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आत्ममुग्ध पत्रकारिता: लोकतंत्र का चौथा स्तंभ या निजी महिमा मंडन?

आज की पत्रकारिता आत्ममुग्धता की बीमारी से ग्रस्त है। बड़े चैनलों से जुड़े पत्रकार खुद को श्रेष्ठ मानते हैं, जबकि असली पत्रकारिता निष्पक्षता, विनम्रता और जनहित में होती है।

पत्रकारिता भी एक खास किस्म की बीमारी से ग्रस्त हो चुकी है वह है आत्ममुग्धता बन्तुपन। आत्ममुग्ध पत्रकारों की एक लंबी जमात है, जिनकी सोच, दृष्टिकोण और व्यवहार में ‘मैं ही सर्वश्रेष्ठ’ का भ्रम साफ झलकता है।

इन आत्ममुग्ध पत्रकारों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वे अपने को बड़े बैनर या राष्ट्रीय चैनल का हिस्सा मानते हुए बाकियों को दोयम दर्जे का समझते हैं। वह अपने सहयोगियों को ऐसी नजरों से देखते हैं जैसे कोई राजा प्रजा को देख रहा हो। उनकी नजर में वही पत्रकार हैं जो उनके या उनके जैसे किसी चैनल या अखबार में हैं, बाकी सब बेकार हैं, ऐसे पत्रकारों में व्यवहार, विचार,विनम्रता का नितांत अभाव होता है।

इस टाइप के पत्रकार पुलिस-प्रशासनिक अधिकारियों के टेबल के इर्दगिर्द या सत्ताधारी नेताओं से गलबहियां करते दिख जायेंगे। हर प्रेस कॉन्फ्रेंस, हर राजनीतिक कार्यक्रम या कवरेज में खुद को प्राथमिकता देने के लिए संघर्ष करते नजर आएंगे । यह माइक के स्थान से लेकर कुर्सी की पंक्ति तक, हर चीज़ में उन्हें विशेष महत्व चाहिए। उनका मानना होता है कि उनका ‘लोगो’ ही पर्याप्त है किसी दरवाज़े को खुलवाने के लिए, जबकि पत्रकारिता का असल मापदंड सवाल पूछना, जमीनी रिपोर्टिंग करना, और निष्पक्ष रहना जो शायद ही मौजूद हो।

ऐसे पत्रकारों का सिर्फ व्यवहार ही नहीं, उनके लिखे और बोले गए शब्दों में भी आत्ममुग्धता झलकती है। ऐसे पत्रकार सोशल मीडिया पर खुद को ऐसा जाहिर करते हैं जैसे लोकतंत्र के चौथे खम्भे को वही संभाले हुए हैं। मगर जब बात जन सरोकार की आती है जैसे नगर की अव्यवस्था, भ्रष्टाचार या जनता की समस्या तो ये पत्रकार या तो चुप्पी साध लेते हैं या फिर ‘प्रेस रिलीज़, बाईट वर्जन पत्रकारिता’ तक ही सीमित रहते हैं।

हकीकत यह है कि पत्रकारिता आत्ममुग्धता का नहीं, आत्मनियंत्रण और आत्मविश्लेषण का पेशा है। मगर अफसोस कि बनारस में आजकल बहुत से पत्रकार खबर का पीछा नहीं कर रहे, बल्कि खुद को खबर बना लेने की होड़ में लगे हैं।

जरूरत इस बात की है कि पत्रकार अपने काम को आईने की तरह देखें साफ, निष्पक्ष और जनता के हित में काम करें।

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उन्हें समझना होगा कि आत्ममुग्धता उन्हें एक घमंड के खोल में बंद कर देती है, जहां न तो आलोचना की जगह होती है, न सुधार की। पत्रकारिता अगर समाज का चौथा स्तंभ है, तो उसमें विनम्रता, ईमानदारी और सजगता अनिवार्य होनी चाहिए न कि एक छद्म बड़प्पन और खोखली स्वयंश्रेष्ठता।

अगर पत्रकारिता को सचमुच नया रास्ता दिखाना है, तो उसे सबसे पहले आत्ममुग्धता के आईने को तोड़कर, जनता की नज़रों में उतरना होगा। यह बड़ा वह छोटा अखबार-चैनल एक भरम है,सत्य दिखाना ही पत्रकारिता धरम है,चाहे कोई हो।

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अनिल यादव एक वरिष्ठ पत्रकार हैं जो Anil Yadav Ayodhya के नाम से जाने जाते हैं। अनिल यादव की कलम सच्चाई की गहराई और साहस की ऊंचाई को छूती है। सामाजिक न्याय, राजनीति और ज्वलंत मुद्दों पर पैनी नज़र रखने वाले अनिल की रिपोर्टिंग हर खबर को जीवंत कर देती है। उनके लेख पढ़ने के लिए लगातार OBC Awaaz से जुड़े रहें, और ताज़ा अपडेट के लिए उन्हें एक्स (ट्विटर) पर भी फॉलो करें।

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