तेज प्रताप यादव को लेकर इन दिनों सहानुभूति जताई जा रही है। लोग कह रहे हैं कि जब तेजस्वी यादव ने अपनी ईसाई गर्लफ्रेंड से शादी की और परिवार ने उसे स्वीकार कर लिया, तो तेज प्रताप ने तो जाति के भीतर ही शादी की थी, फिर उनके साथ ऐसा सख्त बर्ताव क्यों?
असल में मामला इतना सीधा नहीं है। तेज प्रताप ने एक नहीं, बल्कि दो महिलाओं के साथ विश्वासघात किया है। उन्होंने खुद स्वीकार किया है कि वे अनुष्का यादव के साथ 12 साल से रिलेशनशिप में थे, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अनुष्का को धोखा देकर ऐश्वर्या राय से शादी कर ली। ऐश्वर्या, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय की पोती हैं और चंद्रिका राय की बेटी हैं, जो लालू यादव के करीबी माने जाते हैं।
ऐश्वर्या से विवाह के समय, यदि वे पांच साल से अनुष्का यादव के साथ प्रेम संबंध में थे, तो जैसे तेजस्वी यादव ने विवाह किया, वैसे ही उन्हें अनुष्का से विवाह कर लेना चाहिए था। संभव था कि लालू प्रसाद यादव का परिवार जैसे तेजस्वी के अंतर्धार्मिक विवाह को स्वीकार कर सका, वैसे ही तेज प्रताप के अनुष्का से विवाह को भी स्वीकार कर लेता। मगर तेज प्रताप यादव ने अनुष्का को धोखा देकर उसकी जगह ऐश्वर्या राय से विवाह किया।
ऐश्वर्या राय से विवाह कर लिया तो उसे निभाना चाहिए था, मगर 175 दिन, अर्थात छह महीने से भी कम समय में, तेज प्रताप यादव तलाक लेने अदालत चले गए। और इस बीच, सात साल बाद भी जब तलाक हुआ नहीं, उन्होंने अपने प्रेम संबंधों की घोषणा कर दी। जो चित्र वायरल हुए हैं, उनसे यह सिद्ध होता है कि उन्होंने बहुत पहले ही अनुष्का से विवाह कर लिया है।
यह हिंदू मैरिज एक्ट के अनुसार गैरकानूनी है। ऐश्वर्या राय उन्हें जेल भिजवा सकती हैं, और लालू प्रसाद यादव की पूरी राजनीतिक विरासत को चोट पहुंचा सकती हैं। सेटलमेंट के लिए मांगी जा रही भारी-भरकम राशि में और बढ़ोतरी हो सकती है। विरोधी दल तेज प्रताप यादव के सहारे लालू प्रसाद यादव पर आक्रमण कर सकते हैं, और करेंगे ही।
तलाक के विवाद को देखें तो यह मामला अब ऐश्वर्या के लिए वैवाहिक संबंध या भरण-पोषण के मुआवज़े से अधिक, एक निजी खुन्नस का विषय बन गया है, जिसमें और अधिक बवाल तय है। राजनैतिक बयानबाज़ी भी तय है।
लालू प्रसाद यादव की संतानों में तेज प्रताप यादव एक अस्थिर दिमाग के व्यक्ति प्रतीत होते हैं। सार्वजनिक जीवन में उनकी शैली, रील बनाने का शौक, और उनके स्तरहीन कार्य, लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक विरासत को नुकसान पहुंचाते हैं। वह जिस तरह से व्यवहार करते हैं, वह राजनीति भाजपा के अधिक करीब दिखती है। ऐसी चर्चा भी है कि वह बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो सकते हैं।
एक व्यक्ति, जो इतने अस्थिर और अपरिपक्व आचरण का इतिहास रखता हो और राजनीतिक नुकसान का कारण बनता हो, उसके साथ जो भी कदम लालू प्रसाद यादव ने उठाया है, वह उचित प्रतीत होता है।
बाकी परिवार से किसी को अलग कौन कर पाता है? कोई नहीं… यह सिर्फ आने वाले बवंडर से अपने परिवार और राजनीतिक मूवमेंट को बचाने का प्रयास मात्र है…