इन्फोसिस के सह-संस्थापक नारायण मूर्ति ने हाल ही में बयान दिया था कि भारतीय युवाओं को देश की प्रगति के लिए कम से कम 70 घंटे प्रति सप्ताह काम करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ने के लिए युवाओं को कड़ी मेहनत करनी होगी। मूर्ति ने 1986 में भारत के पांच-दिवसीय कार्य सप्ताह के फैसले का भी विरोध किया था और हमेशा लंबी वर्किंग आवर्स के पक्षधर रहे हैं। उनके इस बयान ने देशभर में वर्क लाइफ बैलेंस और हेल्थ को लेकर बड़ी बहस छेड़ दी थी।
ओवरटाइम पर सख्ती, वर्क लाइफ बैलेंस पर जोर
मूर्ति के बयान के ठीक उलट, इन्फोसिस ने अब अपने कर्मचारियों के लिए ओवरटाइम पर सख्त निगरानी शुरू कर दी है। कंपनी ने एक नया मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किया है, जो खासतौर पर वर्क फ्रॉम होम (WFH) के दौरान कर्मचारियों के काम के घंटे ट्रैक करता है। इन्फोसिस ने कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश दिया है कि वे सप्ताह में पांच दिन, हर दिन 9 घंटे 15 मिनट से ज्यादा काम न करें। अगर कोई कर्मचारी तय सीमा से ज्यादा घंटे काम करता है, तो उसे पर्सनलाइज्ड ईमेल के जरिए अलर्ट भेजा जाता है, जिसमें उनके औसत मासिक वर्किंग ऑवर्स का ब्योरा भी दिया जाता है।
स्वास्थ्य और संतुलन पर फोकस
इन्फोसिस की एचआर टीम हर महीने रिमोट वर्किंग ऑवर्स की समीक्षा करती है। अगर किसी कर्मचारी के ओवरटाइम के संकेत मिलते हैं, तो उसे तुरंत अलर्ट भेजकर ब्रेक लेने, मैनेजर से सपोर्ट मांगने और काम के बोझ का पुनर्वितरण करने की सलाह दी जाती है। इन ईमेल्स में खासतौर पर वर्क-लाइफ बैलेंस, नियमित ब्रेक और मानसिक स्वास्थ्य की अहमियत पर जोर दिया जाता है। कंपनी का कहना है कि कर्मचारियों की दीर्घकालिक सफलता और व्यक्तिगत भलाई के लिए संतुलित जीवनशैली जरूरी है।
कंपनी की नीति और संस्थापक के विचारों में विरोधाभास
इन्फोसिस की मौजूदा एचआर नीति जहां ओवरटाइम और वर्क-लाइफ बैलेंस पर फोकस करती है, वहीं नारायण मूर्ति का 70 घंटे काम करने का बयान दोनों के बीच साफ विरोधाभास दिखाता है। एक ओर कंपनी अपने कर्मचारियों को ओवरवर्क से बचने और हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाने की सलाह दे रही है, वहीं संस्थापक का जोर लंबी वर्किंग आवर्स और देश के लिए अधिक मेहनत करने पर है। यही वजह है कि यह मुद्दा देशभर में चर्चा और बहस का विषय बना हुआ है।