भारतीय सेना की प्रतिष्ठित पत्रिका बातचीत के विशेषांक के मुख्य पृष्ठ पर छपी वह तस्वीर आज इतिहास बन चुकी है, लेफ्टिनेंट कर्नल हर्ष गुप्ता और हवलदार सुरिंदर सिंह गर्व से अपने द्वारा डिजाइन किए गए लोगो के साथ खड़े हैं। ये दोनों ही सैनिक न तो ग्राफिक डिजाइनिंग के विशेषज्ञ थे और न ही कला के छात्र। लेफ्टिनेंट कर्नल गुप्ता जम्मू के राठौर रेजिमेंट के एक युद्ध-कुशल अधिकारी हैं, जिन्होंने कारगिल युद्ध में भाग लिया था, जबकि हवलदार सुरिंदर सिंह पंजाब रेजिमेंट के 35 वर्षीय अनुभवी जवान हैं, जिनके पिता और दादा भी सेना में रहे। उनकी यह जोड़ी सेना के स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन विंग में अस्थायी तौर पर तैनात थी।
ऑपरेशन के नाम सिंदूर को सुनते ही उनके मन में एक विजुअल उभरा, भारतीय नारी के सिंदूर से जुड़ा गौरव, बलिदान की लाली, और दुश्मन को चेतावनी देने वाला रंग। गुप्ता ने कागज पर पहला स्केच बनाया, जिसे सुरिंदर ने डिजिटल रूप दिया। दोनों ने रातों-रात जागकर 12 ड्राफ्ट तैयार किए, जिनमें से अंतिम संस्करण ने न केवल सेना प्रमुख को प्रभावित किया बल्कि राष्ट्र की आत्मा को छू लिया। यह लोगो बनाने की प्रक्रिया स्वयं एक सैन्य ऑपरेशन जैसी थी; गोपनीय, तीव्र, और पूर्ण समर्पण के साथ।
पहलगाम का रक्तरंजित सूर्यास्त
22 अप्रैल 2025 की वह शाम कश्मीर घाटी के इतिहास में सबसे काली तारीख बन गई। पहलगाम की बैसरान घाटी, जो अपने शांत माहौल और हरे-भरे मैदानों के लिए प्रसिद्ध है, अचानक नरसंहार का मंच बन गई। स्थानीय समय शाम 5:37 बजे, जब पर्यटक लिद्दर नदी के किनारे चाय पी रहे थे या फोटो खींच रहे थे, पांच अलगाववादी आतंकवादियों ने AK-47 और हैंड ग्रेनेड से हमला बोल दिया। ये आतंकवादी घाटी के घने जंगलों से होकर सुरक्षा चौकियों को चकमा देते हुए अंदर घुस आए थे।
अगले 17 मिनट तक चली इस बर्बर कार्रवाई में 26 निर्दोष नागरिक मारे गए, जिनमें महाराष्ट्र के नासिक से आए शर्मा परिवार के पाँच सदस्य, दिल्ली की तीन कॉलेज छात्राएँ, और केरल के दो नवविवाहित जोड़े शामिल थे। सबसे छोटी शिकार 8 वर्षीय आद्या मिश्रा थी, जो अपनी साइकिल से गिरे आइसक्रीम को उठा रही थी।
हमले के बाद का दृश्य मानवीय संवेदनाओं को झकझोर देने वाला था; लाशों के ढेर, जमीन पर बिखरी चप्पलें, खून से लथपथ पिकनिक कपड़े, और एक बच्चे का खोया हुआ बैंगनी रंग का जूता। इस घटना ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया। दिल्ली के इंडिया गेट पर जनसैलाब उमड़ पड़ा, जहाँ लोग मोमबत्तियाँ लेकर शोक व्यक्त कर रहे थे। प्रधानमंत्री कार्यालय में आपात बैठक हुई, जहाँ यह स्पष्ट हो गया कि अब जवाबी कार्रवाई अपरिहार्य है।
