बिहार चुनाव 2025: बिहार विधानसभा चुनाव (2025) के मद्देनजर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के भीतर विभाजन की खबरें सामने आने लगी हैं। भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा ‘घुसपैठियों’ एवं जनसांख्यिकीय संकट जैसे एजेंडों को अपनी रणनीति का हिस्सा बनाने की कोशिशों के बीच, जदयू (JDU) ने इन धार्मिक/सांप्रदायिक विषयों से दूरी बनाना शुरू कर दी है। इससे गठबंधन की एकता और चुनावी स्थिरता के लिए कई चुनौतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
क्या है मामला?
- BJP ने सीमांचल के मुस्लिम बहुल जिलों (अररिया, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज) में अपने ‘घुसपैठ’ और जनसांख्यिकीय बदलाव की थ्योरी को उठाया है, यह कहते हुए कि मतदाता सूची में विदेशी या अनधिकृत लोगों का सम्मिलन हो रहा है।
- चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट किया है कि बिहार में ऐसे किसी बड़े प्रमाण नहीं मिले हैं जो इन दावों को पुष्ट करते हों।
- जदयू ने इस तरह के मुद्दों पर बंगाली चेतना, धर्म या सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बजाय विकास, शिक्षा, सड़क-बिजली, बेरोज़गारी जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देने का संकेत दिया है।
- लोजपा (रामविलास) भी इस विषय पर चुप्पी साधे हुए है, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि NDA के अन्य साझेदारों को BJP की इस रणनीति में पूर्ण समर्थन नहीं है।
विपक्ष की प्रतिक्रिया
विपक्षी दलों ने BJP पर निशाना साधा है कि वह ‘घुसपैठ’ जैसे विषयों को सत्ता के लिए प्रचार के हथियार की तरह उपयोग कर रही है, ताकि जात-धर्म और सामुदायिक विभाजन कर सकें और मुख्य विकास एजेंडों से ध्यान हटा सकें।
RJD का आरोप है कि BJP इस तरह के आदानों-प्रदान से जनता की भावनाओं को भड़काने की कोशिश कर रही है।
कांग्रेस ने 2005-2014 की अवधि के आंकड़ों को पेश करते हुए दावा किया है कि उस समय 77,156 बंग्लादेशियों को वापस भेजा गया, जबकि वर्तमान NDA शासन में यह संख्या बहुत कम रही।
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विश्लेषक क्या कह रहे हैं?
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, सीमांचल जैसे इलाकों में “घुसपैठिया” एजेंडा BJP के मूल वोट बैंक को जुटाने में काम आ सकता है, किन्तु पूरे बिहार में यह मुद्दा निर्णायक नहीं होगा। विकास-सम्बंधित समस्याएँ जैसे कृषि संकट, महंगाई, रोज़गार एवं स्कूल-स्वास्थ्य आदि जनहित के मुद्दे अभी भी वोटरों की प्राथमिकता में शीर्ष पर होंगे।
विश्लेषण यह भी है कि यदि जदयू अपने विकास और सामाजिक समरसता वाले एजेंडों पर जोर देना जारी रखे और भाजपा ‘घुसपैठ’ से जुड़े ध्रुवीकरण की राजनीति को राज्य-स्तर पर प्रमुखता देने की कोशिश करती रहे, तो मतदाता के बीच यह संदेश जाएगा कि NDA एकजुट नहीं है। इस तरह की धारणा गठबंधन को चुनावी नुकसान पहुँचा सकती है।
आगे क्या हो सकता है?
- NDA के अंदर इस असहमति को चुनाव से पहले सुलझाना ज़रूरी है, ताकि गठबंधन के प्रत्येक दल को लगे कि उसकी स्थिति सुरक्षित है।
- BJP को यह तय करना होगा कि क्या वह ‘घुसपैठ’ एजेंडा को राज्यव्यापी मुद्दा बनाना चाहेगी या केवल सीमांचल जैसी विशेष क्षेत्रों में सीमित रखेगी।
- जदयू और अन्य सहयोगी दलों के लिए यह संतुलन बनाने की चुनौती होगी कि वे विकास-और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर जोर दें एवं धर्म-ध्रुवीकरण से खुद को दूर रखें।
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बिहार चुनाव 2025 में NDA की एकजुटता के इन संकेतों से साफ है कि गठबंधन की राजनीति केवल सीटों की बाँट-फाँट नहीं बल्कि सामुदायिक विश्वास, जनभावना और सामाजिक समीकरणों को समझने की भी लड़ाई होगी।