कांग्रेस के अधिवेशन पर मायावती का हमला राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा रहा है। गुजरात के अहमदाबाद में संपन्न हुए कांग्रेस के 84वें अधिवेशन में पार्टी के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने जहां भाजपा के खिलाफ तीखा हमला बोला, वहीं अब बसपा प्रमुख मायावती ने कांग्रेस पर ही करारा प्रहार कर दिया है। उन्होंने कांग्रेस और भाजपा दोनों को आरक्षण विरोधी मानसिकता से ग्रस्त बताया।
मायावती ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर कई तीखे पोस्ट साझा किए, जिनमें उन्होंने कांग्रेस अधिवेशन में पारित प्रस्तावों को “छलावा” बताया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस का रवैया हमेशा से दलितों, पिछड़ों और बहुजन समाज के कल्याण को लेकर अविश्वसनीय रहा है। उन्होंने खास तौर पर कांग्रेस के अधिवेशन में भाजपा के ‘छद्म राष्ट्रवाद’ पर उठाए गए सवालों को दिखावा करार दिया और इसे बहुजन हितों से ध्यान भटकाने की राजनीति बताया।
मायावती ने डॉ. भीमराव अंबेडकर के संदर्भ में लिखा कि बाबा साहेब ने ओबीसी समाज के लिए धारा 340 के तहत आरक्षण की पैरवी की थी और जब उसे लागू नहीं किया गया तो उन्होंने कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू करवाने में बसपा की भूमिका ऐतिहासिक रही है, जबकि कांग्रेस और भाजपा दोनों का रवैया हमेशा से आरक्षण विरोधी रहा है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी लिखा कि “भारत रत्न” जैसे सर्वोच्च सम्मान देने के बावजूद कांग्रेस, भाजपा और सपा जैसी पार्टियां अंबेडकरवादी समाज के प्रति कभी ईमानदार नहीं रहीं। उन्होंने इन दलों पर जातिवादी मानसिकता के तहत बहुजन समाज को गुमराह करने का आरोप लगाया और कहा कि इन्हीं कारणों से बसपा का गठन हुआ था।
मायावती ने कांग्रेस और भाजपा पर “वोटों की खातिर छल और छलावे की राजनीति” करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि इन पार्टियों ने सिर्फ चुनावी लाभ के लिए बहुजन समाज के हितों की बात की, लेकिन असल में उनके कल्याण की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए।
इसके साथ ही मायावती ने सुप्रीम कोर्ट के उस ऐतिहासिक फैसले का भी स्वागत किया जिसमें राज्यपालों की मनमानी पर रोक लगाने की बात कही गई है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इससे संविधान की आत्मा और लोकतंत्र को मजबूती मिलेगी।
उधर, कांग्रेस के अधिवेशन में राहुल गांधी ने संगठन को मजबूत करने के लिए जिला कांग्रेस और जिलाध्यक्षों को पार्टी की नींव बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि जिम्मेदारी और अधिकार उन्हें दिए जाएं जो जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए काम कर रहे हैं।
इस पूरे घटनाक्रम से यह साफ होता है कि 2024 के बाद की सियासत में दलित-पिछड़ा वोट बैंक को लेकर बड़ी हलचल चल रही है, और बसपा इसे लेकर फिर से एक निर्णायक भूमिका में आने की कोशिश कर रही है।
बताते चलें कि ये दोनों पार्टियाँ — कांग्रेस और बीएसपी — दोनों ही बीजेपी की सहायक पार्टियाँ हैं। दोनों की role setting की जाती है ताकि आईटी सेल के एजेंडे का प्रसार अच्छे से हो।