पिछले कुछ हफ्तों से हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के बीच तकरार खबरों में छाई हुई है। ट्रंप सरकार ने हार्वर्ड को मिलने वाली 2.2 अरब डॉलर से ज्यादा की फंडिंग और कई तरह की रियायतों पर रोक लगा दी है। इसी मामले में अमेरिका की शिक्षा मंत्री लिंडा मैकमोहन ने हार्वर्ड के प्रेसिडेंट डॉ. एलन गार्बर को एक सख्त चेतावनी भरी चिट्ठी भेजी। लेकिन ये चिट्ठी खुद मंत्री के लिए मुसीबत बन गई।
तीन पन्नों की उस चिट्ठी में इतनी भाषाई और ग्रामर की गलतियाँ थीं कि सोशल मीडिया पर लोगों ने उसे निशाने पर ले लिया। चिट्ठी की स्कैन कॉपी पर यूज़र्स ने लाल पेन से एडिटिंग करते हुए स्पेलिंग मिस्टेक्स, गलत वाक्य और कैपिटल लेटर्स के बेवजह इस्तेमाल को दिखाया। अब ये चिट्ठी वायरल हो गई है और कई लोग मंत्री को “अनपढ़” कह रहे हैं। एक यूज़र ने तंज कसते हुए लिखा, “क्या ये अमेरिका की शिक्षा मंत्री हैं या हाई स्कूल की स्टूडेंट?”
our secretary of "education" https://t.co/ds5cwk0uHl pic.twitter.com/4MR4DEydUZ
— daniel (michelle steel hate account) (@danielluo_pi) May 6, 2025
ट्रंप सरकार ने हार्वर्ड के खिलाफ एक्शन क्यों लिया?
11 अप्रैल को सरकार ने हार्वर्ड को एक पत्र भेजा, जिसमें कहा गया कि यूनिवर्सिटी अपनी एडमिशन पॉलिसी, कैंपस में विविधता से जुड़ी चर्चाएं, और सरकारी फंडिंग के इस्तेमाल के तरीकों की समीक्षा करे। हार्वर्ड ने इन मांगों को खारिज कर दिया और साफ कहा कि वे किसी तरह के दबाव में झुकने वाले नहीं हैं। इसके कुछ ही घंटों बाद सरकार ने उनकी फंडिंग रोक दी।
इसके विरोध में हार्वर्ड ने बोस्टन की संघीय अदालत में केस दर्ज किया है। यूनिवर्सिटी ने तर्क दिया कि सरकार का यह कदम किसी भी तरह से यहूदी विरोध या रिसर्च से जुड़ी चिंताओं से नहीं जुड़ता और इससे देश के इनोवेशन और रिसर्च को नुकसान होगा।
व्हाइट हाउस के प्रवक्ता हैरिसन फील्ड्स ने इस पर कहा, “जो यूनिवर्सिटी आम अमेरिकियों के टैक्स के पैसे से चल रही है, उसे नौकरशाही की सैलरी में उड़ाने की इजाज़त नहीं दी जा सकती।”