वैश्विक व्यापार पर एक बड़े झटके में, अमेरिका ने 10% का बेसलाइन टैरिफ लागू करते हुए विश्व व्यापार के परंपरागत नियमों को चुनौती दी है। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा घोषित यह नया टैरिफ शनिवार आधी रात से लागू हो गया, जिसके बाद अमेरिका के बंदरगाहों, हवाई अड्डों और कस्टम गोदामों पर इसकी वसूली शुरू कर दी गई है।
इस ऐतिहासिक कदम का असर भारत, चीन और वियतनाम सहित 57 देशों पर अतिरिक्त शुल्क के रूप में दिखाई देगा, जो 9 अप्रैल से प्रभाव में आएगा। व्यापार विश्लेषकों का मानना है कि यह निर्णय द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बने वैश्विक व्यापार संतुलन को पूरी तरह से पुनर्परिभाषित करेगा।
“सबसे बड़ा व्यापारिक निर्णय”: केली एन शॉ
व्हाइट हाउस की पूर्व व्यापार सलाहकार और अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानून विशेषज्ञ केली एन शॉ ने इसे “हमारे जीवनकाल का सबसे व्यापक और साहसिक व्यापारिक निर्णय” बताया। उन्होंने कहा कि अमेरिका की इस नई रणनीति से वैश्विक टैरिफ ढांचे में व्यापक बदलाव की संभावना है, क्योंकि अब कई देश अमेरिका के साथ टैरिफ दरों को दोबारा तय करने की दिशा में बातचीत की तैयारी कर रहे हैं।
शेयर बाजारों में मची खलबली, गोल्ड और बॉन्ड्स में निवेश का रुझान
2 अप्रैल को ट्रंप द्वारा “रेसिप्रोकल टैरिफ” (प्रतिस्पर्धी शुल्क) की घोषणा के तुरंत बाद वैश्विक शेयर बाजारों में अस्थिरता देखी गई। मात्र दो दिनों में S&P 500 की कंपनियों के कुल बाजार मूल्य में 5 ट्रिलियन डॉलर की गिरावट आ गई। इसके साथ ही कच्चे तेल और अन्य कमोडिटीज की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई, जबकि निवेशक सोने और सरकारी बॉन्ड्स जैसे सुरक्षित विकल्पों की ओर रुख करते दिखे।
पहला असर किन देशों पर?
बेसलाइन टैरिफ की पहली मार ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, ब्राजील, कोलंबिया, अर्जेंटीना और सऊदी अरब जैसे देशों पर पड़ी है। इन देशों का अमेरिका के साथ पिछले वर्ष व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर पर था। व्हाइट हाउस का मानना है कि अगर व्यापार नीति निष्पक्ष होती, तो अमेरिका को इतने बड़े घाटे का सामना नहीं करना पड़ता।
नई दिशा में वैश्विक व्यापार
ट्रंप का यह कदम केवल शुल्क बढ़ाने की रणनीति नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार की दिशा और स्वरूप को बदलने की एक बड़ी पहल मानी जा रही है। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में कई देश इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रियाएं देंगे और इससे विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका और प्रभावशीलता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।
अमेरिका का यह नया टैरिफ सिस्टम न केवल वैश्विक व्यापारिक संबंधों को प्रभावित करेगा, बल्कि छोटे और विकासशील देशों के लिए भी नई चुनौतियां उत्पन्न करेगा। भारत सहित कई देशों को अब अपनी व्यापार नीति और निर्यात रणनीति को पुनः मूल्यांकन करने की आवश्यकता होगी।