वक्फ कानून के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में हलचल तेज हो गई है। संसद के दोनों सदनों से पारित और राष्ट्रपति द्वारा मंजूर किए गए वक्फ संशोधन कानून 2025 के खिलाफ अब तक छह याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। सोमवार, 7 अप्रैल 2025 को राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और इन याचिकाओं पर जल्द सुनवाई की मांग की।
कपिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि वे याचिकाकर्ता जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से पेश हो रहे हैं और उन्होंने अनुरोध किया कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए शीघ्र सुनवाई जरूरी है। इस पर भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने कहा कि इस विषय में पहले से ही एक प्रक्रिया तय है और इसे अलग से प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं थी। हालांकि, उन्होंने आश्वासन दिया कि वे दोपहर बाद सभी अर्जियों की समीक्षा करेंगे और सुनवाई की तिथि तय करेंगे।
इन याचिकाओं में वक्फ संशोधन कानून 2025 की वैधता को चुनौती दी गई है। सबसे पहले 4 अप्रैल को कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने याचिका दाखिल की थी। उनके बाद AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, आप विधायक अमानतुल्लाह खान और अन्य संगठनों ने भी याचिकाएं दायर कीं। एक गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ और केरल स्थित धार्मिक संगठन ‘समस्त केरल जमीयत-उल उलेमा’ ने भी इस कानून को चुनौती दी है। इनके वकील के रूप में सुप्रीम कोर्ट में अभिषेक मनु सिंघवी और निजाम पाशा जैसे वरिष्ठ अधिवक्ता भी उपस्थित रहे।
विरोध करने वालों का तर्क है कि नया कानून संविधान के अनुच्छेद 14 और 25 का उल्लंघन करता है, जिससे धार्मिक और संपत्ति अधिकार प्रभावित हो सकते हैं। कुछ याचिकाओं में यह भी कहा गया है कि कानून के माध्यम से अल्पसंख्यक समुदाय की संपत्तियों पर नियंत्रण बढ़ाया जा रहा है, जिससे सामाजिक संतुलन बिगड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से यह उम्मीद की जा रही है कि इन सभी याचिकाओं को एक साथ जोड़ा जाएगा और विस्तृत संवैधानिक सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होगी। कोर्ट द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय इस विषय में देश की कानूनी, सामाजिक और राजनीतिक दिशा तय करने वाला साबित हो सकता है।