भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका निर्विवाद रूप से प्रभावशाली रही है। हर चुनाव में बीजेपी को बहुमत दिलाने में उत्तर प्रदेश (UP) और बिहार जैसे राज्यों की भूमिका केंद्रीय रही है। लेकिन जब बात विकास, निवेश, और मेगा परियोजनाओं की आती है, तो गुजरात हमेशा प्राथमिकता में दिखता है। सवाल यह उठता है कि जिन राज्यों ने बीजेपी को सत्ता में बनाए रखा, उन्हें आखिर क्या मिला?
इस लेख में हम गहराई से विश्लेषण करेंगे कि किस प्रकार बीजेपी को वोट तो झोली भर-भर कर यूपी-बिहार से मिलते हैं, लेकिन गुजरात को विशेष प्राथमिकता दी जाती है, चाहे वह बुलेट ट्रेन की बात हो, स्टेडियम की या फिर अरबों के औद्योगिक पैकेज की।
उत्तर प्रदेश और बिहार: बीजेपी की चुनावी रीढ़
बीजेपी को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में उत्तर प्रदेश और बिहार की जनता की निर्णायक भूमिका रही है।
- 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी की 80 में से 62 सीटें जीती थीं।
- बिहार की 40 में से 39 सीटें बीजेपी गठबंधन को मिली थीं।
- 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने यूपी की 80 में से 33 सीटें जीती थीं।
- बिहार की 40 में से 12 सीटें बीजेपी गठबंधन को मिली थीं।
कुल मिलाकर, सिर्फ इन दो राज्यों ने ही बीजेपी अधिक सीटें दिलाई थीं।
परंतु जब बात होती है विकास की, नौकरियों की, उच्च शिक्षा और औद्योगिक परियोजनाओं की, तब इन राज्यों की झोली खाली दिखती है। यहां सवाल उठता है, क्या यूपी-बिहार सिर्फ वोट बैंक हैं?
गुजरात को क्यों मिलता है स्पेशल ट्रीटमेंट?
नरेंद्र मोदी स्टेडियम अहमदाबाद
- 2020 में बना दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेट स्टेडियम, 800 करोड़ की लागत से।
- नाम रखा गया नरेंद्र मोदी स्टेडियम। क्या ये सम्मान किसी और राज्य को मिल सकता था?
बुलेट ट्रेन, मुंबई से अहमदाबाद
- भारत की पहली बुलेट ट्रेन सिर्फ गुजरात और महाराष्ट्र के बीच क्यों?
- लागत 1.10 लाख करोड़ रुपये, लेकिन यूपी-बिहार के हिस्से में अब तक तेजस या वंदे भारत भी ठीक से नहीं आई।
रेल कोच फैक्ट्री दाहोद, गुजरात
- इस तरह की भारी परियोजना यूपी-बिहार जैसे बेरोजगार राज्यों को दी जा सकती थी, लेकिन फिर भी गुजरात को प्राथमिकता दी गई।
यूपी-बिहार के हिस्से में ऐसे पैकेज कब आए? याद भी नहीं।
77,000 करोड़ का 2024 का तोहफा, फिर गुजरात
2024 के आम चुनावों से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात को 77,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास सौंपा। इसमें सोलर पार्क, सड़कें, रेलवे, पेट्रोकेमिकल, और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग जैसी परियोजनाएं शामिल हैं।
इसके पहले भी:
- 2022 में गुजरात विधानसभा चुनावों से पहले मोदी सरकार ने 13,500 करोड़ रुपये की योजनाओं की घोषणा की थी।
- वहीं यूपी-बिहार के लिए ऐसा कोई विशेष पैकेज हाल के वर्षों में सामने नहीं आया।
ऐसा प्रतीत होता है कि गुजरात के लिए तो “डबल इंजन सरकार” फुल स्पीड में है, जबकि यूपी-बिहार के इंजन को सिर्फ नारों और सांप्रदायिक मुद्दों से गर्म रखा गया है।
गुजरात और गुजराती पूंजीवाद की विशेष कृपा क्यों?
जब बात गुजरात की आती है, तो ये सिर्फ स्टेडियम और बुलेट ट्रेन तक सीमित नहीं रहता। गुजरात भारत का वह राज्य बन चुका है जहाँ की ज़मीन, नीति, और सत्ता, तीनों ने कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों के लिए ड्रीम लॉन्चपैड का काम किया है।
- मुकेश अंबानी, जिनकी रिलायंस इंडस्ट्रीज को गुजरात सरकार की नीतियों से ज़मीन से लेकर टैक्स रियायतों तक हर स्तर पर लाभ मिला।
- गौतम अडानी, जिनका कारोबारी साम्राज्य 2014 के बाद विस्फोटक गति से फैला, वो भी मुख्य रूप से गुजरात और गुजरातियों की केंद्र-बिंदु वाली आर्थिक नीति के कारण।
- नीरव मोदी, जो बैंक लूटकर भाग गया, उसका मुख्य ऑपरेशन भी गुजरात में ही था।
धर्म, गोबर और गौ-रक्षा: उत्तर प्रदेश और बिहार के लिए बीजेपी का विकास मॉडल
अगर आप गौर करें तो बीजेपी द्वारा यूपी और बिहार में जो प्रमुख विषय उठाए जाते हैं, वे ज़्यादातर सांस्कृतिक, धार्मिक या भावनात्मक मुद्दे होते हैं।
- धर्मांतरण, लव जिहाद, राम मंदिर, गो-हत्या, गौ-रक्षा, संस्कृति की रक्षा,
- और अब ‘गोबर संस्कृति’ को भी महान बनाकर प्रस्तुत किया जाता है।
इन मुद्दों पर जनता को भावनात्मक रूप से जोड़कर वोट तो ले लिए जाते हैं, लेकिन जीवन सुधारने वाली योजनाओं, जैसे कि उद्योग, रोजगार, तकनीकी शिक्षा, स्टार्टअप हब या मेगाप्रोजेक्ट्स, की बात न के बराबर होती है।
उदाहरण:
- वाराणसी से सांसद होने के बावजूद वहां कोई बड़ा टेक्नोलॉजी पार्क या IIT-जैसी संस्थान नहीं आया।
- बिहार के दरभंगा, भागलपुर, या पटना जैसे ऐतिहासिक और शैक्षणिक केंद्रों को कोई नई केंद्रीय विश्वविद्यालय या इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं दी गई।
उत्तर प्रदेश और बिहार: श्रमिक राज्य या सेवा राज्य?
