युद्ध में झूठ और प्रोपगंडा साथ-साथ चलता ही रहा है। महाभारत के युद्ध में “अश्वत्थामा मारा गया” एक ऐसा ही झूठा प्रोपगंडा था।
दरअसल, “द्रोणाचार्य” कौरवों और पांडवों दोनों के गुरु थे। महाभारत के युद्ध के पहले जब सेना का विभाजन हुआ तो “द्रोणाचार्य” कौरवों के हिस्से में आ गए और कुरुक्षेत्र में कौरवों की तरफ़ से युद्ध करने लगे।
“अश्वत्थामा” इन्हीं गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। 12 फीट लंबे और उस दौर की समस्त सेनाओं में अश्वत्थामा को एक अत्यंत शक्तिशाली और सबसे अधिक कुशल योद्धा माना जाता था।
द्रोणाचार्य द्वारा शिव की तपस्या के कारण अश्वत्थामा का जन्म हुआ। श्रीकृष्ण के दिए अमरत्व के वरदान से लैस अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र का ज्ञान था, जो एक अत्यंत शक्तिशाली अस्त्र था और केवल कुछ विशेष व्यक्तियों को ही प्राप्त होता था।
अश्वत्थामा को मृत्यु प्राप्त नहीं हो सकती थी, वह अजेय था अर्थात उसे कोई नहीं हरा सकता था। उसके पास दिव्य अस्त्रों का ज्ञान था, जैसे कि नारायणास्त्र। और अश्वत्थामा इसके पहले युधिष्ठिर, भीम, सात्यकि और धृष्टद्युम्न को कई बार हरा चुका था।
कहने का अर्थ यह है कि अश्वत्थामा को कौरवों में सबसे शक्तिशाली योद्धा माना जाता था। अश्वत्थामा का जन्म रुद्र के अंश से हुआ था और वह रुद्र का ही अवतार माना जाता था। महाभारत युद्ध में उसने पांडव सेना को बहुत नुकसान पहुंचाया।
युद्ध में द्रोणाचार्य को कमजोर करने के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने यह बात फैलवा दी कि “अश्वत्थामा मारा गया”। यह बात प्रोपगंडा की तरह चारों ओर फैलाई गई।
द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर की बात सुनकर अपने पुत्र की मृत्यु मान ली और शस्त्र त्याग दिए, क्योंकि उन्हें युधिष्ठिर पर विश्वास था कि वह झूठ नहीं बोलेंगे। शस्त्र त्यागते ही द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने द्रोणाचार्य का “सिर तन से जुदा” कर दिया।
दरअसल, जो “अश्वत्थामा” मारा गया था, वह एक हाथी था। और धर्मराज युधिष्ठिर ने ऐसा प्रोपगंडा किया जिससे लगे कि द्रोणाचार्य अपने पुत्र अश्वत्थामा के मारे जाने से दुखी होकर युद्ध से हट जाएं, और वही हुआ।
असल में युद्ध और प्रोपगंडा साथ चलते रहते हैं। झूठ और मक्कारी इसके मुख्य अस्त्र होते हैं। अंततः महत्वपूर्ण यह होता है कि युद्ध में आप दुश्मन देश के कितने बड़े भाग तक अंदर घुस चुके हैं और विरोधी सेना अपनी कितनी ज़मीन हार चुकी है।
किसने किस पर कितने ड्रोन हमले किए, किसने किस पर मिसाइल से हमला किया — सच में उसने किया या खुद ही विक्टिम कार्ड खेलने के लिए और आत्मरक्षा में प्रतिकार करने के बहाने बड़ा हमला करने के लिए किया। खाली जगह ब्लास्ट कराकर घोषणा कर दी जाती है कि हमारा एयरबेस फलाने हमले में तबाह हो गया, जबकि ऐसा नहीं होता। ऐसे ही ड्रोन हमलों का भी खेल चलता है।
हमलों का एक पक्ष इकरार करेगा, दूसरा इनकार करेगा। युद्ध में यह मोहब्बत इसी तरह चलती रहती है। यह सब “अश्वत्थामा मारा गया” जैसा ही खेल होता है, जबकि मान्यताओं के अनुसार अश्वत्थामा आज भी जीवित है और लोगों के अनुसार मध्य प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर उसे देखा गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विशेष रूप से असीरगढ़ किले और जबलपुर के गौरी घाट के आसपास वह निवास करता है।
इसलिए “पों पों पों पों” के चक्कर में मत फंसिए और मस्त रहिए। अंतिम घोषणा तक टेलीविजन मत देखिए, नहीं तो पागल हो जाएंगे।