अन्ना हजारे को कट्टर बेईमान पार्टी के लोगों ने दूसरा गांधी कहा था। जबकि अन्ना हजारे खुद पहले अन्ना हजारे नहीं थे, पहले अन्ना हजारे तो जयप्रकाश नारायण थे। चलिए, विस्तार से बताता हूँ…
इन्हीं जेपी का तो गांधी जी ने ढंग से काट दिया था। 17 साल के गांधी-भक्त जेपी, 15 साल की नवविवाहिता पत्नी को गांधी जी के आश्रम में छोड़कर विदेश पढ़ने चले गए।
लौटकर आए तो होश उड़ गए! गांधी जी ने प्रभावती को पढ़ा दिया था कि वैवाहिक ब्रह्मचर्य अपनाओ और पति से संबंध मत बनाओ।
जेपी पत्नी पर भड़क गए। उनसे ज़्यादा भड़के गांधी जी… कि क्या बकवास करते हो? उसे ब्रह्मचारी ही रहने दो… चुपचाप रहो।
बहुत फड़फड़ाए, लेकिन प्रभावती तो गांधी जी की अंधभक्त बन चुकी थीं। कतई राज़ी न हुईं। तभी से ये कहा जाने लगा कि अपनी पत्नी को दूसरे के पास छोड़कर जाने वाले से बड़ा भकुआ कोई नहीं होता है।
खैर, भकुआ महोदय यहां-वहां तलाश करने लगे। समाजवादी नेता अच्युत पटवर्धन की बहन विजया पटवर्धन से निकटता बढ़ी और बाकी समय वही पहले अन्ना हजारे उर्फ जेपी को संभालती रहीं। उस पर भी बाकी नेता ताने कसते थे, तो शादी के बारे में सोच ही नहीं पाए।
फिर जेपी बाकी ज़िंदगी मारे-मारे ही फिरे। राजनीतिक विचारधारा के नाम पर भी बकवास करते थे, तो वहाँ भी वैल्यू नहीं बची। फिर छात्र आंदोलन शुरू हुआ तो जाने किसकी मति मारी गई थी कि इनको अगुवाई के लिए बुला लिया गया। राजनीति से एकदम आउट हो चुके जेपी विपक्ष के नाममात्र के नेताओं से परिचित थे। शरद यादव, लालू यादव, नीतीश कुमार, सुशील मोदी और तमाम छात्र और युवा नेता तो उसी दौर में पहली बार मिले इनसे।
संघ को मान्यता देने के लिए हद से ज़्यादा बढ़कर बयान देकर स्थायी नुकसान किया, सो अलग।
सेना से बगावत करने का आह्वान करके तो इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने का मौका दे दिया। तमाम लोगों का मानना था कि तानाशाह तो इंदिरा गांधी निश्चित थीं, लेकिन इमरजेंसी लगाने की हद तक जाने की हिम्मत शायद वो न कर पातीं।
सेना से बगावत करने के पहले जेपी ने एक कांड और कर दिया था। पटना से दिल्ली हवाई जहाज़ से आते समय लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. सिन्हा भी उनकी ही फ्लाइट में थे। सिन्हा के पिता जेपी के अच्छे परिचित थे, तो रास्ते भर दोनों बतियाते चले आए। इंदिरा गांधी के जासूस उन पर निगाह रखे ही थे।
जब एयरपोर्ट से बाहर निकलने लगे तो उनके स्वागत में भारी भीड़ खड़ी थी। सब दंग रह गए कि आर्मी चीफ-इन-वेटिंग एस.के. सिन्हा विपक्ष के सबसे बड़े नेता जेपी का बैग लेकर उनके साथ-साथ चल रहे थे, जो कि दिल्ली में बड़ी रैली करने आए थे।
इसी रैली में जेपी ने सेना से बगावत करने का आह्वान कर डाला।
लेफ्टिनेंट जनरल एस.के. सिन्हा का जेपी के साथ पीए की तरह चलना, और फिर जेपी का सेना से बगावत करने का आह्वान कर डालना, इंदिरा गांधी और संजय गांधी के लिए बहुत था कि अब इन सबको रगड़ दिया जाए।
फिर वही हुआ… बाकी का तो सब जानते ही हैं।