कोविड-19 महामारी के दौरान हमने देखा कि लाखों श्रमिक यूपी और बिहार से पलायन कर गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब आदि राज्यों में काम कर रहे थे। ये श्रमिक भारत की असंगठित अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।
परंतु दुर्भाग्य यह है कि इन्हीं श्रमिकों के लिए उनके मूल राज्यों में न तो रोजगार के अवसर हैं, न ही उद्योग, और न ही सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं प्रभावी हैं।
BJP शासन के दौरान इन राज्यों में:
- कोई बड़ा IT हब नहीं आया
- कोई विशेष आर्थिक ज़ोन नहीं बना
- कृषि आधारित आधुनिक मंडियों का निर्माण नहीं हुआ
तो सवाल है, बीजेपी ने इन राज्यों को केवल श्रमिक उत्पादन केंद्र बना दिया है?
राजनीतिक चाल: जाति, धर्म और मंदिर की राजनीति
बीजेपी जानती है कि यूपी और बिहार में वोटों का ध्रुवीकरण धर्म और जाति के आधार पर करना अपेक्षाकृत आसान है। इसलिए यहां विकास से ज्यादा बात होती है:
- राम मंदिर की
- काशी-मथुरा के मुद्दों की
- जातिगत आरक्षण, OBC जनगणना, आदि की
यही वजह है कि बुलेट ट्रेन का सपना भी यूपी-बिहार के लिए नहीं बेचा जाता, बल्कि इन्हें मंदिर दर्शन, गो-सेवा, और ‘भारत की सांस्कृतिक आत्मा’ से जोड़े रखने की कोशिश की जाती है।
युवाओं का भविष्य: कितनी नौकरियां आईं?
यूपी और बिहार देश के सबसे युवा राज्यों में गिने जाते हैं। लाखों युवा हर साल सरकारी और निजी क्षेत्र की नौकरियों की तलाश में प्रतियोगी परीक्षाएं देते हैं। लेकिन:
- रेलवे की भर्तियों में देरी
- SSC, UPSC, और राज्य परीक्षाओं में भ्रष्टाचार
- और IT, स्टार्टअप या मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र में कोई बड़ा निवेश न होना
इसका सीधा असर युवाओं के मनोबल पर पड़ता है। गुजरात में निवेश की बाढ़ है, वहीं यूपी-बिहार में युवाओं को “सेल्फ-एम्प्लॉयमेंट” और “मुद्रा लोन” की सलाह दी जाती है।
प्रश्न यह नहीं कि गुजरात को क्यों मिला, सवाल है उत्तर प्रदेश और बिहार को क्यों नहीं मिला?
कई लोग यह कह सकते हैं कि गुजरात को देना गलत नहीं है, बिल्कुल नहीं। लेकिन प्रश्न यह है कि जब यूपी-बिहार ने बीजेपी को सत्ता दिलाने में सबसे बड़ा योगदान दिया, तो उन्हें बदले में क्या मिला?
गुजरात को:
- बुलेट ट्रेन
- रेल कोच फैक्ट्री
- GIFT सिटी
- विश्व का सबसे बड़ा स्टेडियम
- टेक्सटाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स क्लस्टर
- और अब 77,000 करोड़ का पैकेज
वहीं यूपी-बिहार को:
- राम मंदिर
- गोबर की जैविक खेती
- सांस्कृतिक पर्यटन
- गंगा आरती
- और चुनावी रैलियों में बड़े-बड़े वादे
जनता से सवाल: कब तक धर्म के नाम पर वोट दोगे?
राजनीतिक दल वही करेंगे जो जनता उन्हें करने देगी। अगर यूपी और बिहार की जनता बार-बार धर्म, मंदिर, और सांस्कृतिक मुद्दों के नाम पर वोट देती रहेगी, तो कोई भी सरकार उन्हें बुलेट ट्रेन या GIFT सिटी नहीं देगी।
- जनता को अब यह तय करना होगा कि:
- उन्हें नौकरी चाहिए या नारों की गूंज?
- वे अपने बच्चों का भविष्य चाहती है या पौराणिक गौरव की कथाएं?
अब जनता को जागरूक होने की ज़रूरत
अब सवाल उठता है कि क्या यूपी और बिहार की जनता इस स्थिति से संतुष्ट है? क्या वे सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों तक सीमित रहेंगे? या वे शिक्षा, रोजगार, उद्योग और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए भी आवाज़ उठाएंगे?
जागरूकता क्यों जरूरी है?
- वोट की ताकत का सही इस्तेमाल
- सपनों को हकीकत में बदलना
- समान विकास का अधिकार
- राजनीतिक जवाबदेही सुनिश्चित करना
यूपी और बिहार की जनता को अब समझना होगा कि वोट सिर्फ भावनाओं के लिए नहीं है, बल्कि उनके भविष्य के लिए है।