हिमांशी नरवाल को ‘अब्दुल पसंद है’ यह शब्द मेरे नहीं हैं “एक X हैंडलर सुहानी तिवारी” के हैं। शादी के 6 दिन बाद ही विधवा हो गई हिमांशी नरवाल को सोशल मीडिया पर “चूतिया औरत” कहा जा रहा है, “हिमांशी को अब्दुल पसंद है” कहा जा रहा है।

महत्वपूर्ण यह है कि अगर लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की विधवा हिमांशी नरवाल इनके अश्लील आक्रमण से नहीं बच पाई तो सोचिए बाक़ी महिलाओं का क्या होगा?
हिमांशी नरवाल तो इनकी अपने धर्म की है, इनकी खुद की बहन है, विधवा है, वह अपने एक बयान के बाद इनके आक्रमण पर है तो सोचिए कि दूसरे के प्रति इनका व्यवहार किस हद तक गिरेगा।
यही सोच बिल्किस बानों के बलात्कारी पैदा करती है, राम रहीम और आसाराम पैदा करती है। इसी सोच ने नरोदा पाटिया में 9 महीने की गर्भवती कौसर का पेट तलवार से चीर कर उसके नवजात शिशु को निकाला, त्रिशूल से गोदा गया और आग में फेंक दिया।
एक अपने को महामंडलेश्वर कहने वाला यति नरसिंहानंद है, एक वीडियो वायरल है जिसमें वह कहता है कि “मैं नरेंद्र मोदी के मुंह पर थूकना भी पसंद नहीं करता”
इसने भाजपा की सभी महिला नेत्रियों के खिलाफ नाम लेकर अश्लील टिप्पणी की। यही सोच महिलाओं के प्रति यौन अपराध के लिए उकसाती है, उनका बलात्कार कराती है।
और माफ़ कीजिए, यह सब ऊपरी संरक्षण से होता है, इसीलिए इतनी बेहूदगी भरी टिप्पणी के बावजूद ऐसे लोगों की अभी तक गिरफ्तारी नहीं हुई …
और ऊपरी संरक्षण से यदि नहीं होता तो माफ़ करिए सरकार का ना तो देश में नियंत्रण है ना सीमाओं पर।
सब कुछ OTT की तरह फ्री है, कोई अपने माता-पिता को सेक्स करते देखना चाहता है, उसमें शामिल होना चाहता है तो कोई अपने शो में तालियों के बीच लड़कियों के ब्रा पैंटी उतरवा कर उसे सेक्स की पोजीशन बताता है, तो कोई खुलेआम शिवांगी नरवाल को अपने पति को खाने वाला बता देता है तो कोई 7 दिन पहले विधवा हुई एक बेटी के चरित्र पर सवाल उठाता है।
सोचिए कि वह देखती होगी तो क्या बीतता होगा उसपर…….
दरअसल यह पूरा गिरोह अनियंत्रित है, बेलगाम है, दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा ही है कि “बाबा रामदेव किसी के वश में नहीं, अपनी ही दुनिया में रहते हैं”
ऐसे ही सबकी अपनी दुनिया है, कोई किसी के बस में नहीं, सबको ऊपर से संरक्षण है, जैसे कौसर के नवजात बच्चे के हत्यारे बाबू बजरंगी को संरक्षण दिया गया था, उसे बचाया गया था, उसे किसने बचाया यह उसने स्वयं “तहलका” के स्टिंग ऑपरेशन में बताया।
वही पूरे देश में इन सबको बचा रहा है, सब अनियंत्रित हैं, सबकी अपनी दुनिया है, कोई किसी के बस में नहीं। जानते हैं क्यों? क्योंकि यही चुनाव जिताते हैं और इसके बदले उन्हें यह सब करने की छूट दी जाती है।
सत्ता के लिए ये लोग इस कदर गिर जाते हैं कि हर सीमा लांघने को तैयार रहते हैं। इन्हें सत्ता किसी सेवा के उद्देश्य से नहीं, बल्कि अपने कुकर्मों को छुपाने के लिए चाहिए। इन्हें डर है कि अगर सत्ता हाथ से फिसली, तो इनके सारे अपराध बेनकाब हो जाएंगे और इनका अस्तित्व ही संकट में पड़ जाएगा। इसलिए ये किसी भी साधन, चाहे वह कैसा भी हो, अपनाकर सत्ता को बचाए रखना चाहते हैं। और जब तक ये सत्ता में बने रहेंगे, तब तक देश इसकी कीमत चुकाता रहेगा, दर्द सहता रहेगा, और लगातार इसकी सजा भुगतता रहेगा।
अमिता नीरव जी ने कहा ही है कि
“बार बार अपनी इस स्थापना के सही हो जाने से बहुत दुखी हूं कि हिन्दू इस वक्त अपने इतिहास में सार्वकालिक और सार्वत्रिक पतन के दौर में है। और इसकी जिम्मेदारी राजनीतिक सत्ता की ही है।”
कौन राजनैतिक सत्ता? वही, वही सब कराता है, कराकर यहां तक पहुंंचा है…उसे यह सब देखकर मज़ा आता है, क्योंकि यही उसका इतिहास है।
अपने समाज के पतन को रोकने के लिए हिमांशी जैसे लोगों को ही आना होगा, क्योंकि पतन के बाद कोई समाज फिर उबर नहीं पाता। ना जाने ऐसे कितने समाज इसी कारण से इस धरती से विलुप्त हो गये।