उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का इस्तीफा हैरान करने वाला है, इस पर उनके इस्तीफे की बताई गई वजह और भी हैरान कर देने वाली है…
क्योंकि जिन पदों को पाकर बड़े से बड़े बीमार अच्छे हो जाते हैं, उनके चेहरे चमकने लगते हैं, उस पद पर बैठा कोई व्यक्ति स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दे, यह समझ से परे है…
जगदीप धनखड़ भारत के ऐसे पहले उपराष्ट्रपति ही नहीं, बल्कि पहले सरकारी राजनीतिक पदाधिकारी हैं जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा दिया है।
भारत के इतिहास में अब तक किसी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति को तो छोड़िए, मंत्री, उपमंत्री या राज्यमंत्री तक ने कभी स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा नहीं दिया। इसके विपरीत, जवाहरलाल नेहरू से लेकर अब तक कई सांसद और मंत्री अपने पदों पर रहते हुए स्वाभाविक मृत्यु को प्राप्त हुए हैं, से अनेक उदाहरण मौजूद हैं।
दरअसल, स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफा न देने का सबसे बड़ा कारण VIP प्रोटोकॉल के तहत मुफ्त इलाज होता है। इसके लिए वे देश से लेकर विदेश तक सरकारी खर्च पर सर्वश्रेष्ठ इलाज की पात्रता हासिल कर लेते हैं, और ऐसे इलाज होते रहे हैं।
ऐसे तमाम उदाहरण मौजूद हैं कि अपने जीवन के अंत की ओर बढ़ रहे लोग, पद पाते ही सरकारी प्रोटोकॉल के तहत मिलने वाली सुविधाओं को पाकर चकाचक जवान हो गए हैं।
इनमें अटल बिहारी वाजपेयी, पी. वी. नरसिंह राव से लेकर डॉ. मनमोहन सिंह और बहुत हद तक वर्तमान प्रधानमंत्री भी शामिल हैं, जो पद पर बैठते ही चंगे हो गए।
नेता विपक्ष पद पर रहते हुए अटल बिहारी वाजपेयी तो तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कृपा से 1988 में अमेरिका जाकर सरकारी खर्च पर अपनी किडनी की बीमारी और अपने घुटने का ट्रांसप्लांट तक करवा आए। कुछ पत्रकारों का दावा है कि उन्हें कैंसर था, जिसका इलाज भी अमेरिका में सरकारी खर्च पर हुआ, वरना वे शायद ही प्रधानमंत्री का पद देख पाते…
ऐसे में उपराष्ट्रपति के पद के तहत मिलने वाली तमाम सुख-सुविधाओं, सरकारी बंगले, सैकड़ों नौकर-चाकर और VVIP ट्रीटमेंट को लात मारकर कौन स्वास्थ्य कारणों से उस पद से इस्तीफा देता है, जिस पद पर करने के लिए कुछ नहीं होता सिवाय साल में कुछ घंटे राज्यसभा की कार्रवाई में पीठासीन होने, उनको बिठाने और इनको बोलने की अनुमति देने के।
दरअसल, स्वास्थ्य कारण तो बहाना है, कहानी कुछ और है। जो भी है, मगर स्वास्थ्य कारणों से तो नहीं है… वैसे भी उपराष्ट्रपति का स्वास्थ्य ऐसा भी खराब नहीं था कि इस्तीफा दे दें…
उदाहरण यह भी है कि पद से हटते ही और तमाम स्वास्थ्य सुविधाओं से दूर होते ही कुछ दिनों में तमाम लोग इस दुनिया से चले गए…
दरअसल, मामला या तो 75 साल में रिटायर होने का है या फिर महामानव का उपराष्ट्रपति के साथ तानाशाही व्यवहार का। हालांकि उपराष्ट्रपति ने भी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल बनने से लेकर उपराष्ट्रपति के तीन साल तक कम चाटुकारिता नहीं की है, यहां तक कि नरेंद्र मोदी और महात्मा गांधी को एक बराबर तक रख दिया है…
मगर चाटने की कोई एक हद तो होती ही है कि उसके बाद आत्मसम्मान बिलबिला उठे… जगदीप धनखड़ तो वैसे ही जाट हैं… देखना है कि भविष्य में वह सत्यपाल मलिक बनते हैं या चुप होकर घर बैठ जाते हैं…