हाल ही में इंटरनेट पर एक मीम ने सबका ध्यान खींचा, एक ही सपना, विशाल मेगा मार्ट सिक्योरिटी गार्ड। मजाक में शुरू हुई ये बात लोगों को हंसाने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर कर गई। इसी मीम के ज़रिए लोगों को फिर याद आई एक शख्सियत की कहानी, जिसने बेहद मुश्किल हालातों में भी हार नहीं मानी, उनका नाम है रामचंद्र अग्रवाल।
इस मीम को देखकर कई युवाओं को यह जानने की उत्सुकता हुई कि आख़िर इस ब्रांड के पीछे कौन है। कैसे एक साधारण से परिवार में जन्मा बच्चा, जो बचपन में ही पोलियो का शिकार हो गया था, अपनी तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत के बड़े रिटेल कारोबारियों में से एक बन गया? ये कहानी किसी फिल्म से कम नहीं लगती हैं।
रामचंद्र अग्रवाल कौन हैं?
रामचंद्र अग्रवाल एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में पले-बढ़े, जहाँ सुविधाएं कम थीं, लेकिन सपनों की कोई कमी नहीं थी। उनकी ज़िंदगी में सब कुछ सामान्य चल रहा था, जब महज़ चार साल की उम्र में पोलियो ने उन्हें झटका दिया। चलना-फिरना मुश्किल हो गया, और हर रोज़ एक नई चुनौती सामने खड़ी होने लगी। लेकिन रामचंद्र ने कभी भी अपनी परिस्थितियों को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया।
जहां ज़्यादातर लोग ऐसे हालात में हार मान लेते हैं, वहीं रामचंद्र ने इन्हीं मुश्किलों को अपनी ताकत बना लिया। उन्होंने मेहनत, हौसले और सोच की दम पर ‘विशाल मेगा मार्ट’ जैसा ब्रांड खड़ा किया, जो आज देश के बड़े रिटेल नामों में गिना जाता है। उनकी कहानी यही बताती है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो रास्ता खुद बन जाता है — और यही जज़्बा उन्हें लाखों लोगों के लिए एक सच्ची प्रेरणा बनाता है।

कैसे शुरू हुआ सफर?
1986 में जब भारत में बिजनेस के लिए माहौल बहुत सीमित था, तब रामचंद्र ने कोलकाता के लालबाजार में उधारी लेकर एक फोटोकॉपी की दुकान खोली। न पैसे थे, न पहचान, बस मेहनत करने का जुनून था।
धीरे-धीरे उन्होंने बिजनेस की समझ बढ़ाई और फिर कपड़ों के कारोबार में उतर गए। करीब 15 सालों तक उन्होंने गारमेंट शॉप चलाई और वहीं से उनकी असली कारोबारी यात्रा शुरू हुई।
विशाल मेगा मार्ट की शुरुआत
2001–2002 में उन्होंने दिल्ली में विशाल रिटे” की शुरुआत की। मकसद था, मिडल क्लास के लिए सस्ती और अच्छी चीज़ें उपलब्ध कराना। फैशन हो या घर का सामान, सब कुछ एक ही छत के नीचे, वो भी किफायती दामों पर।
देखते ही देखते विशाल मेगा मार्ट देशभर में मशहूर हो गया। शहरों से लेकर कस्बों तक, हर जगह इसकी पहचान बनने लगी।
2008 की कठिन दौर और वापसी
हर कामयाबी की कहानी में एक मुश्किल वक्त आता है। रामचंद्र के लिए वो समय था 2008 की मंदी। बिजनेस में बड़ा घाटा हुआ और हालात ऐसे बने कि उन्हें विशाल मेगा मार्ट ₹70 करोड़ में बेचना पड़ा।
जिस ब्रांड को उन्होंने खुद खड़ा किया था, वो अब उनके पास नहीं था। ये सिर्फ पैसों का नहीं, एक इमोशनल झटका भी था।
फिर से शुरूआत: V2 रिटेल की कहानी
रामचंद्र ने फिर एक बार जीरो से शुरुआत की, इस बार नए नाम से, V2 Retail।
V2 मतलब था Value & Variety, यानी सस्ते में बढ़िया और ढेर सारे ऑप्शन।
वो फिर उसी विज़न पर लौटे:
- आम आदमी को अच्छा सामान देना
- छोटे शहरों और कस्बों पर फोकस करना
- भरोसे और क्वालिटी पर काम करना
उन्होंने मेट्रो शहरों की जगह छोटे इलाकों से शुरुआत की और वहीं लोगों को बड़ा मॉल जैसा एक्सपीरियंस दिया, कम दाम में।
आज का V2 रिटेल
आज V2 सिर्फ एक स्टोर नहीं, एक ब्रांड बन चुका है:
- इसका टर्नओवर ₹5,600 करोड़ से ज़्यादा है
- देशभर में 100 से ज्यादा स्टोर्स हैं
- लाखों ग्राहक इससे जुड़े हुए हैं
- छोटे शहरों में ये एक भरोसे का नाम बन गया है

परिवार का मजबूत साथ
रामचंद्र की पत्नी उमा अग्रवाल V2 रिटेल की डायरेक्टर हैं। बेटा आकाश कंपनी की ग्रोथ और टेक्नोलॉजी में अहम रोल निभा रहा है। बेटी श्रेया अमेरिका में USC Marshall School of Business से पढ़ाई कर रही हैं। पूरा परिवार मिलकर इस ब्रांड को और ऊंचाइयों पर ले जाने में जुटा है।
अब विशाल मेगा मार्ट किसके पास है?
आज विशाल मेगा मार्ट स्विट्ज़रलैंड की Partners Group और भारत की Kedara Capital के पास है। इसके 668 से ज्यादा स्टोर हैं और इसकी वैल्यू ₹56,235 करोड़ से भी ज्यादा आँकी गई है।
रामचंद्र अब इससे सीधे तौर पर जुड़े नहीं हैं, लेकिन इसकी नींव उन्हीं की सोच और मेहनत से पड़ी थी।
क्या सिखाती है ये कहानी?
रामचंद्र अग्रवाल की जर्नी हमें सिखाती है कि:
- हार आखिरी नहीं होती
- हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादा पक्का है तो मंज़िल मिलती है
- पोलियो जैसी बीमारी भी आपको नहीं रोक सकती अगर आप ठान लें
- और सबसे बड़ी बात दूसरी बार खड़ा होना, पहली जीत से भी बड़ा होता है