उत्तराखंड के चमोली जिले के माणा गांव में स्थित केशव प्रयाग में 12 साल बाद फिर से पुष्कर कुंभ का आयोजन हो रहा है। यह पवित्र आयोजन 14 मई से 26 मई 2025 तक चलेगा। रविवार को हजारों श्रद्धालु अलकनंदा और सरस्वती नदियों के संगम पर पुण्य स्नान के लिए पहुंचे।
आध्यात्मिक माहौल और श्रद्धालुओं की भागीदारी
उत्तराखंड सरकार के अनुसार, इस संगम स्थल पर अब तक हजारों लोग स्नान कर चुके हैं। घाटों पर दिनभर भजन, कीर्तन और वैदिक मंत्रों की गूंज सुनाई देती है।
यह कुंभ तब आयोजित होता है जब गुरु (बृहस्पति) मिथुन राशि में प्रवेश करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यही वह स्थान है जहां महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना की थी और रामानुजाचार्य व मध्वाचार्य को यहां सरस्वती माता से ज्ञान प्राप्त हुआ था।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का संदेश
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सोशल मीडिया पर लिखा:
12 वर्षों बाद भारत के पहले गांव माणा में पुष्कर कुंभ प्रारंभ हुआ है। अलकनंदा और सरस्वती के संगम पर यह आयोजन हमारी सनातन परंपराओं की दिव्यता का प्रतीक है।
उन्होंने सभी श्रद्धालुओं का देवभूमि उत्तराखंड में स्वागत किया।
श्री बदरीनाथ धाम के निकट भारत के प्रथम गांव माणा में 12 वर्षों बाद पुष्कर कुंभ का शुभारंभ हो चुका है। अलकनंदा और सरस्वती नदी के पावन संगम पर आस्था का यह महापर्व, हमारी सनातन परंपराओं की दिव्यता का जीवंत उदाहरण है।
— Pushkar Singh Dhami (@pushkardhami) May 15, 2025
पुष्कर कुंभ हेतु देवभूमि आए हुए समस्त श्रद्धालुओं का इस पुण्य… pic.twitter.com/EPw7nOdyT5
दक्षिण भारत से भी भारी भागीदारी
इस अवसर पर दक्षिण भारत से बड़ी संख्या में वैष्णव श्रद्धालु भी पहुंचे हैं, जो इस स्थल की आध्यात्मिक महत्ता को मानते हैं।
प्रशासनिक तैयारी
चमोली के डीएम संदीप तिवारी ने बताया कि मेले को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए:
- पैदल रास्तों को दुरुस्त किया गया है
- विभिन्न भाषाओं में साइन बोर्ड लगाए गए हैं
- पुलिस और SDRF जवानों की तैनाती घाटों और रास्तों पर की गई है
- तहसील प्रशासन को व्यवस्थाओं की निगरानी का जिम्मा सौंपा गया है
धार्मिक महत्व
केशव प्रयाग को वैदिक काल से एक पवित्र तीर्थ माना गया है। यहां हर 12 साल में कुंभ तब होता है जब गुरु मिथुन राशि में प्रवेश करता है। इसे ज्ञान, तप और भक्ति का संगम भी कहा जाता है। श्रद्धालुओं के लिए यह जगह सिर्फ एक तीर्थ ही नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव बन चुकी है।