पाकिस्तान जब अमेरिका के दबाव में आकर सीज़फायर की भीख मांग रहा था, तब भारत के पास एक अहम मौका था, BSF कांस्टेबल पुर्णम कुमार साहू की रिहाई की शर्त रखने का। लेकिन सवाल यह उठता है कि जब भारतीय सेना बढ़त बनाए हुए थी और रावलपिंडी, लाहौर, इस्लामाबाद तक हमले जारी थे, तो अचानक दो दिनों के भीतर सीज़फायर का फैसला क्यों लिया गया?
पुर्णम कुमार साहू की पत्नी रजनी साहू आज भी अपने पति की सुरक्षित वापसी के लिए अधिकारियों के चक्कर काट रही हैं। सरकार ने अगर सीज़फायर किया भी, तो क्या एक भारतीय सैनिक को वापस लाना कोई असंभव काम था?
आखिर कितने राफेल विमान क्षतिग्रस्त हुए? एक राफेल की कीमत लगभग 250 मिलियन डॉलर है। अमेरिकी मीडिया एक के नुकसान की बात करता है, जबकि पाकिस्तानी मीडिया का दावा है कि तीन राफेल गिरे। ऐसे में देश के सामने स्थिति स्पष्ट क्यों नहीं की जा रही?
सेना के पीछे मत छुपिए, वह देश की शान है। जानकारों का कहना है कि सीज़फायर का फैसला सेना का नहीं, बल्कि पूरी तरह सरकार का था। जबकि सेना ऑपरेशन में आगे बढ़ चुकी थी, उसे पीछे लौटने का आदेश दिया गया।
“अब गोली आएगी तो गोला जाएगा” जैसी तुकबंदी सुनाकर लोगों का गुस्सा मत दबाइए। आपने बार-बार “घर में घुसकर मारेंगे” जैसे जोशीले भाषण दिए, लेकिन जब सच में घर में घुसने और जवाब देने का वक्त आया, तो आपने खुद ही सीज़फायर का झंडा उठा लिया।
एक के बदले दस सिर लाने का वादा किया गया था, लेकिन हकीकत यह है कि एक जवान, पुर्णम कुमार साहू, को भी वापस नहीं लाया जा सका। कम से कम उसे ही सुरक्षित लौटा लाते। अब जब कुछ नहीं कर पाए, तो नाकामी छुपाने के लिए भांड मीडिया के जरिए झूठी खबरें फैलाते रहिए।
सच्चाई यही है, BSF जवान पुर्णम कुमार साहू आज भी पाकिस्तान की कैद में है।