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AIMIM की उलझन और बिहार की सियासी गणित: तेजस्वी के लिए अवसर या संकट?

AIMIM ने बिहार में महागठबंधन में शामिल होने की इच्छा जताई है, लेकिन 2025 चुनाव से पहले यह तेजस्वी यादव के लिए जोखिम भरा सौदा साबित हो सकता है। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज़ होगा।

ओवैसी साहब पांच साल तक सेक्युलर दलों को गालियां देंगे, और जब चुनाव आएगा तो उन्हीं से गठबंधन करने के लिए फड़फड़ाएंगे…

बिहार में सदर साहब की पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान ने राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने मांग की है कि महागठबंधन में एआईएमआईएम को शामिल किया जाए।

AIMIM ने बिहार में RJD को भेजा गठबंधन प्रस्ताव
[AIMIM ने बिहार में RJD को भेजा गठबंधन प्रस्ताव पत्र}

बिहार में मुस्लिम आबादी 20% है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद-कांग्रेस वाले महागठबंधन को मुसलमानों के लगभग 70% वोट मिले थे, जबकि राजग को मात्र 7% जिनमें से 2% वोट चिराग पासवान की पार्टी को गए थे। इसके अलावा, सदर साहब की पार्टी AIMIM को कुल 1.24% वोट मिले थे और वह 5 सीटें जीतने में कामयाब रही थी।

ऐसा कहा जाता है कि 2020 में तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री बनने से रोकने में AIMIM की अहम भूमिका थी, क्योंकि तेजस्वी को एनडीए से केवल 0.75% कम वोट मिले थे। AIMIM को जिन सीटों पर वोट मिले, उन्हीं सीटों पर महागठबंधन बहुत कम अंतर से हार गया।

2023 की बिहार जाति आधारित जनगणना के अनुसार, यादव समुदाय की आबादी 14.26% है। इसका मतलब यह हुआ कि तेजस्वी यादव का कोर वोट बैंक लगभग 34.26% है (14.26% यादव + 20% मुस्लिम, जो परंपरागत तौर पर उनके साथ रहे हैं)।

इस बार वक्फ़ संशोधन कानून में नीतीश कुमार के समर्थन के कारण उन्हें मिलने वाला 5% मुस्लिम वोट भी राजद की ओर शिफ्ट हो सकता है। और यह तय माना जा रहा है कि AIMIM को सीमांचल में पहले जैसा समर्थन नहीं मिलेगा, क्योंकि मुसलमानों को अपनी पिछली गलती का एहसास हो गया है।

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2020 के चुनाव में राजद को कुल 37.26% वोट मिले थे, जिनमें भाजपा को 19.46%, जेडीयू को 15.39% और मुकेश साहनी की वीआईपी को 2–3% वोट मिले थे। इस बार मुकेश साहनी महागठबंधन के साथ हैं, जिससे राजग के वोट 35% रह गए और महागठबंधन के 37.26% हो गए। यदि यही गणित 2025 में रहा, तो राजग महागठबंधन से 2–3% पीछे होगा।

कुल मिलाकर, यदि महागठबंधन अन्य छोटे दलों से 5–7% अतिरिक्त वोट ले आता है, तो तेजस्वी यादव का 2025 में मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है।

अब बात करते हैं AIMIM की। यदि तेजस्वी यादव AIMIM से समझौता करते हैं, तो यह उनके लिए एक राजनीतिक आत्महत्या के समान होगा। भाजपा का इकोसिस्टम इसका ऐसा शोर मचाएगा कि बिहार में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण तेज़ी से बढ़ जाएगा।

बेहतर यही होगा कि AIMIM बिहार विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव को समर्थन देकर खुद चुनाव से बाहर हो जाए, ताकि बिहार के मुसलमानों पर कोई ज़ालिम हुकूमत ना मुसल्लत हो।

अन्यथा, AIMIM को अकेले लड़ने देना चाहिए, क्योंकि बाहर रहकर वह जितना नुकसान महागठबंधन को करेगी, उससे अधिक नुकसान वह गठबंधन में रहकर कर सकती है।

वैसे भी इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरा स्टेकहोल्डर प्रशांत किशोर पांडेय हैं। उन्हें मुसलमानों और यादवों का वोट मिलना मुश्किल है, ऐसे में यह समझा जा सकता है कि वे किसका वोट काटेंगे।

यह मेरा पहला आकलन है…

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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