अंधेरी रात में कहर बरपा
7 मई 2025 की वह ऐतिहासिक रात भारतीय सैन्य इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गई। रात 1:05 बजे, जब पाकिस्तानी सीमा के उस पार के आतंकी ठिकानों में सोने की तैयारी हो रही थी, भारतीय विशेष बलों के कमांडो साये की तरह सीमा पार कर गए। यह ऑपरेशन सावधानीपूर्वक तैयार किया गया था; सैटेलाइट इमेजरी, मानव बुद्धिमत्ता और ड्रोन फुटेज के आधार पर पाकिस्तान अधिकृत
कश्मीर (PoK) के मुजफ्फराबाद, कोटली और भीम्बर क्षेत्रों में स्थित 9 आतंकी शिविरों को चिह्नित किया गया था। इनमें लश्कर-ए-तैयबा के तीन, जैश-ए-मोहम्मद के चार और हिजबुल मुजाहिदीन के दो ठिकाने शामिल थे। प्रत्येक टीम में 8 कमांडो थे, जो साइलेंस्ड हथियारों, नाइट विजन गॉगल्स और लेजर गाइडेड एक्यूरेसी सिस्टम से लैस थे। 25 मिनट तक चले इस ऑपरेशन में किसी भी पाकिस्तानी सैन्य ठिकाने को निशाना नहीं बनाया गया, जो भारत के संयम और सटीकता का प्रमाण था।
मिशन पूरा होने के ठीक बाद 1:30 बजे, विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी ने प्रेस को जानकारी दी: पहलगाम के शहीदों को न्याय मिल गया है। हमारी कार्रवाई केवल आतंकवादियों और उनके ठिकानों तक सीमित थी। रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, इस ऑपरेशन में करीब 45-50 आतंकी मारे गए, जिनमें पहलगाम हमले के दो मास्टरमाइंड भी शामिल थे।
कैसे एक लोगो बना राष्ट्रीय प्रतीक
ऑपरेशन की सफलता की घोषणा के महज 21 मिनट बाद, सुबह 1:51 बजे भारतीय सेना के सोशल मीडिया हैंडल पर वह ऐतिहासिक पोस्ट लाइव हुआ। गहरे लाल रंग के बैकग्राउंड पर सफेद अक्षरों में लिखा था: #PahalgamTerrorAttack Justice is Served. Jai Hind! और बीच में OPERATION SINDOOR का वह अद्वितीय लोगो जिसमें पहले O की जगह सिंदूर से भरा कटोरा और दूसरे O के चारों ओर सिंदूर के छींटे बने थे। इस पोस्ट ने इंटरनेट पर तूफान ला दिया। पहले घंटे में ही 2.5 मिलियन लाइक्स, 1 मिलियन शेयर और 5 लाख कमेंट आए।
बॉलीवुड से लेकर राजनीति तक सभी ने इसे शेयर किया, अमिताभ बच्चन ने ट्वीट किया: यह लाल रंग निर्दोषों के खून का सम्मान है, तो राहुल गांधी ने लिखा: सैनिकों के साहस को नमन। सेना के स्ट्रैटेजिक कम्युनिकेशन विभाग ने इसके बाद एक शॉर्ट फिल्म जारी की, जिसमें लेफ्टिनेंट गुप्ता और हवलदार सिंह को लोगो बनाते हुए दिखाया गया, साथ ही पहलगाम पीड़ितों के परिवारों की प्रतिक्रियाएँ थीं। यह वीडियो 10 मिनट में ही 5 मिलियन व्यूज पार कर गया। देश भर में सड़कों पर युवाओं ने इस लोगो को अपने माथे पर बनाया, दुकानों के बोर्ड पर छपवाया और कारों पर स्टीकर लगाए। एक साधारण डिजाइन भारत की सामूहिक भावना का प्रतीक बन गया।