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वक्फ संशोधन विधेयक 2025: रोहिणी आचार्य का तीखा वार

वक्फ संशोधन विधेयक 2025 पर सियासी घमासान तेज हो गया है, जहां रोहिणी आचार्य ने इसे अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर हमला बताया, वहीं भाजपा ने इसे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार का कदम करार दिया। इस बीच, नासमझ शांभवी चौधरी की अपरिपक्व प्रतिक्रिया बहस में कोई ठोस योगदान नहीं दे पाई।

लोकसभा में पारित वक्फ संशोधन विधेयक 2025 को लेकर सियासी घमासान जारी है। विपक्ष इसे अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर हमला करार दे रहा है। इस विधेयक पर राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की नेता रोहिणी आचार्य ने तीखा हमला बोलते हुए इसे संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का दमन बताया।

रोहिणी आचार्य का BJP पर प्रहार

गुरुवार (3 अप्रैल) को एक्स (X) पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए रोहिणी आचार्य ने भाजपा पर सीधा निशाना साधते हुए लिखा:

“वक्फ संशोधन बिल का असली मकसद साफ है – अल्पसंख्यकों के धार्मिक क्रियाकलापों में दखलंदाजी, संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का दमन और उनकी धार्मिक संस्थाओं की संपत्तियों पर कब्जा।”

भाजपा की विभाजनकारी राजनीति पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा:

“जो भाजपा ‘80 और 20… बंटोगे तो कटोगे’ जैसे विखंडनकारी नारे देती है, जो वेशभूषा और पहनावे के आधार पर अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करती है, वही भाजपा अब वक्फ संशोधन बिल लाकर इसे अल्पसंख्यकों के हित में बताने का नाटक कर रही है। देश और अल्पसंख्यक समुदाय गुजरात नरसंहार को अंजाम देने वालों की बातों पर भरोसा नहीं करेगा।”

नासमझ शांभवी चौधरी की अपरिपक्व प्रतिक्रिया

इस मुद्दे पर लोजपा (रामविलास) की सांसद शांभवी चौधरी ने भी बयान दिया, लेकिन उनकी दलील नासमझी भरी और बचकानी लगी। उन्होंने मीडिया से बातचीत में कहा:

“यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास गया था, जहां इस पर विस्तार से चर्चा हुई। विपक्ष के सभी संशोधनों पर विचार किया गया और उनकी चिंताओं को ध्यान में रखा गया। फिर भी, अगर वे इसे चुनौती देना चाहते हैं, तो वे किसी भी चीज़ को चुनौती दे सकते हैं।”

शांभवी की यह टिप्पणी न तो विधेयक के समर्थन में ठोस तर्क पेश करती है, न ही विपक्ष के सवालों का जवाब देती है। उनकी प्रतिक्रिया एक अपरिपक्व और दिशाहीन बयान जैसी प्रतीत होती है।

क्या कहता है यह विधेयक?

वक्फ संशोधन विधेयक 2025 में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार, पारदर्शिता और कानूनी प्रक्रिया को मजबूत करने के प्रावधान हैं। हालांकि, विपक्ष का आरोप है कि यह कानून वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता खत्म कर अल्पसंख्यक समुदाय की धार्मिक संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास है।

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