युद्ध विराम से भारत को क्या हासिल हुआ? भारत में फेसबुक, ट्विटर पर लोगों में गुस्सा है। बात-बात पर देश के चौराहे पर आकर कैंडल जलाने वाले राष्ट्रवादी देशभक्त भी युद्ध विराम का स्वागत करते कहीं नहीं दिखाई दिए। बल्कि आग-बबूला हैं।
मीडिया और सोशल मीडिया की खबरों के अनुसार, पाकिस्तान में इस युद्ध विराम को लेकर लड्डू बांटे जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि पाकिस्तान ने भारत को सबक सिखा दिया। यहां तक कि युद्ध विराम की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा के 2 घंटे बाद पाकिस्तान ने फिर भारत पर हमला किया। गुजरात के कच्छ से लेकर जम्मू-कश्मीर तक उसके ड्रोन देखे गए और सीमा पर उसने भारतीय सीमा सुरक्षा बल के सब-इंस्पेक्टर मुहम्मद इम्तियाज़ को शहीद कर दिया।
भारत और पाकिस्तान के युद्ध में ब्रिगेडियर उस्मान, वीर अब्दुल हमीद, कैप्टन हनीफुद्दीन के बाद देश की रक्षा करते हुए शहीद मुहम्मद इम्तियाज़ ने शहादत की उसी परंपरा को आगे बढ़ा दिया।
पाकिस्तान को लेकर देश की सभी जातियां, सभी धर्म, सभी राजनीतिक दलों की समग्र इच्छा यह थी कि पाकिस्तान को अब खत्म कर देना चाहिए। और जब युद्ध शुरू हो गया है तो इस अंजाम तक अब पहुंचना चाहिए।
देश के प्रधानमंत्री ने जब कहा कि “आतंकवादियों और उनका समर्थन करने वालों को मिट्टी में मिला देंगे” तो देश को लगा कि इस बार पाकिस्तान खत्म।
मगर गुजरात में तीन दिन दंगाइयों को खुली छूट देने वाला शख्स पूंछ में पाकिस्तान द्वारा आक्रमण करके 16 लोगों को शहीद करने के बाद भारतीय सेना को तीन दिन की खुली छूट नहीं दे सका और मात्र दो दिन के युद्ध के बाद अमेरिका के सामने झुक गया।
देश के लोगों की इच्छा के विपरीत, जबकि देश चाहता था कि इस बार पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करके ही रुकना है। हर कुछ दिन बाद ऊरी, पठानकोट, पुलवामा, पहलगाम, अब बर्दाश्त नहीं।
भारतीय मीडिया की चाटुकारिता अलग बात है। उसका काम ही है सरकार की गलतियों की रफूगरी करना। युद्ध के फायदे भी बताना और युद्ध विराम को मास्टरस्ट्रोक बताना।
इससे अधिक दावे दुश्मन देश का मीडिया कर रहा है। तमाम राफेल के ध्वस्त होने की गिनती बता रहा है, तुर्की के ड्रोन से भारत में हुई तबाही बता रहा है। हमारे तमाम सैनिकों के मारे जाने पर जश्न मना रहा है, इंस्पेक्टर मुहम्मद इम्तियाज़ की शहादत पर जश्न मना रहा है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ युद्ध विराम की घोषणा के बावजूद रात 11:30 बजे लाइव आकर भारत को धमकी दे रहा है कि अंजाम भुगतना होगा। और हमारे वाले चुप हैं, पिछले कई दिनों से चुप हैं। बिहार कैसे जीतें इसकी गोटी सेट कर रहे हैं। जब पाकिस्तान जीतना था, टाएं-टाएं फिस्स हो गए।
यहां का मीडिया कह रहा है कि पाकिस्तान युद्ध विराम के लिए अमेरिका के सामने गिड़गिड़ा रहा था, अमेरिकी मीडिया कह रहा है कि भारत ने पहले युद्धविराम की पहल की, तो पाकिस्तान को मनाया गया।
1947, 1965, 1971 और 1999 में ऐसा नहीं हुआ। युद्ध खत्म हुए पाकिस्तान के समर्पण पर, न कि “सीज़फायर” पर। इस बार जब हमारी सेना आगे थी, पाकिस्तान के कई एयरबेस तबाह कर दिए गए थे, तब अमेरिका ने दखल देकर रोक लगा दी। अगर हिम्मत होती, तो इस बार लाहौर तक जाते।
यह सब न 1947-48 में हुआ, न 1965 में, न 1971 में, न कारगिल 1999 में। हर बार युद्ध पूरा हुआ, युद्ध विराम नहीं, युद्ध का अंत पाकिस्तान के समर्पण पर खत्म हुआ।
मगर इस बार? अफसोस है कि भारतीय सेना द्वारा इस युद्ध में आगे होने के बावजूद, लाहौर समेत तमाम 9 जगहों पर पाकिस्तानी एयरबेस ध्वस्त करने के बावजूद जब ज़रूरत थी लाहौर में घुसने की, तब अमेरिका ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
दरअसल, बोलने के लिए सिर्फ लंबी ज़बान चाहिए, युद्ध में डटे रहकर दुश्मन को हराने के लिए कलेजा। 27+16+4 = 47 लोगों की शहादत का क्या हासिल हुआ? बात आतंकवाद के समूल नाश की थी, उसका क्या हुआ? हो गया? एक के बदले 10 सिर लाने की बात थी, आ गए 470 सिर? नहीं, तो युद्ध विराम क्यों? किसके दबाव में झुक गए? अमेरिका के?
सवाल यह है कि अमेरिका ने क्या दबाव डाला? क्या ब्लैकमेल किया? क्या मजबूरी थी जो उसके सामने झुक गए? 4 दिन फोन न उठाते, जैसे एहसान जाफरी का नहीं उठाया था, जैसे नरसिंह राव ने 6 दिसंबर को नहीं उठाया था।
काश, इंदिरा गांधी जैसी हिम्मत दिखाई होती। हकीकत ये है कि IMF पाकिस्तान को कर्ज़ दे रहा है, चीन खुला समर्थन कर रहा है। और हमारे पास? अमेरिका, जो सिर्फ अपने फायदे देखता है।
हमारे साथ कौन है? एक अविश्वसनीय अमेरिका, जिसे अपने वित्तीय फायदे के अतिरिक्त और कुछ नहीं दिखता।
माफ करना मोदी जी, झुक कर सही नहीं किया। पाकिस्तान को खत्म करके रावलपिंडी और इस्लामाबाद में युद्ध को खत्म करने की घोषणा करते, तो मैं पहला व्यक्ति होता जो आपको सैल्यूट करता।
मगर आपका जोर कमज़ोर लोगों पर चलता है। उन्हीं के प्रति घृणा फैलाकर, बेटी छीन लेंगे, घर छीन लेंगे, मंगलसूत्र छीन लेंगे, करके बस चुनाव जीतते रहिए। युद्ध जीतना आपके बस की बात नहीं। आप पाकिस्तान को नहीं हरा पाए, तो चीन से क्या लड़ेंगे?
दुख हुआ। वैसे तो युद्ध होना नहीं चाहिए, मगर युद्ध शुरू यदि पहलगाम से हुआ, तो खत्म इस्लामाबाद में होता तो बेहतर होता। युद्ध की “सिंदूर” से ब्रांडिंग तो कर दी, खत्म इस्लामाबाद को मंगलसूत्र पहना कर करते तो बेहतर होता।