकर लॉ यूनिवर्सिटी (संशोधन) विधेयक – कानून शिक्षा में सुधार।
- तमिलनाडु डॉ. एमजीआर मेडिकल यूनिवर्सिटी (संशोधन) विधेयक – चिकित्सा क्षेत्र के लिए।
- तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक – खेती में बदलाव।
- तमिल विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक – संस्कृति संरक्षण।
- तमिलनाडु मत्स्य विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक – नाम बदलकर जयललिता के नाम पर।
- तमिलनाडु पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक – पशु कल्याण।
- मद्रास विश्वविद्यालय (संशोधन) विधेयक – ऐतिहासिक संस्थान में सुधार।
- तमिलनाडु सिद्ध चिकित्सा विश्वविद्यालय विधेयक – नया विश्वविद्यालय।
- तमिलनाडु विश्वविद्यालय संशोधन विधेयक – अन्य विश्वविद्यालयों के लिए।
- तमिलनाडु उच्च शिक्षा विभाग संशोधन विधेयक – 12 विश्वविद्यालयों के लिए।
राज्यपाल की मनमानी की कहानी
ये बिल जनवरी 2020 से अप्रैल 2023 के बीच पारित हुए। राज्यपाल आरएन रवि ने इन्हें अपनी मेज पर दबाए रखा। नवंबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद इन्हें “असहमति” के साथ वापस किया। विधानसभा ने 18 नवंबर 2023 को दोबारा पास कर भेजा, लेकिन राज्यपाल ने इन्हें राष्ट्रपति के पास भेज दिया।
सुप्रीम कोर्ट का सख्त फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का ये रवैया गलत था। इन बिलों को 18 नवंबर 2023 से पारित माना जाएगा, जिस दिन विधानसभा ने इन्हें दोबारा पास किया। कोर्ट ने समय सीमा तय की: सहमति हो तो 1 महीने, राष्ट्रपति को भेजना हो तो 3 महीने। कोर्ट ने ये भी कहा कि राज्यपाल के पास “पॉकेट वीटो” का अधिकार नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल की कड़ी भर्त्सना की। कोर्ट ने कहा कि रवि ने “ईमानदारी से काम नहीं किया”। उन्होंने संविधान के हिसाब से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। ये टिप्पणी उनकी मनमानी पर बड़ा प्रहार है। यानी सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल आरएन रवि को बेईमान तक बता दिया है।
हमेशा से संघी रहे हैं आरएन रवि
आरएन रवि भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के 1976 बैच के केरल कैडर के अधिकारी रहे। रिटायरमेंट के बाद उन्हें नागालैंड का राज्यपाल बनाया गया (2019-2021), और फिर सितंबर 2021 में तमिलनाडु भेजा गया। उनकी छवि कट्टर संघी और केंद्र सरकार के करीबी की रही है, जिसके चलते डीएमके के साथ उनका टकराव बढ़ा।
तमिलनाडु के लिए जीत
ये फैसला तमिलनाडु सरकार के लिए बड़ी राहत है। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे “ऐतिहासिक” बताया। उन्होंने कहा कि ये सभी राज्यों के लिए सबक है। बिलों के लागू होने से शिक्षा में सुधार आएगा।
अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को बिल पर फैसला लेना होता है। लेकिन रवि ने न समय पर कुछ किया, न वजह बताई। सुप्रीम कोर्ट ने इसे “शक्ति का दुरुपयोग” कहा। उनकी देरी ने संविधान की भावना को ठेस पहुंचाई।
राजनीतिक एजेंडा चला रहे हैं राज्यपाल आरएन रवि
कई लोग इसे केंद्र सरकार का खेल मानते हैं। तमिलनाडु में डीएमके और बीजेपी की तनातनी पुरानी है। राज्यपाल की हरकतों को बीजेपी की शह माना जा रहा है। ये चुनी हुई सरकार को कमजोर करने की कोशिश थी।
इन बिलों की देरी से विश्वविद्यालय प्रभावित हुए। कुलपतियों की नियुक्ति अटकी, प्रशासन ठप रहा। छात्रों और शिक्षकों ने इसका विरोध किया। राज्यपाल की हठधर्मिता ने शिक्षा को नुकसान पहुंचाया।
लोकतंत्र की जीत
ये फैसला जनता और लोकतंत्र के लिए राहत है। विधानसभा ने जनहित में बिल पास किए थे। राज्यपाल की मनमानी ने इसे रोका था। अब ये बिल लागू होंगे, जो जनता के हक में है।
अब इन बिलों को लागू करने की प्रक्रिया शुरू होगी। विश्वविद्यालयों में नई जान आएगी। लेकिन राज्यपाल और सरकार का तनाव खत्म होने की उम्मीद कम है। ये फैसला आगे के विवादों को रोकेगा।
संभल जाएं राज्यपाल
ये फैसला देश भर के राज्यपालों के लिए सबक है। पंजाब, केरल, और बंगाल में भी राज्यपाल सरकार से टकराते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि उनकी मनमानी नहीं चलेगी। संविधान सबसे ऊपर है।
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल आर.एन. रवि की मनमानी को बेनकाब कर दिया। उनकी आलोचना करते हुए कोर्ट ने कहा कि वो संवैधानिक जिम्मेदारी से भागे। 18 नवंबर 2023 से मंजूर इन बिलों ने लोकतंत्र की ताकत दिखाई। राज्यपाल को अपनी हद समझनी होगी, वरना कोर्ट की फटकार उनका इंतजार करेगी।