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राम लाल जी सुमन के काफिले पर करणी सेना का हमला: राणा सांगा के इतिहास पर एक नजर

करणी सेना ने सपा सांसद रामलाल जी सुमन के काफिले पर हमला किया, जो उनके ऐतिहासिक बयान के कारण हुआ। बयान में उन्होंने राणा सांगा और कृष्णदेव राय की तुलना की थी।

कल करणी सेना के लोगों ने सपा के दलित सांसद राम लाल जी सुमन के काफिले पर हमला किया, वजह थी इतिहास पर आधारित रामलाल जी सुमन जी द्वारा दिया गया बयान,,,,

आइए हम और आप भी इतिहास के पन्नों को पलटते हैं,,,,

राणा सांगा कम से कम दस राजपूत राजाओं का संघ बना कर 1517 व 1518 के आसपास इब्राहीम लोदी से दो युद्ध लड़े, मगर वह दिल्ली सल्तनत की एक इंच ज़मीन भी नही ले पाए। फिर बाबर से 1527 में खानवा में लड़ाई हुई। इसमें सांगा ही नही पूरे राजपूत संघ हाल क्या रहा, बताने की ज़रूरत नही।

दूसरी तरफ उन्हीं के समकालीन एक अहीर राजा रहे कृष्णदेव राय। कृष्णदेव राय के बारे में कभी 80 घाव होने का दावा नहीं किया गया। फिर भी उन्होंने दकन की पांच मुस्लिम सल्तनतों बीदर, बरार, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुंडा की संयुक्त ताकत को अपने रहते कभी सर नहीं उठाने दिया। समय समय पर बहमनी सल्तनत अथवा बाद कि पांचों सल्तनतों को हराया, उनके क्षेत्र जीते, उनसे खिराज भी वसूला।

इतना ही नहीं उन्होंने उड़ीसा के गजपति को हराया ही नहीं बल्कि रौंद डाला, जिसे अपने हाथियों पर बहुत नाज़ था। उत्तमचुर के राजा को हरा कर विजयनगर राज्य को सुदूर दक्षिण तक फैला दिया। एक समय उनका राज्य उड़ीसा, महाराष्ट्र, कर्नाटका और तमिलनाडु तक फैल गया।

राणा सांगा की मौत 1528 में किन हालात में हुई ये भी सबको पता है, लेकिन कृष्ण देव रॉय प्रारम्भ से अंत तक विजेता रहे और 1529 में सामान्य परिस्थिति में बीमारी से मरे। वह कुशल कवि थे, उनके दरबार में विद्वान कवि होते थे, राणा सांगा की तरह चारण नहीं रखते थे वे। कृष्णदेव राय सभी लड़ाइयों में खुद शामिल होते थे, मगर दकन की पांचो मुस्लिम सल्तनत हो या गजपति या फिर चूर नरेश, या पूर्व की बहमनी, दुश्मन कभी उन्हें छू तक न सके, जबकि राणा से पराजित होने वाले इब्राहिम ने 1517 में खातौली की लड़ाई में राणा सांगा का एक हाथ और एक पैर तक बेकार कर दिया था।

अब कम्युनिटी इतिहास में आस्था रखने वाले भले राणा सांगा को महावीर माने, मगर अकादमिक इतिहासकार तो असलियत लिख ही देते हैं। सच यही है कि कृष्णदेव राय समान बहादुर भारतीय शासक मध्यकाल के इतिहास में मुश्किल से मिलेंगे।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जिनकी कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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